धीरेंद्र शास्त्री ने बागेश्वर धाम की कथा में भगवान शंकर के गोपी रूप धारण कर वृंदावन के रास में शामिल होने की कथा सुनाई. पार्वती जी ने शंकर जी को गोपी के रूप में तैयार किया, लेकिन उनकी चाल से पहचान उजागर हो गई. अंततः, मोहन ने उनकी बंसी बजाई और शंकर जी अपनी सुधबुध खोकर नाचने लगे, जिससे उनका घूंघट खिसक गया और वे गोपेश्वर महादेव कहलाए.