Resham Sutra helping rural women: गांव की महिलाओं को उद्यमी बना रहा है यह संगठन, बनाई सोलर से चलने वाली सिल्क रीलिंग मशीन

रेशम सूत्र संगठन न सिर्फ Solar Powered Silk Reeling Machines बना रहा है बल्कि ग्रामीण महिलाओं को Micro-entrepreneur बनाने में भी अहम भूमिका निभा रहा है.

Solar powered silk reeling machine
निशा डागर तंवर
  • नई दिल्ली ,
  • 25 मई 2023,
  • अपडेटेड 11:44 PM IST
  • लोगों का दर्द देख बनाई मशीन
  • सोलर एनर्जी का सही इस्तेमाल

रेशम की साड़ी, सूट या दुपट्टे किसे पसंद नहीं होते हैं. खासकर कि बेटियों की शादी में रेशम की साड़ी देने का खास रिवाज होता है. लेकिन क्या आपको पता है कि एक समय ऐसा था जब सबके दिल को भाने वाला रेशम बनाना इतना भी आसान नहीं था. ग्रामीण इलाकों में बहुत सी महिलाएं मैन्यूअली रेशम बनाती थीं और इससे उनके स्वास्थ्य को खतरा होता था. क्योंकि महिलाएं रेशम को अपनी जांघ पर रखकर रील करती हैं और इससे उन्हें चोट लगने का खतरा रहता है. 

आज भी बहुत सी महिलाएं इस तरह काम कर रही हैं. लेकिन बहुत से इलाकों में स्थिति बदल चुकी है और महिलाएं अब रेशम के लिए सौर ऊर्जा से चलने वाली मशीन का इस्तेमाल करती हैं. इससे उनका काम भी जल्दी होता है और उनके स्वास्थ्य पर भी असर नहीं पड़ता है. इस मशीन को बनाया है दिल्ली के रहने वाले कुणाल वेद और उनकी टीम ने. 

आज 'सूरज से स्वावलंबन' सीरिज में हम आपको बता रहे हैं कुणाल वेद और उनके संगठन रेशम सूत्र के बारे में, जिन्होंने Solar Powered Silk Reeling Machine बनाई है. 

Kunal Vaid and team

लोगों का दर्द देख बनाई मशीन 
GNT Digital से बात करते हुए कुणाल ने बताया कि उनका जन्म और पालन-पोषण नई दिल्ली में हुआ था. स्कूली शिक्षा पूरी करने के बाद कुणाल ने प्रोडक्शन एंड इंडस्ट्रियल इंजीनियरिंग में अपनी बैचलर ऑफ इंजीनियरिंग (बीई) की पढ़ाई की. इसके बाद MBA किया और फिर कुणाल ने अपने पारिवारिक व्यवसाय नीडलपॉइंट टेक्सटाइल प्रोडक्ट्स प्राइवेट लिमिटेड में शामिल होने का फैसला किया. यहां उन्होंने एक दशक तक काम किया. उन्होंने बताया कि नीडलपॉइंट ने झारखंड सरकार के साथ राज्य से दुनिया का पहला जैविक प्रमाणित रेशम उत्पाद को मार्केट करने के लिए एग्रीमेंट किया.  

हालांकि, उत्पादन काफी धीमा था और इसलिए 2011 में, कुणाल ने इसके कारण को समझने के लिए झारखंड के गांवों का दौरा करने का फैसला किया. इस दौरान उन्होंने देखा कि टसर सिल्क यार्न बनाने के लिए ग्रामीण महिलाओं को किस पीड़ा और मेहनत से गुजरना पड़ता था क्योंकि वे जांघ पर रीलिंग करती थीं. कुणाल ने देखा कि जांघ पर रीलिंग करने से महिलाओं की स्किन पर कट लग गए थे और पीठ दर्द और जोड़ों के दर्द से भी पीड़ित थीं. इसके अलावा उनके काम को सामाजिक रूप से हेय दृष्टि से देखा जाता था. 

इस अनुभव से आहत कुणाल ने ठाना कि इन ग्रामीण महिलाओं के लिए कुछ किया जाना चाहिए. इस बात को ध्यान में रखते हुए उन्होंने एक ऐसी मशीन बनाने पर काम करना शुरू कर दिया जो इन महिलाओं को बेहतर उत्पादकता, बेहतर गुणवत्ता प्रदान करें और उन्हें जांघ रीलिंग की दर्दनाक और शर्मनाक प्रक्रियाओं से मुक्त करें. साल 2013 में उन्होंने अपना पहली मशीन बना ली थी और इसके दो साल बाद साल 2015 में  उद्यम रेशम सूत्र की नींव रखी. 

Thigh reeling to reeling machine

सोलर एनर्जी का सही इस्तेमाल
"रेशम सूत्र" - दिल्ली में स्थित एक सामाजिक उद्यम है जो सोलर से चलने वाली ऐसी मशीनें बना रहा है जिनकी मदद से ग्रामीण महिलाओं और उनके परिवारों को सशक्त बनाया जा सकता है. इन मशीनों से वे उच्च उत्पादकता के साथ अपनी आय बढ़ा सकते हैं. कुणाल ने सोलर से चलने वाली अलग-अलग साइज की सिल्क रीलिंग मशीन बनाई हैं जिससे महिलाएं आसानी से कम समय में ज्यादा काम कर सकती हैं. 

रेशम सूत्र भारत के ग्रामीण लोगों को विभिन्न प्रकार के रेशम और हथकरघा उत्पादों का उत्पादन और मार्केटिंग करने में सक्षम बना रहा है. यह संगठन उन्हें रीलिंग, कताई और बुनाई आदि के लिए इलेक्ट्रिक या ज्यादातर सोलर से चलने वाली मशीनें उपलब्ध करा रहा है. साथ ही, रेशम सूत्र लोगों को मशीन की फ्री ट्रेनिंग भी उपलब्ध कराता है.

कंपनी फिलहाल छत्तीसगढ़, बिहार, झारखंड, ओडिशा और अन्य पूर्वोत्तर राज्यों में ग्रामीण महिलाओं को सौर ऊर्जा से चलने वाली सिल्क रीलिंग मशीनें दे रही है. इस काम में उन्हें काउंसिल ऑन एनर्जी, एनवायरनमेंट एंड वॉटर (सीईईडब्ल्यू) और विलग्रो इनोवेशन फाउंडेशन द्वारा संयुक्त रूप से चलाए जा रहे 'पॉवरिंग लाइवलीहुड्स' कार्यक्रम के तहत मदद मिल रही है. 

ग्रामीण महिलाओं को बनाया छोटे उद्यमी 
कुणाल ने बताया कि उनका काम सिर्फ मशीनें बनाने या देने तक सीमित नहीं है. बल्कि वे महिलाओं को ट्रेनिंग देते हैं और उनके बनाए प्रोडक्ट्स के लिए बाजार उपलब्ध कराने का भी काम कर रहे हैं. रेशम सूत्र के नवाचारों ने 12,000 से अधिक ग्रामीण महिलाओं और उनके परिवारों को सीधे प्रभावित किया है.

रेशम सूत्र द्वारा स्थापित आरईसी के माध्यम से 300 से अधिक महिलाओं को प्रशिक्षित किया गया है. झारखंड में सिमदेगा के आदिवासी क्षेत्र में रेशम सूत्र द्वारा शुरू की गई 'खेत से खुदरा' परियोजना में लगभग 200 आदिवासी किसान रेशम बागान में लगे हुए हैं. कुणाल का कहना है कि अब वह क्रॉप- धाग- कपड़ा की पूरी वैल्यू चैन पर काम कर रहे हैं. 

 

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