चोरी का है पाकिस्तान का न्यूक्लियर बम! साजिश और विश्वासघात है पीछे की कहानी… जानें किसने बनाया था? कौन है अब्दुल कादिर खान?

2004 में, खान की अंतरराष्ट्रीय तस्करी का भंडाफोड़ हुआ. यह पता चला कि खान ने न केवल पाकिस्तान के लिए काम किया, बल्कि ईरान, लीबिया और उत्तर कोरिया को भी परमाणु तकनीक बेची. यह खुलासा एक वैश्विक scandal बन गया. खान को "परमाणु तस्कर" कहा जाने लगा. अमेरिका और यूरोपीय देशों ने पाकिस्तान पर दबाव डाला कि खान को सजा दी जाए.

अब्दुल कादिर खान
अपूर्वा सिंह
  • नई दिल्ली,
  • 12 मई 2025,
  • अपडेटेड 12:21 PM IST
  • यूरेनको में साधारण नौकरी थी
  • चोरी का है पाकिस्तान का परमाणु बम

पिछले कुछ दिनों से पाकिस्तान के न्यूक्लियर बम की चर्चा चल रही है. हालांकि, बहुत कम लोग जानते हैं कि पाकिस्तान की न्यूक्लियर तकनीक के पीछे एक रहस्य, जिसमें चोरी, विश्वासघात, और अंतरराष्ट्रीय साजिश का ताना-बाना बुना है. कैसे एक व्यक्ति, जिसे दुनिया "परमाणु चोर" कहती है, ने यूरोप की गलियों से लेकर पाकिस्तान की गुप्त प्रयोगशालाओं तक का सफर तय किया? कैसे उसने एक देश को परमाणु शक्ति बनाया, लेकिन बदले में बदनामी और सवालों का तूफान खड़ा कर दिया? 

भारत का परमाणु परीक्षण और पाकिस्तान की बेचैनी
सब कुछ शुरू हुआ 18 मई 1974 को, जब भारत ने राजस्थान के पोखरण में अपना पहला परमाणु परीक्षण "स्माइलिंग बुद्धा" किया. यह वह पल था, जब भारत ने दुनिया को बता दिया कि वह अब केवल एक विकासशील देश नहीं, बल्कि एक उभरती हुई शक्ति है. लेकिन इस परीक्षण ने पड़ोसी देश पाकिस्तान में हलचल मचा दी. पाकिस्तान के तत्कालीन प्रधानमंत्री जुल्फिकार अली भुट्टो ने इसे चुनौती के रूप में लिया. उन्होंने ऐलान किया, "अगर भारत परमाणु बम बनाएगा, तो हम हर कीमत पर अपना बम बनाएंगे. चाहे हमें घास खानी पड़े, पत्ते चबाने पड़ें, या भूखे रहना पड़े!"

पाकिस्तान के लिए यह केवल सैन्य प्रतिस्पर्धा का सवाल नहीं था, बल्कि उसकी राष्ट्रीय अस्मिता और क्षेत्रीय प्रभाव का मसला था. लेकिन एक बड़ा सवाल था: कैसे? पाकिस्तान के पास न तो तकनीक थी, न संसाधन, और न ही वैज्ञानिक विशेषज्ञता. फिर भी, एक व्यक्ति ने इस असंभव को संभव कर दिखाया. उसका नाम था अब्दुल कादिर खान. लेकिन यह कहानी केवल एक व्यक्ति की नहीं, बल्कि चोरी, साजिश और विश्वासघात की है.

अब्दुल कादिर खान- एक वैज्ञानिक या परमाणु चोर?
अब्दुल कादिर खान का जन्म 1936 में भारत के भोपाल में हुआ था. 1947 में भारत-पाकिस्तान बंटवारे के बाद उनका परिवार कराची चला गया. खान एक होनहार छात्र थे. उन्होंने पाकिस्तान में धातुकर्म (Metallurgy) में डिग्री हासिल की और फिर उच्च शिक्षा के लिए यूरोप का रुख किया. 1960 के दशक में, खान बेल्जियम, नीदरलैंड्स और जर्मनी में पढ़ाई और काम कर रहे थे. उनकी जिंदगी साधारण थी, लेकिन उनकी महत्वाकांक्षा असाधारण.
1972 में, खान को नीदरलैंड्स की एक कंपनी, यूरेनको (URENCO), में नौकरी मिली.

यूरेनको यूरोप की एक प्रमुख कंपनी थी, जो परमाणु रिएक्टरों के लिए यूरेनियम संवर्धन (Uranium Enrichment) की तकनीक विकसित करती थी. यह तकनीक बेहद गोपनीय थी, क्योंकि इसका इस्तेमाल न केवल बिजली उत्पादन के लिए, बल्कि परमाणु हथियार बनाने के लिए भी हो सकता था. खान को यहां तकनीकी अनुवादक और इंजीनियर के तौर पर काम मिला. लेकिन यहीं से शुरू हुई चोरी की वह कहानी, जिसने इतिहास बदल दिया.

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चोरी और साजिश की शुरुआत 
अब्दुल कादिर खान की नौकरी यूरेनको में साधारण थी, लेकिन उनकी पहुंच संवेदनशील दस्तावेजों और ब्लूप्रिंट तक थी. वह सेंट्रीफ्यूज तकनीक के बारे में सीख रहे थे, जो यूरेनियम को संवर्धित करने का सबसे प्रभावी तरीका था. यह तकनीक परमाणु बम बनाने की कुंजी थी. 1974 में भारत के परमाणु परीक्षण की खबर ने खान को झकझोर दिया. उन्होंने महसूस किया कि यह उनके लिए देशभक्ति दिखाने का मौका है. लेकिन इसके लिए उन्हें कुछ ऐसा करना था, जो नैतिकता और कानून की सीमाओं से परे था.

अब्दुल कादिर ने यूरेनको के गोपनीय दस्तावेजों की चोरी शुरू कर दी. उन्होंने सेंट्रीफ्यूज डिजाइनों, ब्लूप्रिंट्स और तकनीकी नोट्स को कॉपी करना शुरू किया. यह कोई छोटी-मोटी चोरी नहीं थी. ये दस्तावेज विश्व की सबसे संवेदनशील तकनीकों में से एक थे. खान ने अपने घर में इन दस्तावेजों को छिपाया और धीरे-धीरे उन्हें पाकिस्तान भेजने की योजना बनाई. लेकिन यह काम इतना आसान नहीं था. यूरेनको में सुरक्षा कड़ी थी, और किसी भी संदिग्ध गतिविधि पर नजर रखी जाती थी.

खान ने अपनी चालाकी से इस चोरी को अंजाम दिया. वह एक साधारण कर्मचारी की तरह व्यवहार करते थे, लेकिन रात के अंधेरे में वह दस्तावेजों को स्कैन करते और नोट्स बनाते. 1975 तक, खान ने सेंट्रीफ्यूज तकनीक के प्रमुख डिजाइनों को चुरा लिया था. लेकिन अब सवाल था: इन दस्तावेजों को पाकिस्तान कैसे पहुंचाया जाए?

पाकिस्तान का बुलावा
1975 में, अब्दुल कादिर ने पाकिस्तान के तत्कालीन नेतृत्व को एक पत्र लिखा. उन्होंने दावा किया कि उनके पास ऐसी तकनीक है, जो पाकिस्तान को परमाणु शक्ति बना सकती है. जुल्फिकार अली भुट्टो ने इस प्रस्ताव को गंभीरता से लिया. खान को तुरंत पाकिस्तान बुलाया गया. दिसंबर 1975 में, खान अपनी पत्नी और बच्चों के साथ नीदरलैंड्स से पाकिस्तान लौट आए. उनके बैग में केवल कपड़े और सामान नहीं, बल्कि चुराए गए दस्तावेजों की प्रतियां भी थीं.

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पाकिस्तान में खान का स्वागत एक नायक की तरह हुआ. भुट्टो ने उन्हें परमाणु कार्यक्रम की जिम्मेदारी सौंपी. खान ने कहुटा में एक गुप्त प्रयोगशाला स्थापित की, जिसे बाद में "खान रिसर्च लैबोरेट्री" (KRL) के नाम से जाना गया. यह प्रयोगशाला पाकिस्तान के परमाणु बम की नींव बनी. लेकिन यह केवल शुरुआत थी. खान को अब इस तकनीक को लागू करना था, और इसके लिए संसाधनों, वैज्ञानिकों और सामग्रियों की जरूरत थी.

अंतरराष्ट्रीय तस्करी का जाल
पाकिस्तान के पास यूरेनियम तो था, लेकिन उसे संवर्धित करने के लिए सेंट्रीफ्यूज और अन्य उपकरण चाहिए थे. खान ने एक अंतरराष्ट्रीय तस्करी नेटवर्क स्थापित किया. उन्होंने यूरोप, कनाडा, और अन्य देशों से चोरी-छिपे उपकरण मंगवाए. यह नेटवर्क इतना जटिल था कि इसमें दलाल, मध्यस्थ और भ्रष्ट अधिकारी शामिल थे. खान ने नकली कंपनियां बनाईं, जिनके जरिए वह संवेदनशील सामग्रियां खरीदते थे.

उदाहरण के लिए, खान ने जर्मनी और स्विट्जरलैंड से सेंट्रीफ्यूज के पुर्जे मंगवाए. ये पुर्जे कथित तौर पर "शांतिपूर्ण" परमाणु ऊर्जा के लिए थे, लेकिन वास्तव में इन्हें हथियार-ग्रेड यूरेनियम बनाने में इस्तेमाल किया गया. खान की चालाकी ऐसी थी कि वह पकड़े नहीं गए. 1980 के दशक तक, कहुटा में सेंट्रीफ्यूज की संख्या हजारों में पहुंच गई थी. 

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चीन की छिपी मदद
खान की चोरी ने पाकिस्तान को तकनीक दी, लेकिन चीन ने इसे और मजबूत किया. 1980 के दशक में, चीन ने पाकिस्तान के साथ गुप्त सहयोग शुरू किया. चीन ने पाकिस्तान को परमाणु बम के डिजाइन और सामग्रियां प्रदान कीं. यह सहयोग इतना गोपनीय था कि इसे दुनिया से छिपाया गया. चीन का मकसद था भारत को संतुलित करना और दक्षिण एशिया में अपनी पकड़ मजबूत करना.

चीन ने पाकिस्तान को खुशाब में प्लूटोनियम रिएक्टर बनाने में मदद की, जो हथियार-ग्रेड प्लूटोनियम का उत्पादन करता था. इसके अलावा, चीन ने मिसाइल तकनीक भी प्रदान की, जिससे पाकिस्तान अपने परमाणु हथियारों को लंबी दूरी तक पहुंचा सकता था. यह साझेदारी पाकिस्तान के परमाणु कार्यक्रम की रीढ़ बनी.

चगाई का विस्फोट 
1998 में, भारत ने पोखरण-II के तहत पांच परमाणु परीक्षण किए. यह पाकिस्तान के लिए एक और चुनौती थी. खान और उनकी टीम ने दिन-रात काम किया. 28 मई 1998 को, पाकिस्तान ने चगाई पहाड़ियों में पांच परमाणु परीक्षण किए, जिन्हें "चगाई-I" कहा गया. दो दिन बाद, एक और परीक्षण हुआ. इन परीक्षणों ने दुनिया को हिलाकर रख दिया. पाकिस्तान अब आधिकारिक तौर पर एक परमाणु शक्ति बन चुका था.

खान को पाकिस्तान में नायक का दर्जा मिला. लोग उन्हें "परमाणु बम का जनक" कहने लगे. लेकिन यह खुशी ज्यादा दिन नहीं टिकी. जल्द ही, खान की चोरी और तस्करी का पर्दाफाश होने लगा.

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फिर हुआ पर्दाफाश
2004 में, खान की अंतरराष्ट्रीय तस्करी का भंडाफोड़ हुआ. यह पता चला कि खान ने न केवल पाकिस्तान के लिए काम किया, बल्कि ईरान, लीबिया और उत्तर कोरिया को भी परमाणु तकनीक बेची. यह खुलासा एक वैश्विक scandal बन गया. खान को "परमाणु तस्कर" कहा जाने लगा. अमेरिका और यूरोपीय देशों ने पाकिस्तान पर दबाव डाला कि खान को सजा दी जाए.

पाकिस्तान सरकार ने खान को नजरबंद कर दिया, लेकिन उन्हें पूर्ण सजा नहीं दी गई. अब्दुल कदीर ने दावा किया कि वह अकेले नहीं थे और सेना व सरकार भी उनकी गतिविधियों से वाकिफ थी. लेकिन सच्चाई दबा दी गई. खान की बदनामी ने पाकिस्तान की छवि को भी नुकसान पहुंचाया.

बता दें, आज, पाकिस्तान के पास अनुमानित 170 परमाणु हथियार हैं. उसका परमाणु कार्यक्रम अब स्वदेशी है. 


 

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