Synthetic Human DNA Research: इंसान बनाने चला इंसान! आर्टिफिशियल इंसानी DNA पर शुरू हुआ काम... जानिए अहम बातें

इंसान के डीएनए को क्लोन करने या शुरू से बनाने पर अब काम हो रहा है. वैज्ञानिक इस प्रोजेक्ट से लंबे वक्त तक दूर रहे. लेकिन अब इस प्रोजेक्ट को फंडिंग भी मिल गई है. इसका मतलब क्या है, आइए समझते हैं.

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gnttv.com
  • नई दिल्ली,
  • 28 जून 2025,
  • अपडेटेड 6:18 PM IST

इंसान अब इंसान बनाने की राह पर चल पड़ा है. वैज्ञानिकों के एक समूह ने इंसानी डीएनए बनाने से जुड़े विवादास्पद प्रोजेक्ट पर पहली बार काम शुरू कर दिया है. अब तक वैज्ञानिक और इनवेस्टर इस रिसर्च से दूर रहे थे.

इससे जुड़ी चिंताएं थीं कि इंसानी डीएनए क्लोन करने से डिज़ाइनर बच्चे बन सकते हैं या आने वाली नस्लों में कुछ बदलाव हो सकते हैं. लेकिन अब दुनिया की सबसे बड़ी मेडिकल चैरिटी 'द वेलकम ट्रस्ट' (The Wellcome Trust) ने इस प्रोजेक्ट को शुरू करने के लिए एक करोड़ पाउंड दिए हैं. 

क्यों शुरू हुआ यह प्रोजेक्ट?
द वेलकम ट्रस्ट का कहना है कि अगर यह प्रोजेक्ट सफल होता है तो कई लाइलाज बीमारियों का इलाज किया जा सकता है. बीबीसी की एक रिपोर्ट इस प्रोजेक्ट पर काम कर रही कैंब्रिज की एमआरसी लैब की डॉ जुलियन सेल के हवाले से कहती है, "हम ऐसी थेरेपी के बारे में सोच रहे हैं जो बूढ़े हो रहे लोगों के जीवन को बेहतर बनाएगी. इससे उनका बुढ़ापा ज्यादा स्वस्थ होगा और उन्हें वृद्धावस्था में कम बीमारियों का सामना करना पडे़गा." 

उन्होंने कहा, "हम इस प्रोजेक्ट के जरिए बीमारियों से बचाने वाली सेल्स जनरेट करने की कोशिश करेंगे. हम उन सेल्स का इस्तेमाल लीवर और दिल जैसे क्षतिग्रस्त अंगों को पहले जैसा बनाने के लिए कर सकते हैं." 

कैसे बनाया जाएगा डीएनए?
इंसान के शरीर के हर सेल में उसका डीएनए है. इस डीएनए में जेनेटिक जानकारी होती है, जो इंसानों को इंसान बनाती है. हर डीएनए (Deoxyribonucleic acid) चार ब्लॉक्स से मिलकर बनता है. ब्लॉक ए, जी, सी और टी. ये ब्लॉक डीएनए को बनाते हैं और डीएनए इंसान को इंसान बनाता है. 

वैज्ञानिकों ने ह्यूमन जिनोम प्रोजेक्ट (Human Genome Project) के तहत अब तक इस डीएनए को पढ़ा ज़रूर है, लेकिन इसे क्लोन नहीं कर पाए हैं. अब सिंथेटिक ह्यूमन जिनोम प्रोजेक्ट के तहत वैज्ञानिकों की कोशिश है कि न सिर्फ डीएनए को पढ़ा जाए, बल्कि उसके कुछ हिस्सों को बनाया भी जाए. वैज्ञानिकों को उम्मीद है कि वे थोड़ा-थोड़ा करके एक दिन पूरा डीएनए बना सकते हैं. 

वैज्ञानिकों का पहला उद्देश्य मानव डीएनए के और भी बड़े ब्लॉक बनाने के तरीके विकसित करना है. वे इसके ज़रिए आर्टिफिशियल ह्यूमन क्रोमोसोम बनाने की कोशिश करेंगे. क्रोमोसोम में वे जीन होते हैं जो मानव शरीर के विकास और रखरखाव को नियंत्रित करते हैं. इसके बाद इनका अध्ययन और प्रयोग करके यह पता लगाया जा सकता है कि जीन और डीएनए हमारे शरीर को कैसे नियंत्रित करते हैं. 

क्या कहते हैं आलोचक?
इस रिसर्च के आलोचकों को डर है कि इसस कुछ बेईमान शोधकर्ताओं के लिए रास्ता खुल जाएगा जो उन्नत या 'मॉडिफाइड' इंसान बनाने की कोशिश कर रहे हैं. बियॉन्ड जीएम (Beyond GM) नाम के कैंपेन समूह के निदेशक डॉ. पैट थॉमस के हवाले से रिपोर्ट कहती है "हमें लगता है कि सभी वैज्ञानिक अच्छे काम करने के लिए हैं, लेकिन विज्ञान का इस्तेमाल नुकसान पहुंचाने और युद्ध के लिए किया जा सकता है." 

इस प्रोजेक्ट का काम टेस्ट ट्यूब और डिश तक ही सीमित रहेगा. वैज्ञानिकों का कहना है कि वे सिंथेटिक जीवन बनाने की कोशिश नहीं करेंगे. लेकिन इस तकनीक से वैज्ञानिकों को मानव जीवन प्रणालियों पर ऐसा नियंत्रण मिल जाएगा, जैसा कभी नहीं मिला. उदाहरण के लिए, वे बायोलॉजिकल हथियार, मॉडिफाइड इंसान या यहां तक ​​कि मानव डीएनए वाले जानवर बनाने की कोशिश कर सकते हैं. 

ये सब चिंताएं हैं आर्टिफिशियल इंसानी क्रोमोसोम बनाने की विधि दुनिया को देने वाले एडिनबर्ग यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिक प्रोफ़ेसर बिल अर्नशॉ की. रिपोर्ट उनके हवाले से कहती है, "जिन्न बोतल से बाहर आ चुका है. अब हम कई प्रतिबंध लगा सकते हैं, लेकिन अगर उपयुक्त मशीनरी के साथ कोई संगठन कुछ उल्टा-सीधा करने की कोशिश करता है, तो मुझे नहीं लगता कि हम उसे रोक सकते हैं." 

क्या है वेलकम ट्रस्ट की राय?
इस प्रोजेक्ट को फंड करने वाला वेलकम ट्रस्ट इन सब चिंताओं से वाकिफ भी है और इनसे मुंह भी नहीं फेर रहा. इस प्रोजेक्ट को मंज़ूरी देने वाले वेलकम ट्रस्ट के डॉ टॉम कॉलिन्स ने कहा कि एक न एक दिन यह तकनीक बननी ही थी. वह खुद इसे बनाकर यह सुनिश्चित कर रहे हैं कि इसे जिम्मेदारी के साथ अंजाम दिया जाए. 

वेलकम ट्रस्ट का कहना है कि वह इस प्रोजेक्ट से जुड़े नैतिक सवालों पर भी नज़र डालेगा. इस बीच, परियोजना के वैज्ञानिक विकास के साथ-साथ एक समर्पित सामाजिक विज्ञान कार्यक्रम भी चलाया जाएगा. इसका नेतृत्व केंट यूनिवर्सिटी के समाजशास्त्री प्रोफेसर जॉय झांग करेंगे.

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