
आमतौर पर मधुमक्खियों की धीमी भिनभिनाहट सुनते ही लोग दूर भाग जाते हैं, वहीं गजानन भालेराव की तो उनसे लड़की की तरह दोस्ती हो गई है. वे मधुमक्खियाँ नहीं, बल्कि उनकी "किसानी की जिंदगी की जान" हैं. आइए, जानते हैं उस इस जोड़ी की अनोखी कहानी जो पूरे देश में मधुमक्खी कारोबार को उड़ान दे रही है.
गजानन भालेराव हिंगोली के रहने वाले हैं और अब नासिक में किसानी कर रहे हैं. गजानन पिछले 18 सालों से अपनी पत्नी माधुरी के साथ मिलकर मधुमक्खी पालन कर रहे हैं. माधुरी सिर्फ उनकी जीवनसाथी ही नहीं, बल्कि उनकी बिजनेस पार्टनर भी हैं. मधुमक्खी से शहद निकालने, उसे प्रोसेस करने और “किसान मधुमक्षिका फार्म” नाम से ब्रांड बनाकर बेचने का सारा काम यह जोड़ी संभालती है.
मधुमक्खी बक्से लेकर यात्रा करते हैं
इस जोड़ी का कारोबार अदभुत है. ये अपना एक तंबू, बुनियादी बर्तन और करीब 500 मधुमक्खी के बक्सों को ट्रक में लादकर पूरे देश में घूमते हैं. यह बक्से बाजरे, अनार, अमरूद, अजवाइन जैसे फसलों वाले खेतों में लगते हैं. बदलते मौसम के साथ यह जोड़ी नासिक से राजस्थान और उत्तर प्रदेश तक की खेती की यात्रा करती है. 30 दिनों का परागण चक्र पूरा होने पर, वे अगले खेत की ओर बढ़ते हैं.
मधुमक्खियों के परागण से अच्छी होती है खेती
गजानन कहते हैं, “मधुमक्खियों द्वारा परागण से कृषि उपज लगभग 50 प्रतिशत तक बढ़ जाती है.” वे बताते हैं कि मधुमक्खियां परागण (pollination) की सबसे बेहतरीन एजेंट हैं और हमारी खाद्य श्रृंखला के लिए अनमोल हैं.
वे किसानों को यह समझाते हैं कि कीटनाशकों का अंधाधुंध उपयोग मधुमक्खियों में भारी कमी लाता है, जिससे कृषि पर भी असर होता है. यह जोड़ी लगातार किसानों को यह बताती है कि वे इन प्राकृतिक परागण एजेंटों का संरक्षण करें.
कभी ट्रक ड्राइवर थे गजानन
गजानन की शुरुआत एक ट्रक ड्राइवर के रूप में हुई थी. एक दिन राजस्थान के झालावाड़ और कोटा से गुजरते हुए उन्होंने पहली बार सड़क किनारे मधुमक्खियों के बक्से देखे. तभी उन्हें मधुमक्खियों के महत्व का अहसास हुआ, और उन्होंने अपने गांव की खेती में इस कीट के महत्व को समझा. इसके बाद गजानन ने खादी एवं ग्रामोद्योग आयोग और पुणे के केंद्रीय मधुमक्खी अनुसंधान एवं प्रशिक्षण संस्थान से प्रशिक्षण लिया, और 2007 में इस व्यवसाय की शुरुआत की.
80,000 से ज़्यादा किसानों को हुआ फायदा
गजानन और माधुरी केवल अपने लिए मधुमक्खी पालन नहीं कर रहे हैं, बल्कि देशभर में 80,000 से ज्यादा किसानों के लिए यह जीवनरक्षा बन गया है.
नासिक के सातमाने गांव में पच्चीस सालों से अनार का निर्यात करने वाले नीलेश पवार बताते हैं “मधुमक्खियां न होतीं, तो हम अनार का निर्यात नहीं कर पाते.”
भालेराव के पास लगभग 1,000 मधुमक्खी बक्से हैं, और प्रत्येक बक्से में 14–16 हजार मधुमक्खियां रहती हैं.
एक मधुमक्खी रोजाना करीब 11 घंटे, 53 मिनट तक काम करती है और अधिकतम 2.5 किमी तक उड़ान भरती है. वे 36°C से अधिक तापमान में बच नहीं पातीं.
गजानन का मानना है कि “यदि आप मधुमक्खियों को सच्चे दिल से प्यार करते हैं और उनकी जरूरतों को समझते हैं, तो यह एक अच्छा व्यवसाय हो सकता है.”
(प्रवीण ठाकरे का इनपुट)
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