Shubhanshu Shukla ISS mission: शुभांशु को ISS तक पहुंचने में लगेंगे 28 घंटे, जबकि रूस सिर्फ 8 घंटे में कैसे पहुंच जाता है? जानिए वजह

ग्रुप कैप्टन शुभांशु शुक्ला इस मिशन के पायलट हैं और अमेरिकी अंतरिक्ष यात्री पेगी व्हिटसन के साथ मिलकर काम करेंगे. ISS पर 14 दिन की इस यात्रा में वह 7 भारतीय और 5 नासा द्वारा डिजाइन किए गए वैज्ञानिक प्रयोग करेंगे. शुभांशु इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन पर जाने वाले पहले और स्पेस में जाने वाले दूसरे भारतीय हैं.

Shubhanshu Shukla docking live
gnttv.com
  • नई दिल्ली ,
  • 26 जून 2025,
  • अपडेटेड 2:06 PM IST
  • शुभांशु को क्यों लग सकते हैं 28 घंटे से ज्यादा
  • रूस कैसे 8 घंटे में ISS तक पहुंचता है?

भारतीय एस्ट्रोनॉट शुभांशु शुक्ला सहित चारों एस्ट्रोनॉट 26 जून को शाम 4:30 बजे स्पेस स्टेशन पहुंचेंगे. वह Axiom Mission-4 (Ax-4) का हिस्सा बनकर वहां गए हैं. यह मिशन स्पेसX के फाल्कन 9 रॉकेट और ड्रैगन स्पेसक्राफ्ट के जरिए फ्लोरिडा के कैनेडी स्पेस सेंटर से 26 जून, 2025 को दोपहर 12:01 बजे लॉन्च किया गया था. ISS धरती से केवल 400 किलोमीटर की दूरी पर है, फिर भी शुभांशु और उनकी टीम को स्टेशन तक पहुंचने में करीब 28 घंटे का समय लगेगा. आइए जानते हैं इसके पीछे की वजह.

शुभांशु को क्यों लग सकते हैं 28 घंटे से ज्यादा

स्पेस स्टेशन की कक्षा पृथ्वी के चारों ओर 28,000 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से घूम रही है. इससे जुड़ना आसान नहीं होता. इसके लिए ड्रैगन स्पेसक्राफ्ट को अपनी कक्षा धीरे-धीरे और सटीक रूप से बदलनी होती है, जिसे फेज़िंग मैनोवर्स कहते हैं. इसमें ड्रैगन के 16 ड्रेको थ्रस्टर्स अहम भूमिका निभाते हैं. 

ISS से जुड़ने के लिए स्पेसक्राफ्ट को उसकी गति और दिशा को सटीकता से मिलाना होता है. इसीलिए ड्रैगन धीरे-धीरे, छोटे-छोटे थ्रस्टर्स की मदद से ISS के करीब पहुंचता है. लॉन्च के बाद भी 1 से 2 घंटे केवल सेफ्टी चेक्स जैसे कि गैस लीक या एयर प्रेशर की जांच में लगते हैं. ड्रैगन अभी भी अपने मॉडल्स को रिफाइन कर रहा है, इसलिए उसे ज्यादा समय लगता है.

फाल्कन 9 रॉकेट दो स्टेज में काम करता है. पहला स्टेज 9 मर्लिन इंजनों से स्पेसक्राफ्ट को पृथ्वी के वायुमंडल से बाहर ले जाता है और फिर वापस आकर लैंड करता है. दूसरा स्टेज ड्रैगन को उसकी कक्षा में स्थापित करता है. इस पूरे प्रोसेस में भी समय लगता है.

रूस कैसे 8 घंटे में ISS तक पहुंचता है?

अब चूंकि कई प्राइवेट स्पेस मिशन को ISS तक पहुंचने में 24 से 30 घंटे तक का समय लग जाता है लेकिन रूस कैसे इसे केवल 8 घंटे में पूरा कर लेता है. आइए जानते हैं.

रूस के Soyuz स्पेसक्राफ्ट ने सैकड़ों मिशनों को सफलतापूर्वक अंजाम दिया है. उसके पास सालों का एक्सपीरिएंस है. और इसी एक्सपीरिएंस के आधार पर रूस ने इसके ऑर्बिटल पाथ को इतनी अच्छी तरह परफेक्ट कर लिया है कि अब वह 6-8 घंटे में ISS तक पहुंचने वाला शॉर्ट प्रॉफाइल मिशन आसानी से चला लेता है. SpaceX Dragon आमतौर पर 20 से ज्यादा ऑर्बिट्स लेते हैं लेकिन Soyuz लॉन्च से लेकर डॉकिंग तक सिर्फ 4 ऑर्बिट्स लेता है.

क्यों खास है ये मिशन?

ग्रुप कैप्टन शुभांशु शुक्ला इस मिशन के पायलट हैं और अमेरिकी अंतरिक्ष यात्री पेगी व्हिटसन के साथ मिलकर काम करेंगे. ISS पर 14 दिन की इस यात्रा में वह 7 भारतीय और 5 नासा द्वारा डिजाइन किए गए वैज्ञानिक प्रयोग करेंगे. शुभांशु इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन पर जाने वाले पहले और स्पेस में जाने वाले दूसरे भारतीय हैं. शुभांशु का ये अनुभव भारत के गगनयान मिशन में काम आएगा.

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