तमिलनाडु के विलुप्पुरम ज़िले में हर रविवार का नज़ारा कुछ खास होता है. आसपास के कस्बों और गांवों से सैकड़ों छात्र यहां आते हैं, ताकि पायथन, पर्ल जैसी प्रोग्रामिंग भाषाएं और ओपन-सोर्स सॉफ्टवेयर टेक्नोलॉजी मुफ्त में सीख सकें. यह पहल 2013 में शुरू हुए विलुप्पुरम GNU/Linux यूज़र ग्रुप की है, जिसका मकसद है तकनीक को हर किसी के लिए सुलभ और किफायती बनाना. दुनिया भर में Free and Open Source Software (FOSS) की यही सोच पॉपुलर हो रही है.
केरल के स्कूलों में FOSS से बड़ी बचत
दैनिक भास्कर की रिपोर्ट के मुताबिक, ने शिक्षा क्षेत्र में इस दिशा में एक बड़ा कदम उठाया है. राज्य के सरकारी स्कूलों में अब परंपरागत पेड ऑपरेटिंग सिस्टम की जगह मुफ्त GNU/Linux इंस्टॉल किया गया है. केरल इंफ्रास्ट्रक्चर एंड टेक्नोलॉजी फॉर एजुकेशन (KITE) के सीईओ के. अनवर सादत के मुताबिक, पहले एक मशीन पर ऑपरेटिंग सिस्टम और ऑफिस पैकेज के लाइसेंसिंग पर लगभग 1.5 लाख रुपये सालाना खर्च होता था. लेकिन FOSS अपनाने के बाद राज्य अब हर साल करीब 3,000 करोड़ रुपये की बचत कर रहा है.
FOSS आखिर है क्या?
तकनीकी एक्सपर्ट राहुल ने दैनिक भास्कर को बताया कि FOSS ऐसे सॉफ्टवेयर होते हैं जिन्हें कोई भी व्यक्ति बदल सकता है, साझा कर सकता है और सुधार सकता है. यह टेक्नोलॉजी दुनिया में एक तरह की सामाजिक सेवा की तरह है, जहां हजारों डेवलपर अपने कोड लिखकर GitHub जैसी साइट्स पर उपलब्ध कराते हैं.
तमिलनाडु और हैदराबाद की पहल
फ्री सॉफ्टवेयर फाउंडेशन तमिलनाडु के प्रयासों के बाद राज्य सरकार ने स्कूली बच्चों को मिलने वाले लैपटॉप में FOSS शामिल करना शुरू कर दिया है. इससे छात्रों को शुरुआती स्तर पर ही ओपन-सोर्स सॉफ्टवेयर का अनुभव मिल रहा है. इसी तरह हैदराबाद में भी फ्री सॉफ्टवेयर मूवमेंट चल रहा है, जो छात्रों और युवाओं को इस दिशा में प्रोत्साहित कर रहा है.
कंपनियों और संस्थाओं का अनुभव
हाल ही में, नेशनल लॉ स्कूल यूनिवर्सिटी (NLSU), बेंगलुरु ने The Rise of FOSS in India नाम से एक रिसर्च स्टडी जारी की. इसमें बताया गया है कि कैसे सरकारी और निजी संस्थाएँ FOSS से लाभ उठा रही हैं. जैसे NPCI (नेशनल पेमेंट्स कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया) और स्टॉक-ब्रोकिंग कंपनी Zerodha. रिपोर्ट के अनुसार, Zerodha ने FOSS अपनाकर लगभग 800 करोड़ रुपये की बचत की है.
इस तरह, चाहे शिक्षा हो या कॉरपोरेट सेक्टर – FOSS आज भारत में कम खर्च, अधिक नवाचार और तकनीकी आत्मनिर्भरता का मजबूत विकल्प बन रहा है.
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