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अलवर की सिलीसेढ़ झील में होती है सिंघाड़े की खेती, मगरमच्छों के बीच जान जोखिम में डालकर खेती करते हैं किसान, साल में कुछ महीने मिलते हैं सिंघाड़े

किसानों का कहना है कि झील में दो प्रजाति की मछलियां छोड़ी गई हैं जो सिंघाड़े की फसल को बर्बाद कर रही हैं. ये मछलियां फसल की जड़ें और पौध खा जाती हैं, जिससे पूरा खेत खराब हो जाता है. किसानों का आरोप है कि ठेकेदार ने चालाकी से यह मछलियां झील में डाली हैं, ताकि सिंघाड़े की खेती को नुकसान पहुंचे और किसान खेती छोड़ दें.

Water Chestnut Water Chestnut
हाइलाइट्स
  • जानबूझकर छोड़ीं नुकसानदायक मछलियां

  • जान जोखिम में डालकर खेती करते हैं किसान

अलवर की सिलीसेढ़ बांध में सिंघाड़े की खेती शुरू हो गई है. शहर से करीब 15 किलोमीटर दूर सिलीसेढ़ झील में 30 से 40 परिवार सालों से सिंघाड़े की खेती कर रहे हैं. यह इन परिवारों की पुश्तैनी आजीविका है. हर साल सर्दियों की शुरुआत के साथ ही झील में सिंघाड़े की बुआई शुरू होती है और 6 महीने की मेहनत के बाद ये फसल बाजार में पहुंचती है. जयपुर, सीकर और आसपास के मंडियों तक अलवर के सिंघाड़े की सप्लाई होती है. लेकिन इस बार झील में किसान एक नई समस्या से जूझ रहे हैं.

जानबूझकर छोड़ीं नुकसानदायक मछलियां
किसानों का कहना है कि झील में दो प्रजाति की मछलियां छोड़ी गई हैं जो सिंघाड़े की फसल को बर्बाद कर रही हैं. ये मछलियां फसल की जड़ें और पौध खा जाती हैं, जिससे पूरा खेत खराब हो जाता है. किसानों का आरोप है कि ठेकेदार ने चालाकी से यह मछलियां झील में डाली हैं, ताकि सिंघाड़े की खेती को नुकसान पहुंचे और किसान खेती छोड़ दें. किसानों के मुताबिक, इन मछलियों की बाजार में कोई खास कीमत नहीं है, फिर भी इन्हें छोड़ा गया है ताकि हमारी फसल नष्ट हो जाए.

लागत दो लाख, पर मुनाफा नहीं
किसानों के मुताबिक, एक बीघा में सिंघाड़े की खेती पर करीब 2 लाख रुपए का खर्च आता है. आगरा से पौध मंगाई जाती है, जिसकी कीमत लगभग 1600 रुपए प्रति क्विंटल होती है. खेती पूरी तरह नाव से की जाती है, क्योंकि सिंघाड़े की फसल 5 से 7 फुट गहरे पानी में होती है. अब मछलियों के कारण पौध खराब हो रही है, जिससे किसानों को भारी नुकसान झेलना पड़ रहा है.

एक किसान ने बताया, इस बार लागत भी नहीं निकल रही. जितनी मेहनत और खर्चा किया, वो सब पानी में चला गया. अगर ऐसा ही रहा तो आने वाले सालों में खेती बंद करनी पड़ेगी.

500 मगरमच्छों के बीच जोखिम भरी खेती
सिलीसेढ़ झील में करीब 500 मगरमच्छ हैं. किसान नावों पर बैठकर घंटों तक झील में फसल की देखरेख करते हैं. हर बार डर रहता है कि कहीं मगरमच्छ हमला न कर दे. फिर भी सालों से ये परिवार अपनी जान जोखिम में डालकर सिंघाड़े की खेती करते आ रहे हैं.

सिलीसेढ़ में ही होती है सिंघाड़े की खेती
किसानों का कहना है कि अब मगरमच्छों से ज्यादा डर मछलियों का हो गया है, क्योंकि यही उनकी फसल को चौपट कर रही हैं. सिंघाड़ा सर्दियों का मौसमी फल है, जिसे बच्चे से लेकर बड़े तक सब पसंद करते हैं. यह ठहरे हुए पानी में उगता है और शरीर को ठंडक और पोषण देता है. उत्तर प्रदेश और बिहार में इसकी बड़ी खेती होती है, लेकिन राजस्थान में सिलीसेढ़ ही ऐसी जगह है, जहां परंपरागत रूप से सिंघाड़ा उगाया जाता है. अब यहां की खेती मछलियों और ठेकेदारी व्यवस्था की भेंट चढ़ती दिख रही है.

रिपोर्ट- हिमांशु शर्मा

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