साल 2025 विज्ञान की दुनिया के लिए ऐतिहासिक रहा. इस साल वैज्ञानिकों ने ऐसी कई रिसर्च कीं, जिन्होंने भविष्य को कल्पना से निकालकर हकीकत के बेहद करीब ला दिया. एक तरफ वैज्ञानिकों ने पहली बार स्पर्म बनाने वाले स्टेम सेल का सफल ट्रांसप्लांट किया गया, तो वहीं दूसरी ओर फ्यूजन एनर्जी को तेज और सस्ता बनाने वाली तकनीक ने क्लीन एनर्जी के सपने को मजबूती दी. चलिए जानते हैं साइंस ने हमें इस साल कैसे चौंकाया.
फ्यूजन रिएक्टर का डिजाइन अब 10 गुना तेज
दुनिया फ्यूजन एनर्जी को सस्ती और साफ बिजली के समाधान के रूप में देखती रही है, लेकिन इसकी प्रक्रिया हमेशा से मुश्किल रही है. अमेरिका की यूनिवर्सिटी ऑफ टेक्सास, लॉस एलामोस और टाइप वन एनर्जी के वैज्ञानिकों ने इस 70 साल पुरानी समस्या का हल ढूंढ लिया है. उन्होंने मैथ बेस्ड एक नया तरीका इजाद किया, जिससे फ्यूजन रिएक्टर के मैग्नेटिक डिजाइन पहले के मुकाबले 10 गुना तेजी से तैयार किए जा सकते हैं.
पहली बार किया गया स्पर्म बनाने वाला स्टेम सेल का ट्रांसप्लांट
अमेरिका में पहली बार किसी इंसान में स्पर्म बनाने वाली स्टेम सेल का ट्रांसप्लांट किया गया है. यह ट्रांसप्लांट एक 20 साल के युवक में किया गया, जिसे बचपन में हड्डी के कैंसर के इलाज के दौरान कीमोथेरेपी दी गई थी, जिसके चलते वह अजूस्पर्मिया का शिकार हो गया था और उसके शरीर में शुक्राणु बनना बंद हो गया था. इलाज के समय डॉक्टरों ने उसकी बचपन में ली गई और सुरक्षित रखी गई स्पर्म-प्रोड्यूसिंग स्टेम सेल्स को अल्ट्रासाउंड गाइडेड सुई की मदद से उसके टेस्टिस में दोबारा ट्रांसप्लांट किया. ये वही स्टेम सेल्स होती हैं जो युवावस्था में जाकर शुक्राणु बनाने का काम करती हैं.
कमरे के तापमान पर सुपरकंडक्टर का पुख्ता सबूत
अब तक सुपरकंडक्टर सिर्फ बेहद ठंडे तापमान पर ही काम करते थे. लेकिन चीन के वैज्ञानिकों ने पहली बार ऐसा सुपरकंडक्टर दिखाया है, जो लगभग कमरे के तापमान पर बिजली को बिना किसी रुकावट के फ्लो करता है. यह पदार्थ बेहद ज्यादा दबाव में काम करता है, इसलिए फिलहाल इसका सीधा इस्तेमाल संभव नहीं है. फिर भी इसे कमरे के तापमान वाले सुपरकंडक्टर का पहला भरोसेमंद सबूत माना जा रहा है.
CERN में सीसा बना सोना
यूरोप की सर्न लैब में वैज्ञानिकों ने यह मापा कि कैसे लेड (सीसा) के खास परिस्थितियों में गोल्ड में बदल जाते हैं. यह प्रक्रिया बेहद कम समय के लिए होती है और इससे कोई बेचने वाला सोना नहीं बनाया जा सकता. लेकिन इससे परमाणु संरचना और ब्रह्मांडीय प्रक्रियाओं को समझने में बड़ी मदद मिली है. यह खोज विज्ञान के लिहाज से बेहद अहम रही है.
दूर के ग्रह पर जीवन के संकेत की उम्मीद
जेम्स वेब स्पेस टेलीस्कोप ने 120 प्रकाश वर्ष दूर स्थित एक्सोप्लैनेट K2-18b के वातावरण का अध्ययन किया. वैज्ञानिकों को वहां ऐसे रसायन मिले हैं, जो पृथ्वी पर जीवन से जुड़े होते हैं. खास तौर पर एक गैस डाइमेथाइल सल्फाइड के संकेत मिले, जो धरती पर समुद्री जीवों से निकलती है. हालांकि वैज्ञानिक अभी इसे पक्का सबूत नहीं मान रहे, लेकिन यह अब तक का सबसे मजबूत संकेत है कि पृथ्वी के बाहर भी जीवन संभव हो सकता है.
क्वांटम कंप्यूटिंग और मेडिकल साइंस में कमाल
IBM ने ऐसा कंप्यूटिंग सिस्टम पेश किया है, जिसमें क्वांटम और पारंपरिक कंप्यूटर साथ मिलकर काम करते हैं. वहीं मेडिकल साइंस में CRISPR तकनीक से एक नवजात बच्चे का जानलेवा जेनेटिक रोग सिर्फ छह महीने में ठीक किया गया. इसके अलावा AI और माइक्रोफ्लूडिक्स तकनीक से IVF में बेहतर स्पर्म चयन संभव हुआ है, जिससे बांझपन के इलाज में सफलता बढ़ सकती है.