परमाणु बम मानव सभ्यता के लिए सबसे बड़ा खतरा है, जिसमें धरती का भूगोल बदलने की ताकत है. दुनिया में परमाणु बम का इस्तेमाल केवल एक बार हिरोशिमा और नागासाकी पर हुआ था, जिससे 2,50,000 से अधिक लोगों की मौत हुई. द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान जर्मनी ने परमाणु बम बनाने का फैसला किया और 1938 में परमाणु विखंडन की खोज हुई. अमेरिकी वैज्ञानिकों ने 1942 में मैनहट्टन प्रोजेक्ट के तहत परमाणु बम बनाना शुरू किया और 16 जुलाई 1945 को न्यू मेक्सिको में दुनिया का पहला परमाणु बम परीक्षण 'ट्रिनिटी' कोड नेम से किया गया. सोवियत संघ ने भी 29 अगस्त 1949 को अपना पहला प्लूटोनियम परमाणु बम विकसित किया. 1952 में अमेरिका ने पहला हाइड्रोजन बम 'माइक' का विस्फोट किया और सोवियत संघ ने 1955 में अपना हाइड्रोजन बम विकसित किया. संयुक्त राष्ट्र ने परमाणु अप्रसार संधि (एनपीटी) तैयार की जिसमें अमेरिका, रूस, यूके, फ्रांस और चीन को परमाणु संपन्न राष्ट्र माना गया. दक्षिण अफ्रीका ने एनपीटी का हिस्सा बनने से पहले अपने सभी परमाणु हथियार नष्ट कर दिए. भारत, पाकिस्तान और इजराइल ने इस संधि पर हस्ताक्षर नहीं किए हैं. इजरायल की परमाणु क्षमता और उसके विरोधियों पर सैन्य कार्रवाई का विवरण भी महत्वपूर्ण है. अमेरिका ने 'शांति के लिए परमाणु' पहल के तहत ईरान के शुरुआती परमाणु कार्यक्रम में मदद की थी, लेकिन सत्ता परिवर्तन के बाद अमेरिका की नीति बदल गई. चीन, उत्तर कोरिया और रूस ने भी ईरान के परमाणु कार्यक्रम का समर्थन किया है. भारत की परमाणु यात्रा में 1974 के 'स्माइलिंग बुद्धा' और 1998 के 'ऑपरेशन शक्ति' परमाणु परीक्षण शामिल हैं. भारत ने अपनी रक्षा चुनौतियों के कारण परमाणु हथियार विकसित किए और 'पहले उपयोग न करने' की नीति अपनाई, जबकि पाकिस्तान 'पहले उपयोग' की नीति पर चलता है.