काम एयरलाइंस की उड़ान संख्या RQ 4401 काबुल से दिल्ली के लिए तैयार थी. इस उड़ान में करीब 200 लोग सवार थे. निर्धारित दूरी 694 मील की थी, जिसे लगभग दो घंटे में पूरा करना था. प्लेन को 35–40 हजार फीट की ऊंचाई पर और 700 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से उड़ना था.
बच्चे का लैंडिंग गियर में बैठना
इंदिरा गांधी एयरपोर्ट पर, जब प्लेन खड़ा हुआ और मुसाफ़िरों को उतरना शुरू हुआ, तो ग्राउंड स्टाफ ने देखा कि प्लेन के पहियों के पास एक बच्चा खड़ा था. बच्चा सिर्फ 13 साल का था और उसने बताया कि वह इसी जहाज से काबुल से दिल्ली आया है, लेकिन सामान्य तरीके से नहीं, बल्कि लैंडिंग गियर में छिपकर.
जानलेवा सफर
लैंडिंग गियर में बैठते समय बच्चे के पास सिर्फ एक छोटा लाल स्पीकर था. प्लेन टेकऑफ के बाद यह जगह पूरी तरह बंद हो गई. इस सफर में बच्चा करीब 90 मिनट माइनस 50 डिग्री तापमान और ऑक्सीजन की कमी में रहा. आमतौर पर इस ऊंचाई पर बिना ऑक्सीजन के जीवित रहना लगभग असंभव है.
बच्चा कुंदुज, अफगानिस्तान का रहने वाला है. उसका उद्देश्य ईरान की राजधानी तेहरान जाना था. काबुल एयरपोर्ट पर बिना टिकट, पासपोर्ट या वीजा के वह रनवे तक पहुंच गया और उसी समय काम एयरलाइंस की दिल्ली जाने वाली फ्लाइट उसके सामने थी.
एयरपोर्ट पर राहत और सुरक्षा
जब यह मामला CISF और IB के संज्ञान में आया, तो बच्चे की चिकित्सकीय जांच की गई. बच्चे की उम्र और स्थिति को देखते हुए, यह तय किया गया कि उसके खिलाफ कोई केस दर्ज नहीं किया जाएगा. फिर बच्चे को वापसी फ्लाइट से काबुल भेजा गया, इस बार सुरक्षित और अंदर बैठकर.
पहले भी किया गया है लैंडिंग गियर में सफर
यूएस फेडरल एविएशन एडमिनिस्ट्रेशन (FAA) के अनुसार, 1947–2021 तक 132 लोग लैंडिंग गियर में यात्रा कर चुके हैं. इनमें से 77% की मौत हो चुकी थी. 31 साल पहले भारत में भी ऐसा मामला हुआ था. पंजाब के भाई प्रदीप और विजय सैनी ने ब्रिटिश एयरवेज की फ्लाइट के लैंडिंग गियर में बैठकर लंदन जाने की कोशिश की. 10 घंटे के सफर में विजय की मौत हो गई, जबकि प्रदीप जिंदा बच गए.
काबुल से दिल्ली तक 13 साल का यह बच्चा सुरक्षित पहुंचना एक अद्भुत और जोखिम भरा करिश्मा था. इस घटना ने न केवल एयरपोर्ट सुरक्षा को झकझोर दिया, बल्कि यह दर्शाया कि बच्चों की जिजीविषा और साहस कभी-कभी असंभव को भी संभव बना देता है.
(शम्स ताहिर खान की रिपोर्ट)
---------End---------