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Non-Woven Bags: अब और मीठी होंगी रामनगर की लीचियां, नॉन-वोवन बैग से बढ़ेगा लीची का स्वाद, किसानों को भी होगा मुनाफा

उत्तराखंड के रामनगर, कालाढूंगी और चकलुआ की लीचियां अब और मीठी और रसीली होंगी. वजह है नई तकनीक, जिसमें लीची के फलों को नॉन-वोवन बैग से ढका जा रहा है.

Non Woven Bags Non Woven Bags
हाइलाइट्स
  • पॉलीप्रोपाइलीन से बने होते हैं ये बैग

  • अब और मीठी होंगी रामनगर की लीचियां

उत्तराखंड के रामनगर, कालाढूंगी और चकलुआ की लीचियां अब और मीठी और रसीली होंगी. वजह है नई तकनीक, जिसमें लीची के फलों को नॉन-वोवन बैग से ढका जा रहा है. इन बैग्स से फल न सिर्फ कीटों और मौसम की मार से बचते हैं, बल्कि उनका आकार, रंग और स्वाद भी बेहतर होता है. रामनगर की लीचियों को कुछ साल पहले जीआई (Geographical Indication) टैग भी मिल चुका है, जिससे इस फल की पहचान एक ब्रांड के रूप में बन गई है.

पॉलीप्रोपाइलीन से बने होते हैं ये बैग
इस तकनीक को गोविंद बल्लभ पंत कृषि एवं प्रौद्योगिक विश्वविद्यालय, पंतनगर ने तीन साल के रिसर्च प्रोजेक्ट के तहत विकसित किया है. इसमें किसानों के साथ मिलकर फील्ड लेवल पर प्रयोग किए गए. लीची उत्पादक किसान दीप बेलवाल ने ETV को बताया, "हमने फलों को नॉन-वोवन बैग में लपेट कर देखा. इससे न सिर्फ फल पक्षियों, चमगादड़ों, कीटों और धूप से बचा, बल्कि उसका स्वाद और रंग भी ज्यादा अच्छा आया." उन्होंने बताया कि यह बैग पॉलीप्रोपाइलीन से बने होते हैं, जो पानीरोधी होने के साथ-साथ पर्यावरण के लिए भी सुरक्षित हैं.

Non Woven Bags

बैग्स की वजह से कीटनाशक छिड़कने की जरूरत नहीं 
बेलवाल कहते हैं, “इन बैग्स की सबसे बड़ी खासियत ये है कि हमें फलों पर कीटनाशक छिड़कने की जरूरत नहीं पड़ती. इससे पर्यावरण को नुकसान नहीं होता और किसानों की जेब पर भी असर नहीं पड़ता. इस बार हमने पहली बार इस तकनीक को अपनाया और इसके नतीजे काफी अच्छे रहे. बैग में रखी लीचियां ज्यादा रसीली, मीठी और बिना टूट-फूट के तैयार हुई हैं.”

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इस तकनीक से उत्पादन की गुणवत्ता और मात्रा दोनों में सुधार होता 
बागवानी अधिकारी अर्जुन सिंह परवाल ने बताया कि इन बैग्स के इस्तेमाल से लीची फटने की समस्या भी खत्म हो गई है. इस तकनीक से उत्पादन की गुणवत्ता और मात्रा दोनों में सुधार होता है. इससे किसानों को बेहतर दाम मिलेंगे और उनकी आमदनी बढ़ेगी. अभी रामनगर, कोटाबाग, कालाढूंगी और चकलुआ में करीब 900 हेक्टेयर में लीची की खेती होती है. यहां 1.4 लाख से ज्यादा लीची के पेड़ हैं, जिनकी देखरेख 2000 से ज्यादा किसान करते हैं. हर पेड़ से औसतन 50 किलो लीची मिलती है.

नॉन-वोवन बैग्स की खासियत
इन बैग्स की सबसे बड़ी खासियत है कि ये पानी को रोकते हैं लेकिन हवा को अंदर आने देते हैं. इससे फल भीगते नहीं लेकिन सांस ले पाते हैं, जिससे वे सड़ते नहीं और ताजगी बनी रहती है. बैग के अंदर फल पूरी तरह से ढका रहता है, जिससे किसान को कीटनाशक दवाएं छिड़कने की जरूरत नहीं पड़ती. इसके अलावा लीची जैसे फल जब ज़्यादा पके तो अक्सर फट जाते हैं लेकिन नॉन-वोवन बैग्स उन्हें तापमान और नमी से बचाकर फटने से रोकते हैं.

ये बैग्स पॉलीप्रोपाइलीन नामक प्लास्टिक जैसे दिखने वाले लेकिन हल्के और पर्यावरण के अनुकूल मटेरियल से बने होते हैं. इन्हें कई बार दोबारा भी इस्तेमाल किया जा सकता है, जिससे लागत कम आती है.