Explainer: क्या है नेपाल की एमसीसी परियोजना, जिसपर आमने-सामने आ गए हैं अमेरिका और चीन

नेपाल के सत्ताधारी गठबंधन ने अमेरिकी सहयोग परियोजना एमसीसी को संसद ने बहुमत से पास कर दिया है. रविवार की देर शाम तक चली संसद की कार्रवाही में एमसीसी को सदन से पारित कर दिया गया है.   

नेपाल के प्रधानमंत्री शेर बहादुर देउबा (फाइल फोटो)
gnttv.com
  • नई दिल्ली ,
  • 28 फरवरी 2022,
  • अपडेटेड 4:48 PM IST
  • एमसीसी समझौते पर नेपाल और अमेरिका ने 2017 में हस्ताक्षर किए थे.
  • नेपाल को मिलेगा 50 करोड़ अमेरिकी डॉलर का एमसीसी अनुदान.

चीन की चेतावनी, विरोध और हस्तक्षेप के बावजूद नेपाल की संसद ने अमेरिकी परियोजना एमसीसी को पास कर दिया है. चीन के तमाम विरोध, चेतावनी और हस्तक्षेप के बावजूद नेपाल के सत्ताधारी गठबंधन ने अमेरिकी सहयोग परियोजना एमसीसी को संसद ने बहुमत से पास कर दिया है. रविवार की देर शाम तक चली संसद की कार्रवाही में एमसीसी को सदन से पारित कर दिया गया है.   

रविवार दोपहर से शुरू हुई संसद की कार्रवाही में 50 मिलियन अमेरिकी डॉलर के आर्थिक सहयोग संबंधी एमसीसी परियोजना पर चर्चा कराने के बाद हुए मतदान में इसे बहुमत से पारित कर दिया गया है. अमेरिका ने इस परियोजना को हर हाल में 28 फरवरी तक संसद से पास करने का अल्टिमेटम दिया था. अल्टिमेटम के एक दिन पहले ही सत्ताधारी गठबंधन में नाटकीय ढंग से आए परिवर्तन के बाद इस परियोजना को संसद से मंजूरी मिल गई.  ऐसे में सवाल उठता है कि क्या है ये एमसीसी परियोजना जिसपर आमने-सामने आ गए हैं अमेरिका और चीन?

क्या है एमसीसी परियोजना?

मिलेनियम चैलेंज कॉरपोरेशन (Millennium Challenge Corporation) के समझौते पर नेपाल और अमेरिका ने 2017 में हस्ताक्षर किए थे. जिसका उद्देश्य नेपाल के बुनियादी ढांचे जैसे विद्युत लाइनों का निर्माण और राष्ट्रीय राजमार्गों का सुधार करना है. एमसीसी 2004 में अमेरिकी कांग्रेस द्वारा स्थापित एक द्विपक्षीय अमेरिकी विदेशी सहायता एजेंसी है. एमसीसी समझौते के तहत अमेरिकी अनुदान सहायता को स्वीकार करना है या नहीं, इस पर नेपाल के राजनीतिक दलों में मतभेद थे. 

50 करोड़ अमेरिकी डॉलर का एमसीसी अनुदान

50 करोड़ अमेरिकी डॉलर की विवादास्पद मिलेनियम कॉर्पोरेशन चैलेंज (MCC) परियोजना के नेपाल की संसद में पास होने के बाद अमेरिकी दूतावास ने शनिवार को एक बयान जारी कर कहा, ‘‘50 करोड़ अमेरिकी डॉलर का एमसीसी अनुदान अमेरिकी लोगों की ओर से एक उपहार है. दोनों देशों के बीच साझेदारी से नेपाल में रोजगार और बुनियादी ढांचे का सृजन होगा, जिससे नेपालियों के जीवन में सुधार होगा.’’ बयान में कहा गया है, ‘‘इस परियोजना का अनुरोध नेपाली सरकार और नेपाली लोगों ने किया था और इसे पारदर्शी रूप से देश में गरीबी कम करने और नेपाल की अर्थव्यवस्था को विकसित करने के लिए तैयार किया गया था."

एमसीसी कॉम्पेक्ट के तहत 315 किमी डबल सर्किट 400kV ट्रांसमिशन लाइनों का निर्माण किया जाएगा. ट्रांसमिशन लाइनों के जिन पांच खंडों का निर्माण किया जाना है, उनमें-न्यू बुटवल-इंडिया बॉर्डर (18 किमी), न्यू बुटवल-न्यू दमौली (90 किमी), न्यू दमौली-रतमाते (90 किमी), रतमाते-न्यू हेटौडा (58 किमी) और रतमाते-लपसेफेडी (59 किमी) शामिल हैं. इसके साथ ही 50 करोड़ डॉलर की मदद का एक हिस्सा सड़कों के सुधार पर भी खर्च किया जाएगा. 

नेपाल के राजनीतिक दलों में मतभेद 

नेपाल के प्रधानमंत्री शेर बहादुर देउबा के नेतृत्व में रहे गठबंधन के दो प्रमुख घटक दल माओवादी और एकीकृत समाजवादी पार्टी शुरू से ही इस बात पर अड़े थे कि एमसीसी नेपाल के हित में नहीं है. यह राष्ट्रघाती समझौता है इसको स्वीकार नहीं करना चाहिए. इन दोनों दलों के विरोध के पीछे चीन का दबाब काम कर रहा था. चीन ने खुलेआम एमसीसी नहीं स्वीकारने के लिए नेपाली राजनीतिक दलों पर दबाब डाला था.  चीन का यह तर्क था कि अमेरिका एमसीसी के जरिए नेपाल में अपनी सैन्य उपस्थिति बढ़ाएगा और वहां से तिब्बत के जरिए चीन को अस्थिर करने की कोशिश कर सकता है. इसको लेकर चीन की सरकारी मीडिया के जरिए लगातार आपत्ति जताई जाने लगी.  

चीन बना रहा था दबाव 

इतना ही नहीं चाईनीज कम्युनिस्ट पार्टी के विदेश विभाग के प्रमुख Sang Tao हर दूसरे दिन नेपाल के सत्ताधारी नेताओं को फोन के जरिए और वर्चुअलमीटिंग कर एमसीसी को अस्वीकृत करने के लिए दबाब डालते रहे. विदेश विभाग के अन्य उपप्रमुख और सहायक मंत्री तो लगभग रोज ही यहां के कम्युनिस्ट नेताओं को फोन के जरिए दबाब डालते रहे. यही वजह थी कि अमेरिकी सहायक विदेश मंत्री डोनाल्ड लू ने नेपाल के प्रधानमंत्री देउबा सहित सत्तारूढ़ दल के नेता प्रचंड और माधव नेपाल को फोन कर 28 फरवरी तक हर हाल में एमसीसी को संसद से पारित करने के लिए दबाब डाला. 

अमेरिका ने दी थी चेतावनी 

इतना ही नहीं अमेरिकी सहायक विदेश मंत्री लू ने नेपाल सरकार और नेपाली राजनीतिक दलों के नेताओं को चेतावनी दी कि अगर संसद से एमसीसी पास नहीं होता है तो इसे सीधे-सीधे चीन का हस्तक्षेप माना जाएगा. उसके बाद नेपाल के साथ कूटनीतिक संबंधों पर अमेरिका पुनर्विचार करने पर मजबूर हो जाएगा. अमेरिकी चेतावनी के बाद प्रधानमंत्री ने इसे गंभीरता से लिया और सत्तारूढ़ गठबंधन को तोड़ कर भी एमसीसी पास करने की कोशिश करने लगे. 

अमेरिका के मंत्री की चेतावनी के 24 घंटे बाद ही अमेरिका के विदेश मंत्री ने एक भारतीय मीडिया को इंटरव्यू देते हुए नेपाल की अपनी नीति पर पुनर्विचार करने की बात कही. साथ ही अमेरिका सहित सभी मित्र देशों और आर्थिक मदद करने वाली संस्थाओं वर्ल्ड बैंक, एशियाई विकास बैंक, यूएन की तमाम डोनर संस्थाओं के तरफ से हर साल दी जाने वाली आर्थिक मदद पर इसका सीधा असर पड़ने तक की बात कह डाली. 

चीन ने दी नेपाल को अमेरिकी सहयोग को लेकर सतर्क रहने की सलाह 

अमेरिका के इन बयानों के बाद बौखलाए चीन ने अपने विदेश मंत्रालय के जरिए अमेरिका विरोध करना शुरू कर दिया था.  पिछले दिनों 24 घंटे में दो बार चीन के तरफ से नेपाल को अमेरिकी सहयोग को लेकर सतर्क रहने को कहा गया.  इतना ही अमेरिका की चेतावनी पर चीन ने तंज कसते हुए कहा कि यह कैसी आर्थिक मदद है जो डरा धमका कर दी जा रही है. अमेरिका की इस धमकीपूर्ण कूटनीति का हम विरोध करते हैं. नेपाल एक स्वतंत्र देश है इसलिए इस तरह की धमकी को बर्दाश्त नहीं किया जाएगा. जवाब में अमेरिका ने भी कहा कि नेपाल अपना निर्णय लेने के लिए स्वतंत्र है और जिस देश से चाहे वो आर्थिक मदद ले सकता है. इसमें किसा तीसरे देश को बोलने की या सलाह देने की कोई जरूरत नहीं है. पलटकर चीन ने भी अमेरिका को अगले ही दिन कहा कि यह आर्थिक मदद है या पंडोरा बॉक्स जो जबरदस्ती नेपाल के गले में बांधा जा रहा है. 

अमेरिका ने दी चीन को पटखनी 

अमेरिका और चीन के बीच कूटनीतिक की तमाम मर्यादा को लांघते हुए निम्न स्तर की भाषा के प्रयोग के बीच आखिरकार चीन को झुकना पडा. इतना ही नहीं उसे शर्मिंदगी का सामना भी करना पड़ा जब सत्ता में बैठे उसके विश्वासपात्र तीन नेताओं ने चीन का विश्वास भरोसा तोड़कर अमेरिका का पक्ष लेने का फैसला किया. नेपाल में यह चीन को बहुत बडा झटका है और डराकर ही सही अमेरिका चीन को उसके पड़ोस में ही पटखनी देने में कामयाब हो गया है. अब बौखलाया चीन नेपाल के खिलाफ क्या कदम उठाएगा इसको लेकर नेपाल के कम्युनिस्ट नेताओं में अलग ही चिंता है. 

 

 

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