भारत सरकार बेटियों की सुरक्षा के लिए विभिन्न योजनाएं जैसे बेटी बचाव बेटी पढ़ाओ का मिशन चला रही है जिसका अनुपालन नेपाल के कई राज्य करते है. हम बात कर रहे है नेपाल के मूल वासी नेवर जाति की जहां पूर्वज काल से ही बेटी की सुरक्षा और सामाजिक कुरीतियों को दूर करने के लिए विवाह योग्य होने के पूर्व ही युवतियों का विवाह कर दिया जाता है वह भी पुरुष से नहीं बल्कि बेल से जिसको वहां के लोग भगवान मानते हैं. सामाजिक स्तर पर विवाह का सभी रस्म भी यहां निभाया जाता है इस विवाह में.
नेपाल विश्व का एक मात्र हिंदू राष्ट्र देश किसी समय में था जहां पर सनातन रीति रिवाज को पूर्ण पूर्ण रूप से पालन किया आ रहा है. नेवर जाति की इस परंपरा में सोच है कि बेटियों का विवाह 18 साल में होना है पर सामाजिक कुरीतियों का शिकार ना हो बेटियां इसलिए समय से ही उनका विवाह बेल से कर दिया जाता है. यह एक सांसारिक विवाह नहीं बल्कि धार्मिक और सांस्कृतिक अनुष्ठान है. बेल भगवान विष्णु का प्रतीक है जिससे ये युवतियां कभी विधवा नहीं मानी जाती ओर सती प्रथा से भी मुक्ति मिलती है. नेपाल के बीरगंज में एक साथ तीस युवती का कैसे बेटियां सोलह सिंगार कर अपने अभिभावक के आदेश पर बेल को अपना पति रूप में स्वीकार करती है।
पुराने समय में युवतियों को राजा महाराज अपना शिकार करते थे उससे बचने के लिए नेवार समाज दौरा पूर्वज काल से ही बेटियों का विवाह बेल ,सूर्य से कर दिया जाता है जिससे कि सामाजिक की कुरीतियों का शिकार युवतियां ना हो.
क्या है मान्यता
ऐसे तो अनेक मान्यता है पर उनमें से एक है कि जब बच्चियां बाल विधवा हो जाती थीं तब उनको समाज से अलग रखा जाता था. जहां उनकी परछाई भी लोगों पर न पड़ें. उन्हे इस कुरीति से निकालने के लिए, उनका विवाह बेल से दोबारा करवा दिया जाता था, ताकि वह सारी उम्र सुहागन रहें और अपना जीवन दूसरी महीलाओं की तरह ही समाज में बिता सकें. इसी के साथ पहले के वक्त में सती प्रथा का नियम था. इस नियम में अगर पति मर जाता था तो पत्नी को भी जिंदा उसके साथ चिता पर जला दिया जाता था. ऐसे कुप्रथा से बचाने के लिए ही इस योजना की शुरुआत हुई, जो आज खुद एक प्रथा बन चुका है.
यह परंपरा भले ही अटपटी लगे, लेकिन इसके पीछे की सोच बहुत गहरी और प्रगतिशील है. यह परंपरा पीड़ित महिलाओं को समाज के मुख्य धारा से जोड़ने का काम करती थी. हालांकि सालों से चली आ रही यह प्रथा अब वहां की परंपरा का हिस्सा बन चुकी है.
(-रिपोर्टर गणेश शंकर )
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