scorecardresearch

Dolma Aunty Momos: दिल्ली को इस महिला ने दिया मोमोज़ का स्वाद, एक स्टॉल से की थी शुरुआत, आज 20 लोगों को दे रही हैं रोजगार

दिल्ली हाई कोर्ट ने Dolma Aunty Momos के ट्रेडमार्क से संबंधित एक मामले में दिल्ली हाई कोर्ट ने कहा कि डोलमा आंटी ने साल 1994 में छोटी सी दुकान शुरू की थी और दिल्ली-एनसीआर में इस तिब्बती डिश की पहली रिटेलर थीं.

Dolma Aunty Momos Dolma Aunty Momos
हाइलाइट्स
  • छोटे से स्टॉल से की थी शुरुआत 

  • दे रही हैं कई लोगों को रोजगार 

लाजपत नगर जाएं और आप डोलमा आंटी के मोमोज़ न खाएं, ऐसा कैसे हो सकता है? दिल्ली-NCR मे रहने वाले लोगों के साथ-साथ दूसरी जगहों से यहां घूमने आने वाले लोग भी खासतौर पर डोलमा आंटी के मोमोज़ खाना पसंद करते हैं. लेकिन हाल ही में, डोलमा आंटी अपने मोमोज के साथ किसी और वजह से भी चर्चा में थीं. 

दरअसल, हाल ही में, दिल्ली उच्च न्यायालय ने मोहम्मद अकरम खान के नाम पर "डोलमा आंटी मोमोज़" नाम के ट्रेडमार्क रजिस्ट्रेशन को रद्द कर दिया, क्योंकि डोलमा सेरिंग ने उनके ट्रेडमार्क का इस्तेमाल करने के लिए अकरम खान के खिलाफ अदालत का रुख किया था. उन्होंने खान के ट्रेडमार्क को रद्द करने और हटाने की मांग की. और अब, दिल्ली हाईकोर्ट ने उनका याचिका पर सुनवाई करते हुए अकरम खान का रजिस्ट्रेशन कैंसिल कर दिया है क्योंकि डोलमा आंटी साल 1994 से इस नाम से अपना स्टॉल चला रही हैं और उन्होंने इसका ट्रेडमार्क भी कराया हुआ था. 

छोटे से स्टॉल से की थी शुरुआत 
Dolma Aunty Momos के नाम से अपना Momos Business चलाने वाली डोलमा आंटी मूल रूप से तिब्बत की हैं. माना जाता है कि जब दलाई लामा ने तिब्बत छोड़ा तो उनके पीछे बहुत से तिब्बती भारत आ गए और शरणार्थी बन गए. इन शरणार्थियों में डोलमा आंटी का परिवार भी शामिल था.

डोलमा आंटी कर्नाटक की तिब्बती बस्तियों में पली-बढ़ीं और फिर किस्मत उन्हें दिल्ली ले आई. उन्होंने अपने एक इंटरव्यू में बताया कि दिल्ली आना किसी सपने से कम नहीं था लेकिन जब यहां आईं तो जिंदगी आसान नहीं थी. डोलमा ने 1994 में लाजपत नगर में पहला मोमो स्टॉल शुरू किया था. 90 के दशक में जब डोलमा पहली बार दिल्ली आईं, तो यहां मोमोज़ का चलन नहीं था.

लोगों को लगता था कि यह 'कच्चा' है क्योंकि स्ट्रीट फूड तो फ्राइड होता है. साथ ही, एक महिला यह बिजनेस कर रही है, यह बात भी किसी चुनौती से कम नहीं थी. लेकिन डोलमा आंटी ने धीरे-धीरे लोगों की गलत धारणाओं को दूर किया और अपना जगह बनाई. उन्होंने अपने मोमोज़ को ग्राहकों की पसंद और मांग के हिसाब से बनाना शुरू किया. उनके मोमोज़ की रेसिपी पारंपरिक है लेकिन दिल्ली के स्वाद को देखते हुए उन्होंने मोमोज़ के साथ तीखी चटनी पेश की. 

दे रही हैं कई लोगों को रोजगार 
धीरे-धीरे डोलमा आंटी के मोमोज़ का स्वाद दिल्ली के लोगों की नब्ज पकड़ने लगा. कभी 15 रुपए में छह मोमोज़  की प्लेट मिलती थी और अब 60 रुपए में आठ मोमोज़ मिलते हैं. डोलमा आंटी के स्टॉल के बाहर अब लाइनें लगती हैं और उनका स्टॉल भी दोपहर से ही लग जाता है.

लाजपत नगर के मेन स्टॉल के अलावा और दो जगह डोलमा आंटी के मोमोज़ की स्टॉल्स हैं. लेकिन सब जगह आटी के मोमोज़ की रेसिपीज ही इस्तेमाल होती हैं. सबसे अच्छी बात यह है कि उनके इस काम में अब लगभग 20 लोगों को रोजगार मिल रहा है और वह खुद भी अच्छी कमाई कर रही हैं.