
जयपुर की बनी हुई पतंगें देश-विदेश में मशहूर हैं. अकेले जयपुर में 20 हजार से भी अधिक पतंग कारीगर हैं तथा सालाना 15 करोड़ तक का कारोबार होता है. दुनियाभर में आयोजित होने वाले काइट फेस्टिवल बिना जयपुरी पतंगों के अधूरे माने जाते हैं. जयपुर के 150 साल पुराने पतंग बाजार हांडीपुरा (Kite Market Handipura Jaipur) में मकर सक्रांति पर एक से एक पतंग मिलती हैं. सालों पुरानी मार्केट में पहले सिर्फ 3 दुकानें हुआ करती थीं, वहीं आज यहां पतंगबाजों के लिए 200 से ज़्यादा दुकानें हैं जहां देशभर से पतंगबाज़ खरीदारी करने आते हैं.
जयपुर की पतंगों की खासियत है कि उनमें टेप नहीं होता है जो पतंगों को बेहतर पकड़ देता है. इसके अलावा कहा जाता है कि बरेली और रामपुर की पतंग की उड़ान सबसे अच्छी होती है क्योंकि उसका तिल्ला यानी कि उस पर लगी सींक छिली हुई और सिकी हुई होती है. वहीं बात मांजे की करें तो बरेली का मैदानी मांजा सबसे अच्छा होता है.
2 इंच से 20 फुट तक की पतंग
हर साल ये पतंगे कई साइज में बनाई जाती हैं. ऐसे ही इस साल इस मार्केट में सबसे छोटी पतंग का साइज मात्र 2 इंच है और उसकी कीमत 5 रुपया है, जबकि सबसे बड़ी पतंग 20 फुट की है और उसकी कीमत करीब 10 हजार रुपये है.
चाइनीज मांझे को लेकर मार्केट सर्तक
चाइनीज मांझे को लेकर पूरा मार्केट सर्तक है. ऐसे में कहीं भी चाइनीज मांझे की बिक्री नहीं की जा रही है. इसके अलावा सोशल मैसेज से जुड़ी पतंगों को भी लोग खरीद रहे हैं.
इस दौरान कारीगर बच्चों के लिए कार्टून वाली पतंगें सबसे ज्यादा पतंग बेची जा रही हैं, जिनमें मोटू-पतलु, छोटा भीम व डोरेमोन की पतंगें अच्छी खासी मात्रा में बिक रही हैं. खास बात ये है कि अब तक ये कार्टून डिज़ाइन बच्चों की पतंग पर बनी होती थी, पर इस बार पतंग का आकार ही इन कार्टून जैसा है. इसके अलावा भी फैंसी पतंगों ने मार्केट की शोभा बढ़ाई हुई है.
बैटरी से चलने वाली फिरकी की बढ़ी डिमांड
अमूमन पतंगबाज हाथ के जरिये अपनी लम्बी डोर फिरकी घुमाकर समेटता है, लेकिन इस बार मार्केट में आई ऑटोमैटिक फिरकी ये काम आसान कर देगी. बैटरी से चलने वाली ये फिरकी सिर्फ एक बटन दबाने से डोर को लपेटने लगती है.