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Success Story: 10वीं तक पढ़ाई, फिल्मों के पोस्टर चिपकाए... Chandubhai Virani ने 10 हजार रुपए में की थी Balaji Wafers की शुरुआत

Balaji Wafers Success Story: बालाजी वेफर्स पोटैटो वेफर्स के मामले में देश की दूसरी सबसे बड़ी कंपनी है. इस कंपनी का कारोबार गुजरात, महाराष्ट्र, गोवा, राजस्थान, मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश में फैला है. कंपनी में कर्मचारियों की संख्या 5 हजार है. जिसमें 2500 महिलाएं हैं. चंदुभाई वीरानी इसके फाउंडर हैं. उन्होंने साल 1982 में अपने घर के एक शेड में चिप्स बनाने का कारोबार शुरू किया था.

Balaji Wafers founder Chandubhai Virani (Photo/BalajiWafers) Balaji Wafers founder Chandubhai Virani (Photo/BalajiWafers)

बालाजी वेफर्स के फेमस नमकीन ब्रांड है. ये कंपनी चिप्स और स्नैक्स बनाने वाली देश की सबसे लीडिंग कंपनियों में शामिल है. इसका कारोबार कई राज्यों में फैला है. इसकी शुरुआत 10 हजार रुपए से की गई थी. चंदुभाई वीरानी ने इन पैसों से होम-मेड चिप्स बनाने का काम शुरू किया था, जिसको लोगों ने खूब पसंद किया. धीरे-धीरे कारोबार बढ़ने लगा. आज इस कंपनी का कारोबार हजारों करोड़ में है. परिवार की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं होने की वजह से चंदुभाई ने 10वीं के बाद पढ़ाई नहीं की. वो घर चलाने के लिए कामकाज में जुट गए. उन्होंने एक सिनेमा की कैंटीन में काम किया और पोस्टर भी चिपकाए. किराया ना चुकाने के चलते एक बार किराए का घर भी छोड़ना पड़ा था. लेकिन उन्होंने हिम्मत नहीं हारी. चलिए आपको चंदुभाई वीरानी की कहानी बताते हैं.

किसान परिवार से आते हैं चंदुभाई वीरानी-
साल 1972 में चंदुभाई के पिता रामजीभाई वीरानी एक किसान थे. उन्होंने अपने तीन बेटों मेघजीभाई, भीखूभाई और चंदुभाई को 20 हजार रुपए दिए. उस समय चंदुभाई वीरानी सिर्फ 15 साल के थे और उनका परिवार जामनगर के ढुंडोराजी में रहता था. उनके बड़े भाई ने कृषि में पैसे निवेश किए. लेकिन खराब मानसून और सूखे के चलते फसल बर्बाद हो गई और पैसा डूब गया. इसके बाद चंदुभाई राजकोट चले गए.जबकि सबसे छोटे भाई कनुभाई माता-पिता और दो बहनों के साथ वहीं रह गए.

आर्थिक तंगी का किया सामना-
परिवार आर्थिक तंगी में था. चंदुभाई वीरानी ने 10वीं के बाद पढ़ाई छोड़ दी और रोजगार की तलाश में जुट गए. चंदुभाई को एस्ट्रोन सिनेमा में नौकरी मिल गई. उनका काम कैंटीन में काम करना था. उन्होंने 90 रुपए की मासिक सैलरी पर फिल्म के पोस्टर चिपकाने, देखभाल और साफ-सफाई का काम किया. चंदुभाई रात में सिनेमाघर में फटी सीटों की मरम्मत भी की. उसके बदले में उनको गुजराती नाश्ता मिलता था.

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घर का किराया देने के पैसे नहीं थे-
चंदुभाई वीरानी का परिवार आर्थिक तंगी से गुजर रहा था. एक बार तो ऐसा हुआ कि उनके घर छोड़कर भागना पड़ा था. क्योंकि उनके पास किराया देने के लिए 50 रुपए नहीं थे. हालांकि जब उनके पास पैसे हुए तो उन्होंने मकान मालिक का पैसा चुकाया. वीरानी भाइयों के काम को देखते हुए सिनेमाघर के कैंटीन के मालिक ने उनको एक हजार रुपए प्रति महीने का कॉन्ट्रैक्ट दिया. इसके बाद भाइयों ने कैंटीन में सामान बेचना शुरू किया. इसमें आलू वेफर्स भी शामिल था. लेकिन आलू वेफर्स की सप्लायर ठीक से काम नहीं कर रहा था. कई बार सप्लायर बदलने के बाद चंदुभाई ने सोचा कि क्यों ना खुद आलू वेफर्स बनाया जाए?

एक शेड में आलू वेफर्स बनाने की शुरुआत-
चंदुभाई वीरानी ने साल 1982 में घर के एक शेड में चिप्स बनाने का काम शुरू किया था. इसमें उन्होंने 10 हजार रुपए लगाए थे. चंदुभाई कैंटीन में काम करने के बाद चिप्स बनाने का काम करते थे. आलू छीलने और काटने की मशीन महंगी थी तो उन्होंने 5000 रुपए में वैसी ही मशीन बनाई. कई बार ऐसा होता था कि वेफर्स तलने वाला काम पर नहीं आता था. जिसके बाद चंदुभाई रात को वेफर्स तलते थे.

चंदुभाई जल्द ही 25-30 दुकानों को वेफर्स सप्लाई करने लगे. साल 1984 में उन्होंने ब्रांड का नाम बालाजी तय किया. साल 1989 में चंदुभाई ने 50 लाख रुपए बैंक से कर्ज लिए और राजकोट में एक फैक्ट्री की शुरुआत की. उस वक्त यह फैक्ट्री गुजरात का सबसे बड़ा आलू वेफर प्लांट था.

कई राज्यों में फैला है कारोबार-
कंपनी का कारोबार गुजरात, महाराष्ट्र, गोवा, राजस्थान, मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश में फैला है. कंपनी में कर्मचारियों की संख्या 5 हजार है. जिसमें 2500 महिलाएं हैं. डिस्ट्रीब्यूशन नेटवर्क में 6 मुख्य डिस्ट्रीब्यूटर, 700 डीलर और 8 लाख से अधिक दुकानदार हैं. देशभर में कंपनी की 4 प्लांट हैं. आज कंपनी का टर्नओवर 4000 करोड़ रुपए पहुंच चुका है. 

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