मानवाधिकार की लड़ाई लड़ने वाली संस्थाएं पिछले कई साल से मृत्यु दंड को खत्म करने की मांग कर रही हैं. इसी कड़ी में अब मलेशिया इसे हमेशा के लिए खत्म करने जा रहा है. सोमवार को मलेशिया में सांसदों ने सजा-ए-मौत की सजा और आजीवन कारावास की सजा को खत्म करने के लिए वोट किया है. पहले, हत्या और नशीली दवाओं की तस्करी जैसे कुछ अपराधों के लिए मौत की सजा दी जाती थी. लेकिन अब इसे जल्द ही खत्म किया जा सकता है. नए प्रावधानों में जजों के पास 30 से 40 साल की जेल की सजा या कोड़े मारने जैसी वैकल्पिक सजा देने का विकल्प रखा गया है.
1300 लोगों को मिल सकती है राहत
मलेशिया के डिप्टी लॉ मिनिस्टर रामकरपाल सिंह ने संसदीय बहस के दौरान कहा, "जिन इरादों या जिन लक्ष्यों के लिए मौत की सजा देना शुरू की गई थी, उसके परिणाम वैसे नहीं आए जैसे हमने सोचे थे.” अगर मलेशिया में ये कानून आ जाता है तो इस फैसले के मौत की सजा या आजीवन कारावास का सामना कर रहे 1,300 से अधिक लोगों को राहत मिल सकती है.
हालांकि, ऐसा नहीं है कि इसे पहली बार पेश किया गया है, इससे पहले इस बिल को 6 अक्टूबर, 2022 को पेश किया गया था, लेकिन तब इसपर बहस नहीं हो पाई थी.
ब्रिटिश काल से है सजा-ए-मौत का प्रावधान
दरअसल, मलेशिया के क्रिमिनल जस्टिस सिस्टम में सजा-ए-मौत का प्रावधान ब्रिटिश कोलोनियल एडमिनिस्ट्रेशन के समय से है. हालांकि, तब मौत की सजा मूल रूप से हत्या के लिए लागू की गई थी. लेकिन जब मलाया (अब का मलेशिया) को 1957 में आजादी मिली, तो उसे अंग्रेजों की शुरू की गई मृत्युदंड सहित दूसरी कानून व्यवस्था विरासत में मिली.
दुनिया में सबसे कठोर ड्रग कानून है मलेशिया का
वहीं, 1952 में ब्रिटिश सरकार ने ड्रग्स अधिनियम बनाया, लेकिन तब धारा 39बी के तहत मृत्युदंड - 1975 तक लागू नहीं की गई थी. 1983 तक धारा 39बी के लिए मौत की सजा विवेकाधीन रही. इसके कुछ समय बाद इसे अपना लिया गया और इसके साथ मलेशिया का ड्रग कानून दुनिया का सबसे कठोर कानून बन गया.
आज की बात करें तो मलेशिया में हत्या, नशीले पदार्थों की तस्करी, राज्य के खिलाफ युद्ध छेड़ने और आतंकवाद जैसे 34 अपराधों के लिए मौत की सजा दी जाती है. इनमें से 11 में अनिवार्य मौत की सजा दी जाती है. वर्तमान में, मलेशिया दुनिया भर के 53 देशों में से एक है जो जहां अभी भी सजा-ए-मौत दी जाती है.