मथुरा की जिला कारागार में जन्माष्टमी के अवसर पर भगवान कृष्ण की पोशाकें तैयार की जाती हैं. यह पोशाकें जेल के पुरुष बंदियों द्वारा बनाई जाती हैं. इन पोशाकों के निर्माण में हिंदू और मुस्लिम दोनों धर्मों के बंदी शामिल होते हैं, जो गंगा-जमुनी तहजीब का उदाहरण प्रस्तुत करते हैं. एक बंदी का कहना है कि "ठाकुर जी का जन्म ही जेल में हुआ वो भी मथुरा की जेल में. अब ये भी ठाकुर जी की कहीं ना कहीं पे असीम कृपा है कि हम लोग मथुरा जेल आए. आने के बाद हमने हमारे हाथों से ये पोशाकें बनी हुई हैं जो वे ही पोशाकें ठाकुर जी पहनने हैं" यह कार्य बंदियों के जीवन में सकारात्मक बदलाव ला रहा है, जिससे वे भक्ति भाव में लीन हो रहे हैं. मथुरा जेल में बनी ये पोशाकें अब सिर्फ कृष्ण जन्मभूमि मंदिर ही नहीं, बल्कि मथुरा-वृंदावन और दूरदराज के कई अन्य मंदिरों में भी भेजी जाती हैं. जेल प्रशासन ने बंदियों की इस इच्छा का समर्थन किया था. जेल में हथकरघा जैसे अन्य कार्य भी होते हैं, जहां साड़ियां और दुपट्टे बनाए जाते हैं. यह जेल 1870 में बनी थी और यह उत्तर प्रदेश की एकमात्र ऐसी जेल है जहां महिलाओं को फांसी देने का प्रावधान है.