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Coca Cola: 8 मई को ही पहली बार लोगों ने कोका कोला का चखा था स्वाद, जानिए सीरप बनाने वाली कंपनी ने सॉफ्ट ड्रिंक की दुनिया में कैसे रचा इतिहास

Success Story of Coca Cola: 8 मई 1886 ही वो दिन था जब पहली बार लोगों ने कोका कोला का स्वाद चखा. शुरुआती दौर में इसे बोतल में नहीं बल्कि गिलास में सर्व किया जाता था. धीरे-धीरे लोगों की जुबान पर इसका स्वाद चढ़ने लगा. 

Coca Cola Coca Cola
हाइलाइट्स
  • 8 मई 1886 को जैकब फार्मेसी पर पहली बार बेचा गया कोका कोला 

  • वर्तमान में कंपनी के 200 से अधिक ब्रांड मार्केट में हैं मौजूद 

कोको कोला के स्वाद से आज दुनिया के सभी लोग वाकिफ हैं. लेकिन क्या आप जानते हैं कि कोका कोला का निर्माण दर्द के निवारण के लिए सीरप के रूप में हुआ था. आइए जानते हैं फिर कोका कोला कैसे सॉफ्ट ड्रिंक बन गया. 

सोडा पानी मिलाने के बाद लोगों को टेस्ट कराया
अमेरिका में गृहयुद्ध के दौरान 1865 में जॉन पेम्बर्टन नामक एक लेफ्टिनेंट कर्नल बुरी तरह जख्मी हो गए थे. जख्म के दर्द से राहत पाने के लिए पेम्बर्टन ड्रग का नशा करने लगे और फौज की नौकरी छोड़ दी. उन्होंने ड्रग्स की लत छोड़ने के लिए विकल्प खोजना शुरू किया. पेम्बर्टन ने फार्मेसी का कोर्स भी किया था. वो अपने इलाज के लिए रिसर्च करते रहे. हालांकि पेम्बर्टन को कुछ खास सफलता नहीं मिली. इसके बाद उन्होंने अपने साथी फ्रैंक रॉबिन्सन के साथ मिलकर एक केमिकल कंपनी खोली. फ्रैंक अकाउंट और मार्केटिंग देखने लगे. पेम्बर्टन अपने उस पेय पदार्थ पर दोबारा से काम करने लगे जो ड्रग्स का विकल्प हो सकता था. मई 1886 को दोपहर के समय पेम्बर्टन ने एक तरल पदार्थ बनाया. उसे वो फार्मेसी ले गए. उसमें सोडा पानी मिलाने के बाद लोगों को टेस्ट कराया. लोगों को उसका स्वाद काफी पसंद आया.

शुरुआत में सिर्फ नौ गिलास बिका
फ्रैंक रॉबिन्सन ने इसको कोका कोला नाम दिया. इस मिश्रण में कोरा अखरोट से कोका पत्ती और उसमें मिलाए गए कैफीन वाले सीरप के नुस्खे को कोका-कोला के नाम से जोड़ा था. फ्रैंक का मानना था कि नाम में डबल C होने से फायदा होगा. जो आसानी से लोगों की जुबान पर भी आ जाएगा. बहरहाल, कोका कोला को बेचने के लिए प्रति गिलास 5 सेंट का मूल्य तय किया गया. 8 मई 1886 को जैकब फार्मेसी पर पहली बार कोका कोला को बेचा गया. पहले साल में दिनभर में केवल नौ गिलास के हिसाब से बिक्री हुई. एक साल में महज 25 गैलन की खपत हुई. 50 डॉलर के करीब की की कमाई हुई थी, जबकि उसकी लागत 70 डॉलर से अधिक थी. इस तरह शुरुआत में नुकसान उठाना पड़ा था. लेकिन आज दुनिया भर में करीब दो अरब से अधिक इसकी बोतलें रोज बिकती हैं. एक शताब्दी के बाद कोका-कोला कंपनी ने 10 अरब गैलन से अधिक सीरप का उत्पादन किया था.

मुफ्त में पीने का कूपन दिया
साल 1887 में अटलांटा के एक फार्मासिस्ट बिजनेसमैन आसा ग्रिग्स कैंडलर ने पेम्बर्टन से 2300 डॉलर में इसके फार्मूले को खरीद लिया. कैंडलर ने कोका कोला को सफल बनाने का एक आइडिया निकाला. उन्होंने लोगों को इसकी लत लगाने के लिए मुफ्त में पीने का कूपन दिया. फिर लोगों को कोका कोला का स्वाद ऐसा लगा कि वे इसे खरीदकर पीने लगे. कैंडलर ने कैलेंडर, पोस्टर इत्यादि के जरिए विज्ञापन भी किए. जिससे ग्राहकों को लुभाया जा सके. विज्ञापन से कंपनी को फायदा मिला. साल 1890 तक कोका कोला अमेरिका का सबसे लोकप्रिय पेय पदार्थ बन चुका था. 

जब बोतल में बिकने लगा कोका कोला 
साल 1894 में जोसेफ बिएडेनहॉर्न नामक व्यवसायी कोका कोला को बोतल में डालकर बेचने लगे. इस आइडिया को अपनाने के लिए उन्होंने 12 बोतलें कैंडलर को भी भेजी. कैंडलर को उसका यह आइडिया काफी पसंद आया. इससे पहले उन्हें इसका जरा से भी ख्याल नहीं आया था. अब कोका कोला को आसानी से बोतल में कहीं भी ले जाया जा सकता था. साल 1903 के बाद से कंपनी ने कोकीन की मात्रा को कम करते-करते लगभग समाप्त ही कर दिया. बाद में कोकीन की पत्ती का ही इस्तेमाल किया जाने लगा. कंपनी उपभोक्ताओं को आश्वस्त करने के लिए एक ऐसे बोतल बनाना चाहती थी. जिससे उन्हें असली और नकली कोक की पहचान हो सके. तब रूट ग्लास नामक कंपनी ने कोक के लिए एक बोतल तैयार की. जिसे कोका कोला कंपनी ने अप्रूवल दे दिया. साल 1916 में कंपनी ने उस बोतल का बनाने का कार्य शुरू कर दिया. 

रॉबर्ट कंपनी के तीसरे मालिक बने
साल 1923 में रॉबर्ट वुड्रफ ने कैंडलर से कंपनी को खरीद लिया. रॉबर्ट कंपनी के तीसरे मालिक बने थे. उन्होंने दुनियाभर में कोका कोला के बिजनेस को बढ़ाया. रॉबर्ट ने कंपनी को बुलंदियों तक ले जाने के लिए काफी मेहनत की. साल 1928 में पहली बार ओलंपिक के दौरान खिलाड़ियों ने इसका इस्तेमाल किया. विज्ञापन के माध्यमों से कोका कोला को बड़ी सफलता मिली.

भारत में पहली एंट्री 1956 में हुई
भारत में कोका कोला की पहली एंट्री 1956 में हुई. कंपनी ने तेजी से कारोबार बढ़ाना शुरू किया क्योंकि तब व्यपार को लेकर कानून बहुत सख्त नहीं था.1974 में तत्कालीन इंदिरा गांधी सरकार ने फॉरेन एक्सचेंज एक्ट को लागू किया. इसके बाद में कंपनी ने भारत में कारोबार बंद कर दिया. 1993 में उदारीकरण की नीतियों के कारण एक बार फिर कंपनी ने भारत में एंट्री की और देश में एक नामी ब्रैंड बनकर उभरा.