Representational Image
Representational Image एक समय था जब लोग बस नौकरी चाहते थे फिर नौकरी और ऑफिस चाहे कैसा भी हो. लेकिन पिछले कुछ सालों में इंडस्ट्रीज में काफी बदलाव आया है. भारतीय वर्कफोर्स की धारणाएं काफी ज्यादा बदली हैं खासकर कि मिलेनियल्स और जैनज़ी जनरेशन की. कोरोना काल के बाद भी लोगों के नजरिए में परिवरत्न हुआ है.
भारतीय नौकरी चाहने वाले अब नौकरी के अवसर का मूल्यांकन करते समय फ्लेक्सिबल काम, काम के तरीके और नौकरी की लोकेशन को ज्यादा प्राथमिकता दे रहे हैं. इसके अलावा, जब हेल्थ बेनेफिट की बात आती है तो इनफॉर्मल सेक्टर, फॉर्मल सेक्टर के साथ अंतर को पाटना चाहता है.
काम और वर्किंग टाइम में फ्लेक्सिबिलिटी चाहते हैं लोग
हाल ही में, 1,810 व्यक्तियों पर इनडीड इंडिया ने सर्वे किया, जिसमें 561 नियोक्ता/एम्पलॉयर और 1,249 नौकरी चाहने वाले शामिल थे. सर्वे से पता चला कि ज्यादातर नौकरी चाहने वाले हाइब्रिड सेटिंग में काम करना पसंद करते हैं, जहां वे कुछ दिन घर से और दूसरे दिन ऑफिस से काम कर सकते हैं. बड़े संगठनों के लिए ऐसी फ्लेसिबिलिटी दे पाना मुमकिन है और 51% नियोक्ताओं का कहना है कि वे ऐसा करते हैं.
लगभग 71% भारतीय नौकरी चाहने वालों के लिए, फ्लेसिबल काम टॉप पर है. इसमें घर से काम करना, अपने खुद के वर्किंग टाइमिंग्स तय करना और जरूरत के हिसाब से ब्रेक लेने की क्षमता शामिल है. ऑफिस जाने वालों के लिए, उनकी जॉब लोकेशन का पास होना जरूरी है. ऐसे में, नियोक्ताओं को पता होना चाहिए कि टॉप टैलेंट को हायर करने के लिए उन्हें किन सुविधाओं का ध्यान रखना होगा.
फ्लेक्सिबिलिटी के अलावा, नौकरी चाहने वाले नौकरी खोजने के दौरान पूरी प्रोसेस में क्लियर कम्यूनिकेशन को भी महत्व देते हैं. वे किसी पद के लिए आवेदन करने से पहले सैलरी रेंज जानना चाहते हैं, और वे रिक्रुटर्स से समय पर जवाब चाहते हैं.
इनफॉर्मल सेक्टर की हैं ये इच्छाएं
क्वेस कॉर्प के एक अन्य सर्वेक्षण में पाया गया कि 80% अनौपचारिक कर्मचारी अपने नियोक्ताओं से उम्मीद करते हैं कि वे उन्हें ESI (कर्मचारी राज्य बीमा) की सुरक्षा और अन्य चिकित्सा लाभ प्रदान करेंगे. इसके अलावा, महिलाओं की इच्छा है कि वे अनौपचारिक रोजगार से औपचारिक क्षेत्र में शिफ्ट करें.
कौशल, सामाजिक सुरक्षा और स्वास्थ्य देखभाल के संबंध में भारत के इनफॉर्मल सेक्टर की आकांक्षा भी यही है कि उन्हें फॉर्मल सेक्टर्स की तरह ही EPFO, ESI और दूसरे सोशल सिक्योरिटी बेनेफिट मिलें. हमारे वर्तमान कानून सिर्फ उन संगठनों के लिए ऐसे सोशल सिक्योरिटी बेनेफिट का कवरेज देते हैं जिनमें 10 या 20 से ऊपर कर्मचारी हैं. इससे नागरिकों का एक बड़ा वर्ग पीछे छूट जाता है जिन्हें इन कानूनों से फायदा नहीं होता है.
सर्वे के रिजल्ट्स से पता चलता है कि भारत में औपचारिक रोजगार की मांग बढ़ रही है और तकनीक लोगों को बदलाव लाने में मदद करने में भूमिका निभा रही है. इसके अलावा, हाइब्रिड कल्चर की मांग बढ़ने से पूरी तरह वर्क फ्रॉम ऑफिस हो पाना मुश्किल है.