ब्रिटेन के साइंटिस्ट यूनिवर्स की बनावट को समझने के लिए ग्रहों से आने वाली महक का विश्लेषण कर रहे हैं. इस अनूठी खोज में जहां वैज्ञानिकों को बिल्ली के पेशाब से लेकर बंदूक में डलने वाले बारूद तक कई तरह की गंध मिल चुकी हैं. लेकिन आखिर वैज्ञानिक इतना कष्ट उठा क्यों रहे हैं? आइए जानते हैं इस खोज के पीछे का मकसद क्या है और वैज्ञानिकों को अब तक कैसी-कैसी महक मिल चुकी है.
क्यों हो रही अंतरिक्ष की गंध पर रिसर्च?
अंतरिक्ष की महक कैसी होगी, यह सवाल साइंटिस्ट मरीना बार्सेनिला के दिमाग में तब आया था जब उन्होंने अंतरिक्ष की पढ़ाई शुरू की थी. उन्हें कुछ समय बाद एहसास हुआ कि अंतरिक्ष में मिलने वाले सभी मॉलिक्यूल उनकी लैब में भी मौजूद हैं. ऐसे में वह मॉलिक्यूल्स को मिलाकर अलग-अलग ग्रहों और स्पेस के हिस्सों की महक को पहचानने की कोशिश कर रही हैं.
मरीना बीबीसी से खास बातचीत में ज्यूपिटर के बारे में कहती हैं, "ज्यूपिटर बदबू के बम जैसा है." वह बताती हैं कि सौरमंडल के सबसे बड़े ग्रह बृहस्पति पर बादलों की कई परतें हैं और हर परत की रासायनिक संरचना अलग-अलग है. वह कहती हैं कि इस गैसीय विशाल ग्रह के "जहरीले मार्जिपन बादलों" की मीठी सुगंध आपको लुभा सकती है लेकिन जैसे-जैसे आप गहराई में जाएंगे, गंध और भी बदतर होती जाएगी.
बार्सेनिला कहते हैं, "हमारा मानना है कि बादल की सबसे ऊपरी परत अमोनिया बर्फ से बनी है. इसकी बदबू की तुलना बिल्ली के पेशाब से की जा सकती है. जैसे-जैसे आप नीचे जाते हैं, आपको अमोनियम सल्फाइड का सामना करना पड़ता है." वह इस बदबू की तुलना सड़े हुए अंड़ों से करती हैं. अगर आप और भी गहराई में जाएंगे तो आपको बृहस्पति की खास धारियां और भंवर दिखाई देंगे. बार्सेनिला बताती हैं कि बृहस्पति में ये मोटी पट्टियां हैं जो रंगीन हैं. इन पट्टियों के रंग अमोनिया और फॉस्फोरस से बने होते हैं. और इनमें गैसोलीन भी हो सकती है. इसलिए ज्यूपिटर में पिसे हुए लहसुन और पेट्रोल की महक भी हो सकती है.
अंतरिक्ष में इंसान को क्या-क्या मिला?
बार्सेलिना यह रिसर्च लंदन के नैचुरल हिस्ट्री म्यूज़िम की नई प्रदर्शनी 'स्पेस' (Space: Could life exist beyong Earth?) के लिए कर रही हैं. अंतरिक्ष को जानने-समझने की उत्सुकता इंसान में हमेशा से रही है और यह रिसर्च भी उसी का हिस्सा है. सड़े हुए अंडे की बदबू से लेकर बादाम की मीठी खुशबू तक, अंतरिक्ष में कई तरह की महक मिलती है. धूमकेतु, ग्रह, चंद्रमा और गैस के बादल, इन सभी की अपनी अलग गंध है. और यह ब्रह्मांड के बारे में भी बहुत कुछ बता सकती हैं.
इसका एक उदाहरण हमें 1991 में स्पेसवॉक के लिए गई ब्रिटेन की एस्ट्रोनॉट हेलेन शर्मन के अनुभव से मिलता है. वह उस समय सोवियत संघ के स्पेस स्टेशन मीर पर रही थीं. मिशन के दौरान, शर्मन अंतरिक्ष यान निर्माण के लिए उपयोग की जाने वाली संभावित सामग्रियों पर प्रयोग कर रही थीं. वह बताती हैं, "मेरे पास बहुत सी पतली फ़िल्में थीं जिनमें से ज़्यादातर सिरेमिक की थीं. इन्हें मुझे एक फ़्रेम में रखना था और फिर स्पेस स्टेशन के आस-पास के वातावरण में बाहर निकालना था."
जब शरमन अपने नमूने एयरलॉक से वापस लाईं तो उसमें से गंध की एक लहर निकली. एकदम लोहे जैसी सुगंध. कई अन्य अंतरिक्ष यात्रियों को भी ऐसी ही महक आई. किसी को जले हुए मांस की, किसी को बारूद की जले हुए बिजली के तारों जैसी गंध भी मिली. लेकिन इस गंध का कारण क्या है, यह एक रहस्य बना हुआ है.
वैज्ञानिक पता लगाना चाहते हैं कि अंतरिक्ष का कौनसा हिस्सा कैसा महकता है और इसकी वजह क्या है. एक बार अगर वे इसका पता लगा लें तो अंतरिक्ष के कई रहस्यों पर से पर्दा उठाया जा सकता है. शायद इस रहस्य से भी कि पृथ्वी के बार इंसानों के लिए ज़िन्दा रहना संभव है या नहीं.