अलग-अलग देश कैसे छिपाते हैं अपना न्यूक्लियर हथियार? क्या है स्टोरेज की हाई-टेक तकनीक? क्या आग लगते ही फट सकता है?

कई देश न्यूक्लियर हथियारों को छिपाने के लिए डिकॉय (नकली हथियार) और मास्किंग तकनीकों का इस्तेमाल करते हैं. उदाहरण के लिए, रूस और चीन अपने न्यूक्लियर साइलो (मिसाइल भंडार) के आसपास नकली साइलो बनाते हैं, ताकि दुश्मन असली हथियारों का पता न लगा सके. सैटेलाइट इमेज में ये नकली साइलो असली जैसे दिखते हैं, जिससे जासूसी मुश्किल हो जाती है.

How to hide Nuclear Weapon (represenatative Image/Unsplash)
gnttv.com
  • नई दिल्ली,
  • 16 मई 2025,
  • अपडेटेड 12:24 PM IST

क्या आपने कभी सोचा कि दुनिया के सबसे खतरनाक हथियार, यानी न्यूक्लियर बम, कहां छिपाए जाते हैं? कैसे देश अपनी परमाणु शक्ति को दुश्मनों की नजरों से बचाते हैं? क्या ये बम इतने संवेदनशील हैं कि आग लगते ही फट सकते हैं? ये सवाल हर उस शख्स के दिमाग में आते हैं जो वैश्विक सुरक्षा और युद्ध की रणनीतियों को समझना चाहता है. 

न्यूक्लियर हथियार है दुनिया की सबसे खतरनाक चीज 
परमाणु हथियार दुनिया के सबसे विध्वंसक हथियार हैं. एक छोटा सा न्यूक्लियर बम कुछ ही सेकंड में पूरे शहर को तबाह कर सकता है. हिरोशिमा और नागासाकी पर 1945 में हुए हमलों ने इसकी भयावहता को दुनिया के सामने ला दिया था. आज, नौ देशों के पास आधिकारिक तौर पर न्यूक्लियर हथियार हैं: अमेरिका, रूस, चीन, फ्रांस, यूनाइटेड किंगडम, भारत, पाकिस्तान, उत्तर कोरिया और इजराइल (हालांकि इजराइल इसकी पुष्टि नहीं करता). इन देशों के पास हजारों न्यूक्लियर हथियार हैं, जिनमें से कुछ रेडी-टू-फायर मोड में हैं, यानी कुछ ही मिनटों में दागे जा सकते हैं. लेकिन सवाल यह है कि इतने खतरनाक हथियारों को ये देश कहां और कैसे छिपाते हैं?

न्यूक्लियर हथियारों को छिपाने की कला
न्यूक्लियर हथियारों को छिपाना कोई आसान काम नहीं है. ये हथियार न केवल दुश्मन देशों की जासूसी एजेंसियों से बचाए जाते हैं, बल्कि आतंकवादी संगठनों और प्राकृतिक आपदाओं से भी सुरक्षित रखने की जरूरत होती है. हर देश की अपनी गुप्त रणनीति होती है, लेकिन कुछ सामान्य तकनीकें हैं जो इन हथियारों को छिपाने और सुरक्षित रखने में इस्तेमाल होती हैं.

गुप्त भूमिगत बंकर 
न्यूक्लियर हथियारों को स्टोर करने का सबसे आम तरीका है गुप्त भूमिगत बंकर. ये बंकर इतने मजबूत होते हैं कि मिसाइल हमले, भूकंप या बम विस्फोट का भी इन पर असर नहीं होता. उदाहरण के लिए, अमेरिका के चेयेन माउंटेन कॉम्प्लेक्स में न्यूक्लियर हथियारों को स्टोर करने की सुविधा है. यह बंकर 2,000 फीट गहरे ग्रेनाइट पर्वत के अंदर बना है और परमाणु हमले को भी झेल सकता है.

रूस भी अपने न्यूक्लियर हथियारों को यूराल पर्वतों और साइबेरिया के सुदूर इलाकों में गहरे बंकरों में रखता है. इन बंकरों में प्रवेश करने के लिए कई स्तर की सुरक्षा होती है, जैसे बायोमेट्रिक लॉक, लेजर सेंसर और सशस्त्र गार्ड. कुछ बंकरों में तो ऑक्सीजन सप्लाई और स्वतंत्र बिजली प्रणाली भी होती है, ताकि लंबे समय तक आपात स्थिति में भी काम किया जा सके.

भारत और पाकिस्तान जैसे देश भी अपने न्यूक्लियर हथियारों को पहाड़ी इलाकों और गहरे बंकरों में छिपाते हैं. भारत के पोखरण और अन्य गुप्त स्थानों पर न्यूक्लियर हथियारों के भंडारण की बात सामने आई है, हालांकि इसकी आधिकारिक पुष्टि नहीं होती. पाकिस्तान के नूर खान एयरबेस जैसे क्षेत्रों को न्यूक्लियर स्टोरेज से जोड़ा जाता है, लेकिन इनकी सुरक्षा को लेकर हमेशा सवाल उठते हैं.

मोबाइल स्टोरेज का भी लेते हैं सहारा 
कई देश अपने न्यूक्लियर हथियारों को स्थिर बंकरों में रखने के बजाय मोबाइल स्टोरेज का इस्तेमाल करते हैं. इसका मतलब है कि हथियारों को विशेष ट्रकों, रेलगाड़ियों या पनडुब्बियों में रखा जाता है, जो लगातार स्थान बदलते रहते हैं. यह तकनीक खासकर रूस और उत्तर कोरिया में लोकप्रिय है. रूस की "डेड हैंड" प्रणाली, जो ऑटोमैटिक रूप से न्यूक्लियर हथियार लॉन्च कर सकती है, मोबाइल लॉन्चरों पर निर्भर करती है.

उत्तर कोरिया ने अपने न्यूक्लियर हथियारों को गुप्त सुरंगों और मोबाइल लॉन्चरों में रखा है, ताकि अमेरिका या दक्षिण कोरिया की सैटेलाइट्स इन्हें ट्रैक न कर सकें. ये मोबाइल यूनिट्स इतनी तेजी से स्थान बदलती हैं कि इनका पता लगाना लगभग असंभव होता है.

कुछ देश समुद्र के नीचे रखते हैं 
न्यूक्लियर हथियारों को छिपाने का एक और तरीका है पनडुब्बियां. अमेरिका, रूस, चीन और भारत जैसे देश अपनी बैलिस्टिक मिसाइल पनडुब्बियों (SSBN) में न्यूक्लियर हथियार रखते हैं. ये पनडुब्बियाँ महीनों तक समुद्र के नीचे रह सकती हैं और दुश्मन के रडार से बच सकती हैं. भारत की INS अरिहंत और रूस की बोरेई-क्लास पनडुब्बियां न्यूक्लियर हथियारों से लैस हैं, जो किसी भी समय हमला कर सकती हैं.

पनडुब्बियां इसलिए भी सुरक्षित हैं क्योंकि इन्हें ट्रैक करना बेहद मुश्किल होता है. समुद्र की गहराइयों में छिपी ये पनडुब्बियाँ दुश्मन के लिए एक निरंतर खतरा बनी रहती हैं.

डिकॉय और मास्किंग है हथियार छिपाने का तरीका 
कई देश न्यूक्लियर हथियारों को छिपाने के लिए डिकॉय (नकली हथियार) और मास्किंग तकनीकों का इस्तेमाल करते हैं. उदाहरण के लिए, रूस और चीन अपने न्यूक्लियर साइलो (मिसाइल भंडार) के आसपास नकली साइलो बनाते हैं, ताकि दुश्मन असली हथियारों का पता न लगा सके. सैटेलाइट इमेज में ये नकली साइलो असली जैसे दिखते हैं, जिससे जासूसी मुश्किल हो जाती है.

इसके अलावा, कुछ देश अपने न्यूक्लियर हथियारों को सामान्य सैन्य अड्डों या गोदामों में छिपाते हैं, ताकि ये आम हथियारों की तरह दिखें. इजराइल की "जानबूझकर अस्पष्टता" नीति इसका बेहतरीन उदाहरण है, जहां वह अपने न्यूक्लियर हथियारों के अस्तित्व को न तो स्वीकार करता है और न ही इनकार करता है.

हाई-टेक स्टोरेज तकनीक
न्यूक्लियर हथियारों को स्टोर करने के लिए अत्याधुनिक तकनीकों का इस्तेमाल होता है, जो न केवल उनकी सुरक्षा सुनिश्चित करती हैं, बल्कि दुर्घटनाओं को भी रोकती हैं.

1. पर्यावरण नियंत्रण सिस्टम
न्यूक्लियर हथियार काफी संवेदनशील होते हैं और इन्हें कुछ निर्धारित तापमान, हमीदित्य और प्रेशर में रखना पड़ता है. स्टोरेज सुविधाओं में हाई-टेक पर्यावरण नियंत्रण सिस्टम होते हैं, जो हथियारों को क्षति से बचाते हैं. उदाहरण के लिए, प्लूटोनियम और यूरेनियम जैसे रेडियोएक्टिव पदार्थों को ऑक्सीकरण से बचाने के लिए विशेष कंटेनरों में रखा जाता है.

2. सेंसर और अलार्म सिस्टम
न्यूक्लियर स्टोरेज साइट्स पर अत्याधुनिक सेंसर और अलार्म सिस्टम लगे होते हैं. ये सेंसर किसी भी अनधिकृत प्रवेश, तापमान में बदलाव या रेडिएशन लीक को तुरंत पकड़ लेते हैं. कुछ सिस्टम तो इतने एडवांस हैं कि वे सैटेलाइट्स के जरिए रियल-टाइम मॉनिटरिंग करते हैं.

3. ऑटोमैटिक सेफ्टी सिस्टम 
कुछ देशों ने अपने न्यूक्लियर हथियारों को ऑटोमैटिक सेफ्टी सिस्टम से लैस किया है. उदाहरण के लिए, रूस की "डेड हैंड" सिस्टम ऐसी स्थिति में ऑटोमैटिक रूप से न्यूक्लियर हमला शुरू कर सकती है. ये सिस्टम इतने हाई तक हैं कि कि इन्हें हैक करना लगभग नामुमकिन है.

4. न्यूक्लियर ट्रिगर और लॉक
न्यूक्लियर हथियारों को अनधिकृत उपयोग से बचाने के लिए विशेष न्यूक्लियर ट्रिगर और लॉक सिस्टम होते हैं. ये लॉक केवल उच्च-स्तरीय अधिकारियों के कोड या बायोमेट्रिक डेटा से ही खुलते हैं. अमेरिका में न्यूक्लियर हथियारों को सक्रिय करने के लिए "न्यूक्लियर फुटबॉल" नामक एक सिस्टम का उपयोग होता है, जो राष्ट्रपति के पास रहता है.

क्या आग लगते ही न्यूक्लियर बम फट सकता है?
यह सवाल हर किसी के मन में आता है. क्या न्यूक्लियर बम इतने नाजुक हैं कि आग लगने से फट जहां? इसका जवाब है: नहीं, लेकिन पूरी तरह सुरक्षित भी नहीं. न्यूक्लियर हथियारों को इस तरह डिजाइन किया जाता है कि वे केवल विशिष्ट परिस्थितियों में ही सक्रिय हों. एक न्यूक्लियर विस्फोट के लिए सटीक ट्रिगर मैकेनिज्म और रेडियोएक्टिव सामग्री का कॉम्बिनेशन जरूरी है.

हालांकि, अगर स्टोरेज साइट पर आग लगती है, तो रेडिएशन लीक होने का खतरा हो सकता है. उदाहरण के लिए, अगर प्लूटोनियम या यूरेनियम के कंटेनर क्षतिग्रस्त हो जाएं, तो रेडियोएक्टिव पदार्थ पर्यावरण में फैल सकता है, जो हिरोशिमा जैसे दीर्घकालिक प्रभाव डाल सकता है. इसलिए, न्यूक्लियर स्टोरेज साइट्स पर अग्नि सुरक्षा के लिए विशेष सिस्टम, जैसे फोम-आधारित फायर एक्सटीन्गुइशेर और ऑटोमैटिक कूलिंग सिस्टम, लगाए जाते हैं.

न्यूक्लियर हथियारों को छिपाना और उनकी सुरक्षा करना एक जटिल और खतरनाक खेल है. हर देश अपनी गुप्त रणनीतियों और हाई-टेक तकनीकों के जरिए इन हथियारों को सुरक्षित रखने की कोशिश करता है, लेकिन खतरा हमेशा बना रहता है. आग लगने से न्यूक्लियर बम शायद न फटे, लेकिन रेडिएशन लीक जैसी दुर्घटनाएं पूरी दुनिया के लिए खतरा बन सकती हैं. 

 

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