
शहरों की चकाचौंध लोगों को अपनी ओर खींचती है लेकिन झारखंड के चतरा जिले के रहने वाले इंजीनियर शुभम कुमार को वह नहीं लुभा पाई. उसने ऊंची पगार वाले कॉरपोरेट जगत से मुंह फेर लिया. उसे सुकून मिला तो अपने गांव की मिट्टी में आकर. अपने खेत में पेड़-पौधों बीच. शुभम बी.टेक और एमबीए ग्रैजुएट हैं जो किसी समय मल्टीनेशनल कंपनी में अच्छी तनख्वाह पर रुआबदार नौकरी करते थे.
साल 2011 में शुभम ने अपना रास्ता बदल लिया. उन्होंने कॉरपोरेट जिंदगी की सुख-सुविधाओं को अलविदा कहा और खेती करने अपने गांव सोहर कलां लौट आए. आज वह न सिर्फ सुकून की जिन्दगी जी रहे हैं, बल्कि इस दिशा में काम करके मोटी कमाई भी कर रहे हैं.
समाचार एजेंसी पीटीआई को दिए गए एक विशेष इंटरव्यू में शुभम कहते हैं, "काम का मतलब यह है कि जिसमें आपको थोड़ा शांति मिले. सुकून मिले. दो रुपये आएं और समाज के लिए आप कुछ कर सकें. पैसा कमाना आदमी की जिन्दगी है. ऐसे ही काम का चुनाव होता है."
जब शुभम ने अपनी कॉरपोरेट नौकरी छोड़कर खेती का रास्ता चुना तो यह उनके लिए आसान फैसला नहीं था. दोस्तों-रिश्तेदारों के ताने सुनना और सहना उनके लिए बड़ी चुनौती थी.
वह कहते हैं, "कहावत है कि बेटा पढ़े फारसी और बेचे तेल. मेरे बारे में लोग वही कहते हैं. मेरे जितने दोस्त हैं वे यही बोलते हैं. हमारा पेट्रोल पंप का भी व्यवसाय है. तो लोग बोलते हैं कि इंजीनियरिंग और फिर एमबीए की पढ़ाई करके मैं तेल बेच रहा हूं, खेती कर रहा हूं. लेकिन काम कोई बुरा नहीं है."
मल्टी-लेयर फार्मिंग से पाई सफलता
काम के प्रति निष्ठा और खेती-किसानी की आधुनिक तकनीक के जरिये उन्होंने साढ़े सात एकड़ बंजर जमीन में हरियाली ला दी. शुभम ने यहां 20 हजार से ज्यादा पौधे लगाए हैं. वह बताते हैं, "मैं मल्टी लेयर फार्मिंग करता हूं. मल्टी लेयरिंग का मतलब है कि आप एक जमीन पर कई फसलें लगा सकते हैं. जैसे, यहां पर मैंने बागवानी की तो मैंने फलदार वृक्ष भी लगाए हैं, इमारती लकड़ी भी है. यहां नींबू भी है."
वह बताते हैं, "सब्जी का उत्पादन हम क्या-क्या कर सकते हैं? क्योंकि आम का पौधा तो साल में एक बार फल देगा. लेकिन उसके बीच में जो जमीन खाली है, उसमें हम लोग ओल लगा देते हैं, हल्दी लगाते हैं, अदरक लगाते हैं. उसके अलावा सब्जियों की खेती करते हैं. बीच में तेलहन भी लगा देते हैं."
मल्टी लेयर खेती के अलावा शुभम ने इन्टेग्रेटेड खेती भी शुरू की. आमदनी के स्रोतों में विविधता लाने के लिए उन्होंने पशुपालन करना शुरू किया. शुभम बताते हैं, "इन्टिग्रिटेड फार्मिंग में क्या है कि खेती पर आधारित जो उद्योग है, जैसे पोल्ट्री हो गया, डक्री, पशुपालन या बकरी पालन इन्टिग्रेटेड फार्मिंग में आ जाता है. खेती-किसानी में जमीन से जो उपज हो रही है उसके अलावा भी क्या आप कर सकते हैं और उसका जो बाई प्रोडक्ट है, उसका इस्तेमाल कैसे आप अपने खेतों में करके अपनी लागत को घटा के प्रॉफिट बढ़ा सकते हैं."
गांव में लोगों को दिया रोज़गार
शुभम ने गांव के दो दर्जन से ज्यादा युवाओं को रोजगार दिया है. वे उन्हें सम्मानजनक जिंदगी जीने का जरिया मुहैया करा रहे हैं. शुभम के खेतों में काम करने वाले एक मज़दूर रविशंकर बताते हैं कि वह शुभम के साथ मछली पालन, मुर्गी पालन, बकरी पालन और अन्य पशुओं की देखरेख का काम कर रहे हैं. वह इससे पहले ओडिशा में लेकिन अब गांव लौट आए हैं. गांव लौटकर उनकी जीवन सुकून से चल रहा है.
शुभम के खेत में मजदूरी करने वाले अब्बास अंसारी कहते हैं, "(यहां काम करके) मेरी रोजी-रोटी चलती है. जितना भी स्टाफ है, सबका काम चलता है. खेत में जिस चीज की भी जरूरत होती है उसे लाना हमारा काम है. इसी तरह कोई भी समस्या हो, हमको समाधान करना है."
आज शुभम प्रगतिशील किसान के रूप में एक मिसाल बन चुके हैं. खुद सुकून की जिंदगी जी रहे हैं और दूसरों को जीने के लिए प्रेरित कर रहे हैं. माटी की मोहब्बत और जीने के साफ मकसद के जरिये शुभम ने ना सिर्फ बीजों को लहलाते पेड़ों में बदला है, बल्कि स्थिरता, आत्मनिर्भरता और सेवा पर आधारित जीवन शैली भी विकसित कर ली है.