Salt Crisis in Sri Lanka: नमक की कमी ने किया श्रीलंका को बेहाल... भारत फिर आया मदद के लिए आगे

साल 2022 से ही श्रीलंकाई लोगों को भोजन, दवाइयों और ईंधन की भारी कमी का सामना करना पड़ा है. अब नमक के संकट से लोग बेहाल हैं.

Salt farming in Sri Lanka (Photo: Flickr/@Sekitar)
gnttv.com
  • नई दिल्ली ,
  • 28 मई 2025,
  • अपडेटेड 10:37 AM IST

श्रीलंका इस समय गंभीर रूप से नमक की कमी से जूझ रहा है. यह स्थिति थोड़ी विडंबनापूर्ण है, क्योंकि यह द्वीपीय देश चारों ओर से समुद्र से घिरा हुआ है, लेकिन यहां के नागरिकों के लिए नमक की कमी मज़ाक की बात नहीं है. यह हालिया संकट उन कई संकटों में से एक है, जिनका सामना श्रीलंका को पिछले कुछ वर्षों में करना पड़ा है. साल 2022 से ही श्रीलंकाई लोगों को भोजन, दवाइयों और ईंधन की भारी कमी का सामना करना पड़ा है. 

क्या है मामला
The Independent के अनुसार, सोशल मीडिया पर सुपरमार्केट में खाली शेल्फ की तस्वीरें भरी पड़ी हैं. डेली मिरर की संपादक जमीला हुसैन ने X पर लिखा, “नमक की भारी कमी है. सुपरमार्केट की अलमारियां खाली हो रही हैं और कस्टमर परेशान हो रहे हैं.” लोगों को नमक पाने के लिए कई दिनों तक दुकानों की खाक छाननी पड़ रही है. 

एक नागरिक ने सोशल मीडिया पर लिखा, “पिछले कुछ दिनों से नमक की तलाश में था और आखिरकार बोरालासगमुवा में जाकर नमक मिला. श्रीलंका में एक और दिन.” जिन लोगों को नमक मिल भी रहा है, उन्हें दोगुनी कीमत चुकानी पड़ रही है. Organiser.org के अनुसार, लोगों को प्रति किलो नमक के लिए 145 रुपये तक चुकाने पड़ रहे हैं. 

ऐसा क्यों हो रहा है?
The Independent के मुताबिक, यह कमी घरेलू उत्पादन में भारी गिरावट के कारण हो रही है. AsiaNews.it के अनुसार, श्रीलंका में आमतौर पर मार्च-अप्रैल और अक्टूबर-नवंबर में नमक का उत्पादन होता है. लेकिन मार्च के मध्य से भारी बारिश और पर्याप्त धूप की कमी के कारण हम्बनटोटा, एलीफैंट पास और पुट्टलम के साल्ट वर्क्स में उत्पादन रुक गया है. लगातार हुई बारिश ने पहले से इकट्ठा किए गए 15,000 किलो नमक को भी बहा दिया. 

Organiser.org के मुताबिक, पुट्टलम अकेले देश के कुल उत्पादन का 60% हिस्सा देता है. जहां एक समय 50 किलो का नमक का बोरा 420 रुपये में मिलता था, अब उसकी कीमत 2000 रुपये तक पहुंच गई है. वहीं, व्यापार मंत्री वसंत समरसींगे ने कहा, “मार्च और मई में नमक की फसल की उम्मीद थी, लेकिन मई में भी बारिश के कारण उत्पादन फिर से रुक गया.”

Tamil Guardian के अनुसार, 1990 से पहले एलीफैंट पास और कुरुंचातिवु साल्ट वर्क्स हर साल 85,000 मीट्रिक टन नमक का उत्पादन करते थे. लेकिन देश में चले गृह युद्ध के कारण इन साल्ट वर्क्स का उत्पादन बुरी तरह प्रभावित हुआ. एलटीटीई के कब्जे के बाद एलीफैंट पास का उत्पादन पूरी तरह बंद हो गया था. अब यह केवल 20,000 टन सालाना नमक ही बनाता है.

Organiser.org के अनुसार, श्रीलंका को हर साल 1.8 लाख मीट्रिक टन नमक की जरूरत होती है, लेकिन वर्तमान में देश की सालाना उत्पादन क्षमता केवल 1.35 से 1.4 लाख टन है, यानी देश की 60-65% मांग ही पूरी हो पा रही है. 

भारत कैसे मदद कर रहा है?
भारत ने इस संकट की घड़ी में श्रीलंका की मदद के लिए हाथ बढ़ाया है. Organiser.org के अनुसार, भारत ने श्रीलंका को 3000 मीट्रिक टन से ज्यादा नमक भेजा है. इनमें से 2800 मीट्रिक टन भारत सरकार की कंपनियों से और 250 मीट्रिक टन निजी कंपनियों से भेजा गया. भारत के वाणिज्य मंत्रालय और कोलंबो में भारतीय राजनयिक मिशन इस प्रक्रिया का समन्वय कर रहे हैं।

हालांकि, कुछ लोग इस स्थिति से निराश हैं. अकादमिक डॉ. चंदना विक्रमसिंघे ने X पर लिखा, “ये विडंबना है कि समुद्र से घिरे एक द्वीप राष्ट्र को बार-बार नमक जैसी बुनियादी चीजों के लिए भारत की ओर देखना पड़ता है- जैसे पहले ईंधन, दवाएं आदि के लिए देखते थे.” एक रिपोर्ट के अनुसार, देश की लगभग एक-तिहाई आबादी, करीब 60 लाख लोग भोजन की असुरक्षा से जूझ चुके हैं.

वहीं कई लोग भारत की मदद के लिए आभार जता रहे हैं. Organiser.org से बात करते हुए एक वरिष्ठ श्रीलंकाई अधिकारी ने नाम न बताने की शर्त पर कहा, “चाहे आर्थिक संकट हो, चिकित्सा हो या अब जलवायु का असर, भारत की मदद हमेशा अडिग रही है. यही है असली ‘पड़ोसी पहले’ नीति.”

श्रीलंका ने क्यों किया आयात?
राजनीतिक नेताओं का कहना है कि उनके पास कोई विकल्प नहीं था. वसंत समरसींगे ने कहा, “फसल की विफलता को देखते हुए हमारे पास आयात के अलावा कोई चारा नहीं था, भले ही हमने घरेलू उद्योग को समर्थन देने की कोशिश की.” जनवरी में श्रीलंका ने भारत से 35,000 टन नमक खरीदा और यह 15 सालों में पहली बार हुआ. 

 

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