Digital Gaming Disorder: डिजिटल गेमिंग डिसऑर्डर क्या है? इस लत से उबरने के लिए करें ये काम

Gaming Disorder: यह एक तरह की बीमारी है, जिसे ‘गेमिंग डिसऑर्डर’ नाम दिया गया है. गेम खेलने की ऐसी लत जिससे बाकी काम प्रभावित होने लगे, गेमिंग डिसॉर्डर मानी जा सकती है. इस रिपोर्ट में आपको बताएंगे कि गेमिंग डिसऑर्डर किस हद तक खतरनाक है.

Digital Gaming Disorder/Unsplash
अपूर्वा राय
  • नई दिल्ली,
  • 22 जून 2022,
  • अपडेटेड 11:12 AM IST
  • गेमिंग डिसऑर्डर के शिकार हो रहे बच्चे
  • जानिए इसके कारण और बचाव के उपाय

क्या आप भी ऑनलाइन क्लास के नाम पर बच्चों को मोबाइल दे देते हैं, लेकिन उनकी मॉनिटरिंग नहीं करते. कहीं आपके बच्चे भी तो ऑनलाइन पढ़ाई के नाम पर गेम्स के चंगुल में नहीं फंस रहे. ऑनलाइन गेम से लड़के ही नहीं किशोर उम्र की लड़कियों पर भी नकारात्मक प्रभाव पड़ रहा है. उनके स्वभाव में चिड़चिड़ापन, गुस्सा और अलग रहने की भावना बढ़ रही है. इस रिपोर्ट में हम आपको बताएंगे कि गेमिंग डिसऑर्डर किस हद तक खतरनाक है और बच्चों और युवाओं को कितना प्रभावित कर रहा है.

क्या है डिजिटल गेमिंग डिसऑर्डर?

ऑनलाइन या ऑफलाइन हद से ज्यादा गेम खेलने की लत को गेमिंग डिसॉर्डर कहा जाता है. जब गेम खेलने की लत के कारण आपके बाकी के काम प्रभावित होने लगे तो समझ लीजिए आपको गेमिंग डिसॉर्डर है. गेमिंग डिसॉर्डर में किशोर अपने आप पर नियंत्रण नहीं कर पाते हैं. डबल्यूएचओ (WHO) ने इस डिसॉर्डर को आईसीडी-11 की सबकैटिगरी में रखा गया है.

कितने प्रतिशत भारतीय इसके शिकार?

इंडियन जर्नल ऑफ कम्युनिटी मेडिसिन एंड पब्लिक हेल्थ में प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार, लगभग 3.5 प्रतिशत भारतीय किशोर डिजिटल गेमिंग डिसऑर्डर से पीड़ित हैं. प्यू (अमेरिकी रिसर्च सेंटर) के मुताबिक  97 प्रतिशत किशोर लड़के और 83 प्रतिशत लड़कियां किसी न किसी डिवाइस पर गेम खेलते हैं.कोविड की वजह से दुनिया भर में लगभग सभी चीजें ऑनलाइन उपलब्ध हो गई हैं, जिसके परिणामस्वरूप लोगों में ज्यादा देर तक स्क्रीन के सामने बैठे रहना और मोबाइल के इस्तेमाल की लत लग गई है. 

जानें इंटरनेट गेमिंग डिसऑर्डर के लक्षण?

  • इंटरनेट गेमिंग में जरूरत से ज्यादा व्यस्तता.

  • गेम न खेल पाने पर गुस्सा आना और चिड़चिड़पन महसूस होना

  • रूटीन के काम न करना.

  • गेम के अलावा दूसरी कोई चीज नजर नहीं आना.

  • गेमिंग डिसऑर्डर से जूझ रहा व्यक्ति किसी से मिलना जुलना पसंद नहीं करता.

गेमिंग डिसऑर्डर से अपने बच्चे को कैसे बचाएं

  • पेरेन्ट्स अपने बच्चे के दोस्त बनें. इसके लिए आपके घर में पारिवारिक माहौल होना बहुत जरूरी है. अपने बच्चे के सामने आप खुद भी फोन का कम से कम इस्तेमाल करें. अगर आपने ऑनलाइन क्लास अटेंड करने के लिए अपने बच्चे को फोन दिया है तो उनकी मॉनिटरिंग भी करते रहें.

  • पेरेंट्स को अपने बच्चों को आउटडोर गेम्स के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए. इससे बच्चे आपस में मिलेंगे और उनके व्यवहार में भी परिवर्तन आएगा. दौड़-कूद करने वाले बच्चों की तादाद दिनों दिन कम होती जा रही है. ऐसे में बच्चों में मोबाइल की लत लग रही है. ऐसे में आप जब भी अपने बच्चे की दिनचर्या बनाएं, तो बाहर जाकर खेलने के समय को भी एड करें. 

  • पेरेंट्स को अपने बच्चों की हरकतों का ध्यान रखना बहुत जरूरी है. अगर वे अस्कर अकेले रहने पर खुश होते हैं तो समझिए वह आने वाले समय में अकेला मसहूसकरने वाले हैं. अपने बच्चों को दूसरे बच्चों के साथ कनेक्ट होने का मौका दें. 

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