
Bailey Umbrella and Bags Project
Bailey Umbrella and Bags Project वायनाड के मुंडक्काई और चूरालमला इलाकों में पिछले साल आए भीषण भूस्खलन ने कई परिवारों को उजाड़ दिया था. इस आपदा में जहां सैकड़ों लोगों ने अपनी जान गंवाई, वहीं बचे हुए लोग अब धीरे-धीरे ज़िंदगी को पटरी पर लाने की कोशिश कर रहे हैं. ऐसी ही 46 महिलाओं ने अब 'बेली छाता और बैग परियोजना' के ज़रिए अपने जीवन को फिर से संवारना शुरू कर दिया है.
सेना के बनाए पुल से मिला नाम
इस परियोजना का नाम भारतीय सेना द्वारा चूरालमला में राहत कार्य के दौरान बनाए गए 58 मीटर लंबे ‘Bailey Bridge’ से लिया गया है. यह पुल आपदा के बाद पहली राहत के रूप में सामने आया था और लोगों के लिए आशा की प्रतीक बन गया था.
सेना से मिली थी शुरुआत की मदद
भारतीय सेना ने परियोजना की शुरुआत में 390 छातों के निर्माण के लिए कच्चा माल उपलब्ध कराया था. इसके बाद, जिला प्रशासन और कुदुंबश्री मिशन ने मिलकर इन महिलाओं को प्रशिक्षण दिया और उन्हें रोज़गार के लिए तैयार किया.

रोज़गार और आत्मनिर्भरता की ओर बढ़ते कदम
'बेली छाता परियोजना' अब इन महिलाओं के लिए केवल एक रोजगार योजना नहीं, बल्कि आत्मनिर्भर बनने की दिशा में एक बड़ा कदम बन गई हैय महिलाएं अब छाते बनाकर आदिवासी विकास विभाग, कुदुंबश्री स्टॉलों और कलपेट्टा सिविल स्टेशन में स्थापित स्थायी स्टॉलों पर बेच रही हैं.
परियोजना का दूसरा हिस्सा, ‘बेली बैग परियोजना’, महिलाओं के लिए आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर होने का एक और मंच बन चुका है. अब तक इस परियोजना को विभिन्न संगठनों से भारी मात्रा में ऑर्डर मिले हैं:
प्रशासन अब इन बैगों को स्थानीय बाजारों और ऑनलाइन प्लेटफॉर्म के माध्यम से बेचने के लिए एक प्रणाली तैयार कर रहा है.
सरकार ने की पहल की सराहना
राज्य के स्थानीय स्वशासन मंत्री एम. बी. राजेश ने कुदुंबश्री और जिला प्रशासन की इस संयुक्त पहल की सराहना करते हुए कहा, “ये महिलाएं पुनर्निर्माण का एक बेहतरीन उदाहरण पेश कर रही हैं. ‘बेली’ ब्रांड अब जिला कलेक्ट्रेट, मेले और बाजारों में मजबूती से मौजूद है, और जल्द ही ऑनलाइन बाजार में भी अपनी पहचान बनाएगा.”
(शिबीमोल की रिपोर्ट)
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