कैंसर के इलाज पर जब चर्चा होती है तो आमतौर पर कीमोथेरेपी, रेडिएशन और सर्जरी का ख्याल दिमाग में आता है. लेकिन अब CAR T-सेल थेरेपी को लेकर चर्चा चल रही है. अगर इसपर रिसर्च पूरी हो जाती है तो ये कैंसर मरीजों की जिंदगी में बड़ा बदलाव ला सकती है. हालांकि, ब्लड कैंसर ट्रीटमेंट में ये थेरेपी कारगर है या नहीं इसपर अभी भी स्टडी चल रही है.
कार टी-सेल थेरेपी कैसे करती है काम
मास जनरल में मल्टीपल मायलोमा के डिरेटर डॉ. नूपुर राजे के अनुसार, सीएआर टी-सेल थेरेपी में, एक मरीज की टी-सेल को खून से निकाला जाता है. इंट्रावेनस इंफ्यूजन से कैंसर सेल को टारगेट करने के लिए इंजीनियर किया जाता है, और फिर उन्हें मरीज के शरीर में फिर से डाला जाता है.
डॉ. नूपुर राजे इस जीन और सेल थेरेपी संस्थान में टीम का नेतृत्व कर रहे हैं. मौजूदा समय में इसे मल्टीपल मायलोमा वाले रोगियों पर लागू किया जा रहा है. ये ब्लड कैंसर का एक दुर्लभ रूप है जो प्लाज्मा सेल को प्रभावित करता है. ये मुख्य रूप से 60 से 70 साल की उम्र वाले व्यक्तियों को प्रभावित करता है.
कार टी-सेल थेरेपी अभी कई जगह इस्तेमाल हो रही है
सीएआर टी-सेल थेरेपी काइमेरिक एंटीजन रिसेप्टर्स (CARs) पर निर्भर करती है. टी-सेल, एक तरह की वाइट ब्लड सेल हैं जो इम्यून सिस्टम को मजबूत करती हैं, इस थेरेपी के लिए उपयोग की जाती हैं. छह CAR टी-सेल थेरेपी वर्तमान में ल्यूकेमिया, लिम्फोमा और मल्टीपल मायलोमा जैसे ब्लड कैंसर के लिए एफडीए-अप्रूवड हैं.
इसके आए हैं आशाजनक परिणाम
स्टडी के मुताबिक, सीएआर टी-सेल थेरेपी ने अभी 82% से 100% तक रिस्पांस दिया है. हालांकि, इस रिस्पांस को बनाए रखना एक चुनौती बनी हुई है. ट्रेडिशनल ट्रीटमेंट में जहां मरीज को लगातार ट्रीटमेंट दिया जाता है, वहीं सीएआर टी-सेल थेरेपी में एक ही बार ऐसा होता है. जिसके बाद केवल मरीजों को चेक किया जाता है.