

इटली के लग्जरी फैशन ब्रांड प्राडा (Prada) की नई कलेक्शन को लेकर सोशल मीडिया पर बहस छिड़ गई है. प्राडा ने हाल ही में मिलान (Milan) में अपने Men's Spring/Summer 2026 कलेक्शन को पेश किया. इसमें मॉडल्स के पैरों में जो सैंडल नजर आईं, वह दिखने में बिल्कुल भारत की मशहूर 'कोल्हापुरी चप्पल' जैसी दिख रही थीं.
हालांकि, भारतीय फैशन इंडस्ट्री ने देसी डिजाइन के वैश्विक मंच पर पहुंचने का स्वागत किया, लेकिन बहस इस बात पर छिड़ गई कि शो में कहीं भी कोल्हापुरी चप्पलों की उत्पत्ति या उनके सांस्कृतिक महत्व का कोई ज़िक्र नहीं किया गया.
शो के तुरंत बाद सोशल मीडिया पर बवाल मच गया. भारतीय दर्शकों ने तुरंत पहचान लिया कि शो में दिखाई गई सैंडल्स की डिजाइन, आकार, पतली बनावट और टो-रिंग (अंगूठे की अंगूठी) जैसी विशेषताएं कोल्हापुरी चप्पल से एकदम मेल खाती हैं. एक यूज़र ने एक्स पर लिखा, "कहते हैं अगर आप अपनी संस्कृति को नहीं सराहेंगे, तो कोई और उसका फायदा उठा लेगा और यही हो रहा है. प्राडा अब इन कोल्हापुरी चप्पलों को सैकड़ों डॉलर में बेच रहा है, लेकिन हमारे कारीगरों को न श्रेय मिल रहा है, न ही उचित मेहनताना."
किसी ने लिखा, "तो अब स्कैंडिनेवियन स्कार्फ और एक लाख दूसरी भारतीय चीज़ों के बाद, दुनिया ने खुलेआम हमारी प्यारी कोल्हापुरी चप्पलें भी चुरा ली हैं. ये है प्राडा का स्प्रिंग 2026 मेन्स कलेक्शन- मैं चौंक गया हूं और जानना चाहता हूं कि इन्हें क्या नाम देंगे? ‘हैंडक्राफ़्टेड लेदर थॉन्ग सैंडल’?"
प्राडा के इस शो में कुल 56 लुक्स में से चार में यह चप्पलें देखने को मिलीं. मॉडल्स को अर्दी टॉन्स और न्यूनिस्टिक स्टाइल में सजाया गया था. इसके बावजूद, शो के किसी भी आधिकारिक दस्तावेज़ या रिलीज़ में कोल्हापुरी चप्पल या भारत का कोई ज़िक्र नहीं किया गया. इस विवाद को और हवा तब मिली जब फैशन शो में शामिल लोगों ने अपने शो इनवाइट्स की तस्वीरें शेयर कीं, जिसमें एक "लेदर रिंग" को टोकन गिफ्ट के तौर पर दिया गया था, जो कई लोगों को कोल्हापुरी चप्पल के अंगूठे के रिंग डिज़ाइन की सीधी नकल लगी.
इस घटना की तुलना ‘स्कैंडिनेवियन स्कार्फ स्कैंडल’ से की जा रही है, जिसमें एक वेस्टर्न ब्रांड ने भारतीय दुपट्टे को नया नाम देकर "नॉर्डिक मिनिमलिस्ट एक्सेसरी" बताया था. इसी तरह, कान्स फिल्म फेस्टिवल में आलिया भट्ट की सब्यसाची साड़ी को अंतरराष्ट्रीय फैशन मीडिया द्वारा "गाउन" कहा गया था, जिससे भारतीय पहचान को मिटाने की कोशिश की गई थी.
महाराष्ट्र के कोल्हापुर से निकली ये चप्पलें 13वीं शताब्दी की देन हैं, जब राजा बिज्जल और उनके मंत्री बसवन्ना का शासन था.कोल्हापुरी चप्पलें पूरी तरह हाथ से बनाई जाती हैं और इनमें सब्ज़ी के अर्क से रंगा गया चमड़ा (vegetable-tanned leather) इस्तेमाल होता है. ये चप्पलें सपाट तलवे, टिकाऊपन, आरामदायक डिज़ाइन और जटिल शिल्पकला के लिए जानी जाती हैं.
आमतौर पर इन चप्पलों को बनाने में धूप में सुखाया गया चमड़ा उपयोग होता है. चमड़े को 3 से 6 हफ्तों तक प्राकृतिक तरीके से सब्ज़ी के रंगों से तैयार किया जाता है. उसके बाद कारीगर हाथों से इसे काटते, सिलते और सजाते हैं. एक जोड़ी चप्पल बनाने में 3 से 15 दिन लगते हैं, जिसमें आखिरी चरण में तेल लगाते हैं और पॉलिशिंग की जाती है जिससे चप्पल पहनने में आरामदायक और टिकाऊ बनती है.
इनका पारंपरिक तरीका पर्यावरण के अनुकूल भी है, क्योंकि इसमें केमिकल नहीं, बल्कि प्राकृतिक रंगों का उपयोग होता है. मराठा साम्राज्य के समय ये चप्पलें राजसी संरक्षण में थीं और योद्धाओं व शाही लोगों के बीच लोकप्रिय थीं. साल 1970 के दशक में कोल्हापुरी चप्पलें पश्चिमी देशों के हिप्पी कल्चर का हिस्सा बनीं और वहां की स्ट्रीट स्टाइल में शामिल हो गईं. समय के साथ इन चप्पलों ने रंग-बिरंगे डिज़ाइनों, हल्के सोल और मेटैलिक फिनिश जैसे कई आधुनिक बदलाव देखे, लेकिन इनका पारंपरिक रूप आज भी लोगों द्वारा पहना जाता है. भारत के विभिन्न इलाकों में यह चप्पल अलग-अलग नामों से जानी जाती हैं, जैसे कपाशी, कचकड़ी, पायताण, बक्कलनाली और पुकारी.
जुलाई 2019 में कोल्हापुरी चप्पल को भौगोलिक संकेत (GI टैग) मिला, जिससे यह स्पष्ट हो गया कि ये चप्पलें कोल्हापुर की विशेष पहचान हैं. असली कोल्हापुरी चप्पलें 100% प्राकृतिक चमड़े से बनती हैं. इनका डिज़ाइन ऐसा होता है कि यह गर्मी सोख लेती हैं और पहनने वाले के पैरों को ठंडक देती हैं. समय के साथ यह पैरों के अनुरूप ढल जाती हैं. भारत में इनकी कीमत आमतौर पर ₹500 से ₹3000 के बीच होती है.