आज शारदीय नवरात्र की चतुर्थी तिथि पर माँ दुर्गा के चौथे स्वरूप माँ कूष्मांडा की आराधना की जा रही है. मान्यता है कि माँ कूष्मांडा ने अपनी मंदमंद मुस्कान से ब्रह्मांड की रचना की है. इनकी उपासना से भक्तों को मुश्किल रोगों से मुक्ति मिलती है और सभी रोग-शोक नष्ट हो जाते हैं. वाराणसी के दुर्गाकुंड इलाके में माँ कूष्मांडा का अति प्राचीन मंदिर स्थित है, जिसका जिक्र स्कंद पुराण में भी मिलता है. इस मंदिर में श्रद्धालु विशेष रूप से विवाह की कामना और सुख-समृद्धि के लिए आते हैं. ज्योतिष में माँ कूष्मांडा का संबंध बुध ग्रह से माना जाता है. इनकी पूजा में हरे वस्त्र धारण कर हरी इलायची, सौंफ या कुम्हड़ा अर्पित किया जाता है. माँ कूष्मांडा की कृपा से वाणी, शिक्षा, एकाग्रता, मानसिक समस्याओं और त्वचा संबंधी रोगों में लाभ मिलता है. धन और कारोबार की समस्याओं का भी समाधान होता है. माँ को मालपुए का भोग लगाने और कुम्हड़े की बलि देने का विधान है.