क्या है खेती की जीएम तकनीक, जिसके जरिए सरसों की फसल उगाने की मिली मंजूरी

जेनेटिक इंजीनियरिंग मूल्यांकन समिति ने सरसों की व्यावसायिक खेती को मंजूरी दे दी है. यानी की अब सरसों की खेती जेनेटिकली मॉडिफाइड तकनीक से होगी. जीएम सरसों की पैदावार में लागत कम लगेगी और उपज ज्यादा होगी.

सरसों
gnttv.com
  • नई दिल्ली,
  • 27 अक्टूबर 2022,
  • अपडेटेड 3:34 PM IST
  • किफायती खेती का रास्ता साफ
  • 2010 में बीटी बैंगन प्रतिबंधित

भारत में जीएम (जेनेटिकली मॉडिफाइड) सरसों की खेती के लिए रास्ता खुल गया है. केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय के तहत आने वाली जेनेटिक इंजीनियरिंग मूल्यांकन समिति (जीईएसी) ने व्यावसायिक खेती की मंजूरी दी है. सरसों की इस किस्म को चालू रबी सीजन में उगाया जाएगा या नहीं इसके लिए  किसानों को सरकार के फैसले का इंतजार करना होगा. दरअसल ये कदम हरित समूहों और मधुमक्खी पालकों के विरोध के बीच उठाया गया है. बता दें कि सरकार ने अब तक साल 2002 में व्यावसायिक खेती के लिए केवल एक जीएम फसल बीटी कपास को मंजूरी दी है.

जीईएसी ने 18 अक्टूबर को एक बैठक में जीएम सरसों डीएमएच-11 को वाणिज्यिक स्तर पर जारी करने से पहले पर्यावरणीय परीक्षण की सिफारिश की है. डीएमएच-11 को दिल्ली विश्वविद्यालय में सेंटर फॉर जेनेटिक मैनिपुलेशन ऑफ क्रॉप प्लांट्स द्वारा विकसित किया गया है. तो सबसे पहले ये जान लीजिए की ये जीएम तकनीक है क्या?

क्या है जीएम तकनीक?
विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक जीएम एक ऐसी तकनीक है, जिसमें जंतुओं एवं पादपों के डीएनए को अप्राकृतिक तरीके से बदला जाता है. जीएम तकनीक के तहत एक वनस्पति के जीन को निकालकर दूसरे असंबंधित वनस्पति में डाला जाता है. जीएम सरसों को प्रवर्धित करने के लिए सरसों के फूल में होने वाले स्व-परागण को रोकने के लिए नर नपुंसकता पैदा की जाती है. फिर हवा, तितलियों, मधुमक्खियों और कीड़ों के जरिये परागण होने से एक हाइब्रिड तैयार होता है.

किफायती खेती का रास्ता साफ
जीएम फसलों की व्यावसायिक खेती का समर्थन करने वालों का कहना है कि जीएम सरसों की पैदावार में लागत कम लगेगी और उपज ज्यादा होगी. इतना ही इसके लिए कीटनाशकों की कम आवश्यकता पड़ेगी और इसमें कीटों-बीमारियों के प्रतिरोध की क्षमता अधिक है.

2010 में बीटी बैंगन प्रतिबंधित
2009 में जीईएसी ने बीटी बैंगन की व्यावसायिक खेती को मंजूरी दी थी. बड़े विरोध को देखते हुए पर्यावरण मंत्रालय ने 2010 में इसको प्रतिबंधित कर दिया तथा इसके प्रभावों पर अध्ययन प्रारंभ किया. ये प्रतिबंध मोनसेंटो कंपनी के बीटी बैंगन पर लगा था. विरोध करने वालों ने स्वास्थ्य पर असर की आशंका जताई थी. 

 

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