एआई के कारण सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म दुविधा में आ चुके हैं. एआई का इस्तेमाल इतना ज्यादा किया जा रहा है, कि टेक प्लेटफॉर्म इस बात को समझ नहीं पा रहे, कि कोई फोटो या वीडियो एआई की है या रियल. ऐसे में टेक प्लेटफॉर्म द्वारा कुछ तरीके अपनाए गए हैं, जिनसे पता लग सके कि क्या एआई है और क्या नहीं. लेकिन इसका नुकसान यह हो रहा है कि कई मामलों में टेक प्लेटफॉर्म रियल कंटेंट को भी एआई की कैटेगरी में डाल रहे हैं.
टिकटॉक की एक फेमस सेलेब्रिटी का कहना है कि टिकटॉक द्वारा उनके कई वीडियो के उपर एआई का लेबल लगा दिया गया है. जबकि वह वीडियो एआई से नहीं बनाए गए थे. जब किसी वीडियो को एआई लेबल कर दिया जाता है और यूजर्स के कमेंट की बाढ़ सी आ जाती है, जो सेलेब्रिटी के कंटेंट पर टिप्पणी करने में कोई कसर नहीं छोड़ते.
क्या कहना है टिकटॉक स्टार का
टिकटॉक स्टार का कहना है कि वह अपने वीडियो को को केवल टचअप देने के लिए एआई का इस्तेमाल करती है. लेकिन वह अपने वीडियो को नॉर्मल एडिटिंग करके ही तैयार करती है. पर एआई की लेबलिंग से लोगों के दिगाम में छवि बन गई है कि वह एआई का इस्तेमाल कर वीडियो तैयार करती हैं. इससे उनकी छवि का उनके फैंस के बीच नेगेटिव इमेज बन रही है.
क्या होता है लेबलिंग
टिकटॉक सबसे पहली कंपनी थी, जिसने लेबल के गेम में उतरने का फैसला लिया. यह फैसला 2023 में लिया गया था. इसमें एक टूल के जरिए ऑटोमैटिकली पता लगाया जाता था, कि कौनसा कंटेंट एआई द्वारा बनाया गया है.
वहीं मेटा ने पिछले वर्ष ही एआई टैग देने का खेल शुरू किया था. वह भी पता लेता था कि कौनसा कंटेंट एआई से बनाया गया है, और किस कंटेंट को एआई की मदद से मॉडिफाय किया गया है. वहीं अब मेटा किसी भी ऐसे कंटेंट के उपर वॉटरमार्क लगा देता है जो उसके एआई द्वारा बनाया गया होता है.
लेबलिंग के मामले में गूगल भी पीछे नहीं
गूगल के एआई जेमिनि द्वारा भी हर विजुअल कंटेंट के पीस को एआई लेबल कर दिया जाता है. इसमें वो कंटेंट भी शामिल है जो विओ द्वारा बनाया गया होता है. हालांकि कलशी और कोइग्न से बने विज्ञापन पर किसी प्रकार का वॉटरमार्क देखने को नहीं मिलता है.