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Nivea vs Ponds: High Court में भिड़े पॉपुलर मॉइस्चराइजर ब्रांड निविया और पोंड्स, जान लें पूरा मामला

कोर्ट ने कहा कि विज्ञापनों को नियंत्रित करने वाले जो भी कानून हैं वो केवल प्रिंट या डिजिटल माध्यमों पर ही नहीं लागू होते बल्कि इन-मॉल मार्केटिंग कैंपेन पर भी लागू होते हैं. जस्टिस अनीश दयाल ने अपने आदेश में एचयूएल की गतिविधियों को भ्रामक और अपमानजनक माना है.

Nivea and Pond's Case (Photo: Getty Images) Nivea and Pond's Case (Photo: Getty Images)
हाइलाइट्स
  • नीली डिब्बी से जुड़ा है पूरा मामला 

  • कोर्ट ने की आलोचना

लोकप्रिय मॉइस्चराइजर ब्रांड निविया और पॉन्ड्स (Nivea vs Ponds) के बीच कानूनी लड़ाई चल रही है. 3 साल से चल रही है ये कानूनी लड़ाई हाई कोर्ट तक पहुंच गई है. इसे पीछे की वजह एक नीली डिब्बी है. जी हां, ये पूरा केस ट्रेडमार्क उल्लंघन से जुड़ा है. विवाद साल 2021 में शुरू हुआ था. निविया प्रोडक्ट के निर्माता बीयर्सडॉर्फ एजी (Beiersdorf AG) ने पोंड्स प्रोडक्ट के निर्माता हिंदुस्तान यूनिलीवर लिमिटेड (HUL) के खिलाफ दिल्ली हाई कोर्ट (Delhi High Court) में कानूनी कार्यवाही शुरू की.

नीली डिब्बी से जुड़ा है पूरा मामला 

बीयर्सडॉर्फ एजी ने आरोप लगाया कि दिल्ली और गुड़गांव के अलग-अलग मॉल में एचयूएल गलत मार्केटिंग के तरीके अपना रहे हैं. उन्होंने दावा किया कि एचयूएल एक बिना लेबल वाली नीली डिब्बी के साथ पॉन्ड्स सुपर लाइट जेल का प्रदर्शन कर रहे थे. ये नीली डीबी काफी हद तक निविया की ब्लू टब पैकेजिंग से मिलती जुलती है. दरअसल, इसके लिए एक ग्राहक के एक हाथ पर नीली डिब्बी वाली क्रीम लगाई गई और दूसरे हाथ पर पॉन्ड्स जेल, साथ ही ये दिखाया गया कि पोंड्स जेल की तुलना में निविया की क्रीम ऑइल निकल रहा है. इसके माध्यम से ग्राहकों को ये दिखाया जा रहा है कि पोंड्स निविया से बेहतर है. 

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बीयर्सडॉर्फ एजी के दावे

बीयर्सडॉर्फ एजी ने ट्रेडमार्क उल्लंघन (trademark infringement), गलत ट्रेड प्रैक्टिस, अपमान और इससे हुए उनके प्रोडक्ट को नुकसान का आरोप लगाते हुए एचयूएल के खिलाफ कार्रवाई करने की मांग की है. उन्होंने तर्क दिया कि एचयूएल की तुलना भ्रामक और अनुचित थी. साथ ही इस बात पर जोर दिया कि बिना नाम वाली ये नीली डिब्बी निविया की पैकेजिंग से काफी  मिलती-जुलती है. इसमें निविया प्रोडक्ट्स से जुड़े नीले रंग के समान शेड का उपयोग भी शामिल है. इसके अलावा, उन्होंने तर्क दिया कि हल्के क्रीम/जेल-आधारित पॉन्ड्स प्रोडक्ट के साथ निविया प्रोडक्ट की हैवी क्रीम कैटेगरी की तुलना करना स्वाभाविक रूप से गलत था.

पोंड्स ने अपने बचाव में क्या कहा  

एचयूएल ने बियर्सडॉर्फ एजी के दावों का खंडन करते हुए कहा कि उन्होंने निविया से जुड़े किसी भी ब्रांडिंग के बिना एक नॉर्मल नीली डिब्बी का उपयोग किया था. उन्होंने तर्क दिया कि निविया का नीले रंग पर एकाधिकार नहीं है और उनकी ये क्रीम वाली तुलना पूरी तरह से जायज है. बिना नाम वाली नीली डिब्बी वाली क्रीम की तुलना में पॉन्ड्स क्रीम में कम चिपचिपाहट है. 

दिल्ली HC का फैसला

बियर्सडॉर्फ एजी की दायर याचिका के जवाब में, दिल्ली हाई कोर्ट ने एचयूएल को कहा है कि वे इस तरह का विज्ञापन रोक दें. जस्टिस अनीश दयाल ने अपने आदेश में एचयूएल की गतिविधियों को भ्रामक और अपमानजनक माना है. अदालत ने कहा कि नीला रंग, विशेष रूप से 'पैनटोन 280सी', लंबे समय से निविया के प्रोडक्ट्स के साथ जुड़ा हुआ था, और एचयूएल का अपने एड में नीली डिब्बी का उपयोग करना कई हद तक निविया से जुड़ा हुआ है. 

कोर्ट ने की आलोचना

इतना ही नहीं बल्कि कोर्ट ने सबसे हल्के उत्पाद, पॉन्ड्स सुपर लाइट जेल की तुलना निविया के सबसे हैवी प्रोडक्ट, निविया क्रीम से करने के एचयूएल के फैसले को स्वाभाविक रूप से भ्रामक बताते हुए आलोचना की है. इसमें इस बात पर जोर दिया गया कि अगर एचयूएल का इरादा निविया प्रोडक्ट्स को बदनाम करने या उनका अपमान करने का नहीं था तो वह एक अलग रंग की डिब्बी का विकल्प चुन सकती थी. इसके अलावा, कोर्ट ने स्पष्ट किया कि विज्ञापनों को नियंत्रित करने वाले कानून प्रिंट या डिजिटल माध्यमों से परे, इन-मॉल मार्केटिंग कैंपेन पर भी लागू होते हैं. 

गौरतलब है कि दिल्ली हाई कोर्ट ने मुकदमे की अगली सुनवाई 24 जुलाई को निर्धारित की है.