फिच ने घटाई यूएस की क्रेडिट रेटिंग
फिच ने घटाई यूएस की क्रेडिट रेटिंग दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था वाले देश अमेरिका को तगड़ा झटका लगा है. क्रेडिट रेटिंग एजेंसी फिच ने अमेरिका की रेटिंग को AAA से घटाकर AA+ कर दिया है. 2011 के बाद अमेरिका की रेटिंग में पहली बार कटौती की गई है. देश की वित्तीय स्थिति और बढ़ते कर्ज को देखते हुए फिच ने ऐसा किया है. इस रेटिंग के बाद यूएस आगबबूला हो गया है. आइए आज जानते हैं क्या होती हैं क्रेडिट रेटिंग एजेंसियां, वित्तीय कारोबार के लिए कितनी हैं अहम और रेटिंग घटने का अमेरिका पर क्या पड़ेगा असर?
एजेंसियां कैसे देती हैं रेटिंग
क्रेडिट रेटिंग एजेंसियां विभिन्न कंपनियों के अनेक प्रकार के वित्तीय उत्पादों जैसे बांड, सावधि जमा खाता और कुछ अन्य छोटी अवधि के ऋण दस्तावेजों का आकलन करके उसमें शामिल रिस्क और लाभ के आधार पर उनको रेटिंग देतीं हैं. क्रेडिट रेटिंग एजेंसियां परोक्ष रूप से यह बताती हैं कि देश, संस्था या व्यक्ति आर्थिक रूप से कितना मजबूत है और उसको कितना कर्ज देना खतरनाक है या नहीं. यानी वह कितना कर्ज चुकाने की क्षमता रखता है.
कोई निश्चित फार्मूला नहीं
किसी देश, संस्था या व्यक्ति की रेटिंग बनाते समय ये एजेंसियां कोई निश्चित फार्मूला नहीं अपनाती हैं बल्कि अपने अनुभवों और आंकड़ों का इस्तेमाल करती हैं. लेकिन रेटिंग एजेंसियां रेटिंग देते समय देश, कम्पनी या व्यक्ति की लेनदारियों, देनदारियों, कुल संपत्ति, बाजार में साख, उनकी वृद्धि दर इत्यादि का विश्लेषण अवश्य करतीं हैं.
भारत में हैं चार क्रेडिट रेटिंग एजेंसियां
1. क्रिसिल (CRISIL)
2. इक्रा (ICRA)
3. केअर (CARE)
4. डीसीआर इंडिया (DCR India)
अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ये हैं बड़ी क्रेडिट रेटिंग एजेंसियां
1. स्टैण्डर्ड एंड पूअर
2. मूडीज
3. फिच
इंडिया में रेटिंग एजेंसी क्यों जरूरी
1980 के दशक के बाद से देश में वित्तीय प्रणाली अधिक नियंत्रण-मुक्त हो गई है. भारतीय कंपनियां वैश्विक ऋण बाजारों से अधिकाधिक ऋण लेने लगीं. यही वजह थी कि क्रेडिट रेटिंग एजेंसियों की राय या अनुमान अधिकाधिक प्रासंगिक और महत्त्वपूर्ण होते गए.
क्रेडिट रेटिंग का महत्व
यदि किसी देश को अच्छी रेटिंग मिल जाती है तो पूरे विश्व के निवेशक उस देश में निवेश करने के लिए उत्साहित हो जाते हैं क्योंकि उनको यह विश्वास हो जाता है कि वे जहां पर निवेश करने जा रहे हैं, वहां पर उनको अच्छा रिटर्न मिलेगा. उनका पैसा भी सुरक्षित रहेगा. यही बात किसी कंपनी या व्यक्ति के बारे में लागू होती है. यदि किसी कंपनी की रेटिंग, एजेंसियों की ओर से अच्छी कर दी गयी है तो उस कंपनी को बाजार से पैसे उधर लेने में परेशानी नहीं होगी. इसके साथ ही बाजार में अच्छी छवि के कारण इसके शेयर बाजार महंगे बिकेंगे. यही कारण है कि देश, कंपनी औए व्यक्ति हमेशा अच्छी रेटिंग की खोज में रहते हैं.
किस रेटिंग का क्या है मतलब
1. AAA (Highest safety): देश, कंपनी या व्यक्ति निवेश करना सबसे सुरक्षित और लाभदायक.
2. AA (High safety): देश, कंपनी या व्यक्ति में अपने वादों को पूरा करने की काफी क्षमता है.
3. A (Adequate Safety): देश, कंपनी या व्यक्ति के पास अपने वादों को पूरा करने की क्षमता पर बदली विपरीत परिस्थितियों का असर पड़ सकता है.
4. BBB (Moderate safety): देश, कंपनी या व्यक्ति में अपने वादों को पूरा करने की क्षमता लेकिन विपरीत आर्थिक हालात से प्रभावित होनी की ज्यादा गुंजाइश.
5. CC: देश, कंपनी या व्यक्ति वर्तमान में बहुत कमजोर.
6. D (Default): देश, कंपनी या व्यक्ति उधार लौटाने में असफल.
व्हाइट हाउस ने कही यह बात
फिच की क्रेडिट रेटिंग में कटौती के बाद व्हाइट हाउस ने इसे लेकर अपनी असहमति जताते हुए कहा है कि एसेंजी ने रेटिंग देते वक्त मनमानी की है. वित्त मंत्री जेनेट येलेन ने कहा कि एजेंसी ने पुराने डेटा को देखते हुए अपनी रेटिंग का निर्धारण किया है जो कि गलत है. ध्यान देने वाली बात ये है कि साल 2011 में S&P Global Ratings ने अमेरिका की क्रेडिट रेटिंग को कम करके AA+ कर दिया था. अमेरिका की आर्थिक हालात आजकल कुछ अच्छे नहीं है. फिच रेटिंग्स ने अमेरिकी सरकार की क्रेडिट रेटिंग को एएए से घटाकर एए+ कर दिया है. यह दूसरी बार है जब किसी रेटिंग एजेंसी ने अमेरिका की रेटिंग गिराई है. इससे पहले 2011 में स्टैंडर्ड और पूअर्स ने तब सरकार में ऋण को लेकर हुए विवाद के बाद एएए की रेटिंग घटा दी थी.
फिच के ऐसा करने के प्रमुख कारण
1. अमेरिकी सरकार पर पिछले कुछ सालों में लगातार ऋण बढ़ता जा रहा है. आज की तारीख में विश्व युद्ध के बाद से सर्वाधिक ऋण है.
2. फिच ने अमेरिका में सरकार के संचालन के स्तर में गिरावट का हवाला भी दिया है. ऐसे में ही सांसदों में हाल ही ऋण विवाद देखने को मिला था. इसे सरकार की नाकामी के तौर पर देखा जा रहा है.
3. फिच का मानना है कि अमेरिका के आर्थिक हालात अभी भी अच्छे नहीं हुए हैं. उसका मानना है कि आर्थिक सुस्ती, महंगाई और मंदी की संभावना बनी हुई है. इससे देश के वित्तीय व्यवस्था पर बोझ बना हुआ है.
क्या पड़ेगा असर
1. रेटिंग गिरने की वजह से सरकार को अपने ऋण पर ज्यादा ब्याज देना होगा. सरकार को आगे जो ऋण मिलेगा, वह भी महंगा होगा. साथ ही सरकार के बजट में घाटा बढ़ने के आसार हैं.
2. रेटिंग गिरने से अर्थव्यवस्था में विश्वास की कमी आ जाती है. इसका असर निवेशकों पर सीधा पड़ता है. ऐसे में बिजनेस करने के लिए फंड जुगाड़ना मुश्किल हो जाएगा.
3. रेटिंग गिरने से बाजार में अस्थिरता बढ़ेगी. इस वित्त प्रबंधन में दिक्कत आएगी. भविष्य के लिए बिजनेस प्लान डगमगा सकता है.