पाकिस्तान की सेना और उसकी हरकतें हमेशा से सुर्खियों में रही हैं, लेकिन इस बार मामला कुछ और ही है! भारत के खिलाफ ऑपरेशन सिंदूर में करारी हार झेलने के बाद भी पाकिस्तान ने अपने सेना प्रमुख जनरल आसिम मुनीर को फील्ड मार्शल के सर्वोच्च पद से नवाजा है. लेकिन ये फील्ड मार्शल का पद होता क्या है? पाकिस्तान में इसकी क्या भूमिका है? आसिम मुनीर से पहले यह सम्मान किसे मिला?
फील्ड मार्शल का पद है सर्वोच्च सैन्य सम्मान
फील्ड मार्शल किसी भी देश की सेना में सबसे ऊंचा और प्रतिष्ठित रैंक होता है. यह पांच सितारा रैंक (NATO कोड: OF-10) है, जो जनरल (चार सितारा) से ऊपर होता है. यह पद आमतौर पर युद्धकाल में असाधारण सैन्य उपलब्धियों या विशेष परिस्थितियों में दिया जाता है. यह रैंक न केवल सैन्य बल्कि प्रतीकात्मक और औपचारिक महत्व भी रखता है. फील्ड मार्शल को आजीवन सैन्य अधिकारी माना जाता है, और यह रैंक मृत्यु तक उनके साथ रहता है. इस पद को प्राप्त करने वाला व्यक्ति न केवल सैन्य बल्कि राष्ट्रीय स्तर पर भी एक प्रतीक के रूप में देखा जाता है.
भारत, पाकिस्तान, यूनाइटेड किंगडम, जर्मनी जैसे देशों में यह रैंक प्रसिद्ध है, लेकिन इसे बहुत कम लोगों को दिया जाता है. यह रैंक युद्ध में असाधारण नेतृत्व, रणनीतिक कुशलता और देश की संप्रभुता की रक्षा के लिए दी जाती है. हालांकि, यह एक मानद पद होता है, जिसके साथ कोई अतिरिक्त प्रशासनिक या कमांड शक्तियां नहीं मिलतीं.
पाकिस्तान में फील्ड मार्शल की भूमिका
पाकिस्तान में फील्ड मार्शल का पद सेना का सर्वोच्च रैंक है, जो थल सेना के जनरल, वायु सेना के एयर चीफ मार्शल और नौसेना के एडमिरल से ऊपर होता है. यह एक औपचारिक और सम्मानजनक रैंक है, जो सामान्यतः नियमित सैन्य सेवा के लिए नहीं, बल्कि असाधारण योगदान के लिए दी जाती है. इस रैंक के साथ कोई अतिरिक्त संवैधानिक या प्रशासनिक शक्तियां नहीं जुड़ी होतीं. इसका मतलब है कि फील्ड मार्शल बनने के बाद भी व्यक्ति अपनी वर्तमान भूमिका (जैसे कि आर्मी चीफ) में ही कार्य करता है, लेकिन उसका कद और सम्मान बढ़ जाता है.
पाकिस्तान में फील्ड मार्शल का पद ऐतिहासिक और राजनीतिक संदर्भों में विशेष महत्व रखता है. यह रैंक आमतौर पर तब दी जाती है, जब सेना का कोई अधिकारी देश की सुरक्षा या सैन्य रणनीति में महत्वपूर्ण योगदान देता है. हालांकि, कई बार यह रैंक राजनीतिक कारणों से भी दी जाती है, जैसा कि जनरल अयूब खान के मामले में देखा गया था.
पाकिस्तान में फील्ड मार्शल
पाकिस्तान के इतिहास में फील्ड मार्शल का पद अब तक केवल दो बार दिया गया है. पहला फील्ड मार्शल जनरल मोहम्मद अयूब खान थे, जिन्हें 1959 में यह रैंक दी गई थी. अयूब खान पाकिस्तान के सैन्य तानाशाह और दूसरे राष्ट्रपति (1958-1969) थे. उन्होंने 1958 में तख्तापलट के जरिए सत्ता हासिल की और खुद को फील्ड मार्शल की उपाधि दी. यह रैंक उनकी सैन्य और राजनीतिक शक्ति को मजबूत करने के लिए दी गई थी. उनके शासनकाल में पाकिस्तान में मार्शल लॉ लागू था, और उनकी सैन्य और राजनीतिक भूमिकाएं आपस में गहरे रूप से जुड़ी हुई थीं. अयूब खान ने 1959 से 1967 तक फील्ड मार्शल के रूप में कार्य किया और उनकी मृत्यु 1974 में रावलपिंडी में हुई.
अयूब खान का फील्ड मार्शल बनना उनके सैन्य नेतृत्व से ज्यादा उनकी राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं से प्रेरित था. उन्होंने इस रैंक का उपयोग अपने शासन को वैधता प्रदान करने और जनता के बीच अपनी छवि को मजबूत करने के लिए किया.
आसिम मुनीर को फील्ड मार्शल बनाना क्या इनाम है?
20 मई 2025 को पाकिस्तान की शहबाज शरीफ सरकार ने अपने सेना प्रमुख जनरल आसिम मुनीर को फील्ड मार्शल के पद पर प्रमोट करने का फैसला किया. यह निर्णय प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ की अध्यक्षता में हुई कैबिनेट बैठक में लिया गया. पाकिस्तानी मीडिया और सरकार ने दावा किया कि यह पद मुनीर को "ऑपरेशन बनयान-उम-मर्सूस" में उनके "बेहतरीन नेतृत्व" और "रणनीतिक जीत" के लिए दिया गया है.
आसिम मुनीर पाकिस्तान के 11वें सेना प्रमुख हैं और 2022 से इस पद पर कार्यरत हैं. उन्होंने इंटर-सर्विसेज इंटेलिजेंस (ISI) और मिलिट्री इंटेलिजेंस (MI) के प्रमुख के रूप में भी काम किया है. शहबाज शरीफ सरकार ने आसिम मुनीर का कार्यकाल पहले ही तीन साल से बढ़ाकर पांच साल कर दिया था, और अब उन्हें फील्ड मार्शल की उपाधि दी गई है.