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Success Story: कभी घरों में घूमकर डिटर्जेंट पाउडर बेचते थे अरुण सैमुअल, आज हैं करोड़ों की कंपनी के मालिक

सेल्समैन की नौकरी करने वाले अरुण सैमुअल ने अपनी मेहनत और लगन से ऐसा मुकाम हासिल किया है कि वे 1,224 करोड़ रुपये की संपत्ति के मालिक बन गए. अरुण सैमुअल की कहानी ये बताती हैं कि हर किसी को अपने काम पर, और अपने ऊपर पूरा भरोसा होना चाहिए.

Arun Samuel Arun Samuel
हाइलाइट्स
  • अरुण का कारोबार आज 1,224 करोड़ रुपये का है. उनकी कंपनी में 8500 कर्मचारियों काम करते हैं.

  • विंग्स ग्रुप ऑफ कंपनीज के मालिक हैं अरुण सैमुअल

कहते हैं कि सफलता किसी हैसियत की मोहताज नहीं होती है. बस लगन के साथ कड़ी मेहनत हो तो सबकुछ हासिल हो जाता है. 17 साल की उम्र में महज 50 रुपये के लिए घर-घर जाकर वाटर प्यूरीफायर बेचने वाले अरुण सैमुअल की कहानी किसी फिल्म से कम नहीं है. तंगी की वजह से स्कूल ड्रॉप करने वाले अरुण का कारोबार आज 1,224 करोड़ रुपये का है. उनकी कंपनी में 8500 कर्मचारियों काम करते हैं.

विंग्स ग्रुप ऑफ कंपनीज के मालिक हैं अरुण सैमुअल

अरुण सैमुअल, विंग्स ग्रुप ऑफ कंपनीज के चेयरमैन और एमडी हैं. ये कंपनी देश में शीर्ष ब्रांडों के लिए एंड-टू-एंड मार्केटिंग, ब्रांडिंग और प्रचार करती है. अरुण सैमुअल ने 1994 में तीन लोगों के साथ इस कंपनी की शुरुआत कीथी. आज इनकी कंपनी भारत के 67 प्रतिशत आईटी कंपनियों के लिए काम करती है. इस कंपनी के भारत के हर राज्य और आठ अन्य देशों में ऑफिस हैं. अरुण की कंपनी प्रमोशनल इवेंट्स जैसे रोड शो, मेले का आयोजन करती है. ये कंपनी डिजिटल मीडिया मार्केटिंग, इंफ्रास्ट्रक्चर, फैसिलिटी मैनेजमेंट और कंसल्टिंग का काम भी देखती है. आई-कनेक्ट वर्टिकल के जरिए अरुण सैमुअल अंतरराष्ट्रीय कंपनियों को भारत में अपना व्यवसाय, संचालन और निवेश स्थापित करने में मदद करते हैं.

सेल्समैन से बिजनेस टाइकून बनने का सफर

अरुण का सेल्समैन से बिजनेस टाइकून बनने का सफर कई असफलताओं से भरा हुआ रहा है. लेकिन अरुण ने अपने दृढ़ संकल्प के साथ सभी चुनौतियों का सामना किया. अरुण बेंगलुरु के एक मध्यम वर्गीय परिवार से ताल्लुक रखते हैं. उनके पिता हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड में इंजीनियर थे और उनकी मां एक अस्पताल में डाइटिशियन. उन्होंने कक्षा 10 की पढ़ाई बेंगलुरु के सेंट जॉन्स हाई स्कूल से की है. इसके बाद उन्हेंने पीयूसी (प्री-यूनिवर्सिटी कोर्स) के लिए क्राइस्ट यूनिवर्सिटी में दाखिला लिया. कॉलेज में उनकी दोस्ती अमीर घराने के लड़कों से हुई. कॉलेज में शैतानी करने की वजह से अरुण और उनके ग्रुप को परीक्षा में बैठने से मना कर दिया गया. हालांकि अरुण के दोस्तों को उनके फैमिली बैकग्राउंड के कारण परीक्षा में बैठने दिया गया लेकिन अरुण को निकाल दिया गया. 

घरों में जाकर वाटर प्यूरीफायर बेचे

1984 में एक दिन अरुण ने अखबार में प्रचार कंपनी में डोर-टू-डोर सेल्समैन की नौकरी के बारे में पढ़ा. वे तुरंत इंटरव्यू देने पहुंच गए और संयोग से उन्हें ये नौकरी भी मिल गई. छोटी उम्र में जब उन्हें पढ़ना चाहिए था अरुण लोगों के घरों में जा-जाकर वाटर प्यूरीफायर बेचना पड़ा. कभी लोगों ने अपने घर से जलील करके भेजा तो कभी दरवाजे बजाते-बजाते उनके हाथ थक गए लेकिन कोई उनका प्रोडक्ट खरीदने नहीं आया. अरुण बताते हैं इन खराब अनुभवों ने ही उन्हें जीवन में सफल होने के लिए प्रेरित किया.

ऐसे आया प्रोडक्ट बेचने का आइडिया

एक दिन अरुण ने देखा कि यूरेका फोर्ब्स के सेल्समैन अपना वाटर प्यूरीफायर 800 रुपये में बेचते हैं. अरुण ने उन्हीं घरों में जाना शुरू किया जहां यूरेका के सेल्समैन जाते थे. अब चूंकि उनका वाटर प्यूरीफायर बेहद सस्ता था इसलिए लोग उनके वाटर प्यूरीफायर खरीदना मुनासिब समझते थे. इस तरह अरुण दिनभर में 6 से 8 वाटर प्यूरीफायर बेचने लगे. इसके अलावा वह उसी कंपनी के डिटर्जेंट और अन्य उत्पाद बेचने लगे. इससे जल्द ही कंपनी में उन्हें प्रमोशन भी मिल गया.

इस घटना ने बदल दी जिंदगी

एक दोपहर जब अरुण डिटर्जेंट पाउडर बेचने के लिए एक घर का दरवाजा ठकठका रहे थे. उस वक्त एक आदमी घर से निकला और उनके सिर पर डिटर्जेंट का पैकेट मारते हुए बोला- इससे अपना दिमाग धो लो. इस घटना से अरुण बुरी तरह टूट गए. कुछ समय बाद उन्होंने फिर हिम्मत जुटाई और दूसरे घर में डिटर्जेंट पाउडर बेचने गए. वहां उन्हें ऐसी महिला मिली जिसने न सिर्फ उनका प्रोडक्ट खरीदा बल्कि उन्हें बिठाकर जूस भी पिलाया. अरुण को लगा कि दुनिया में हर तरह के लोग हैं इसलिए उन्हें हिम्मत नहीं हरानी चाहिए. अरुण ने कुछ समय तक इसी कंपनी में काम किया फिर अपने एक दोस्त के साथ मिलकर 1985 में AERO प्रमोशन्स नाम की कंपनी शुरू की. उनका पहला क्लाइंट टीजीएल था. इसके अलावा उन्होंने टाटा टी का प्रचार का काम भी देखा. आगे चलकर हिंदुस्तान यूनिलीवर, मैरिको और IFB Bosch उनके क्लाइंट बने.

1994 में शुरू की खुद की कंपनी

1993 में अरुण ने एक सपना देखा जिसमें वे खुद को चट्टान की चोटी पर खड़ा पाते हैं और आवाज आती है 'कूदो- तुम गिरोगे नहीं, बल्कि उड़ जाओगे'. अरुण इस सपने के बारे में बताते हुए कहते हैं, मैंने देखा कि एक चील बिना रुके उड़ी जा रही है. अगली सुबह, मैंने अपना खुद का बिजनेस शुरू करने का फैसला किया. इसे विंग्स नाम दिया और कंपनी के लोगो के रूप में एक ईगल को सेलेक्ट किया. 1994 में अपने पार्टनर से अलग होकर अरुण ने विंग्स की शुरुआत की. 10 महीने के ऑफिस रेंट पर लिया. उसमें 25 हजार का निवेश किया. उनका काम चल पड़ा. अरुण को सबसे पहले कूर्ग कॉफी के विज्ञापन का काम मिला. इसके बाद किसान, जिलेट, आशीर्वाद, इंटेल, हनीवेल, फ्लिपकार्ट, मैक्स, कोका-कोला उनके क्लाइंट बनते चले गए. तब से लेकर आज तक अरुण ने मार्केटिंग, विज्ञापन और ब्रांडिंग के क्षेत्र में अपनी अलग पहचान बनाई है.

पहले बिजनेस के लिए उधार लिए थे पैसे

अरुण ने 21 साल की उम्र में 1988 में आर्किटेक्ट सूसी मैथ्यू से शादी की थी. सूसी ने ही उन्हें AERO प्रमोशन्स शुरू करने के लिए 5,000 रुपये उधार दिए थे. आज उनकी कंपनी का टर्नओवर 1,224 करोड़ रुपये है. अरुण सैमुअल की कहानी ये बताती हैं कि हर किसी को अपने काम पर, और अपने ऊपर पूरा भरोसा होना चाहिए. जब आप अपने ऊपर भरोसा करेंगे, तभी दुनिया आप पर भरोसा करेगी.