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Success Story: इन युवाओं ने बनाई Gud Gum, पर्यावरण को नुकसान नहीं पहुंचाती है यह प्लास्टिक फ्री च्यूइंग-गम

Gud Gum: मयंक और भुवन के जीवन में सस्टेनेबिलिटी का बीज बचपन में ही बो दिया गया था. उनका परिवार काफी जागरूक था. फिर चाहे वह प्लास्टिक का इस्तेमाल हो या पर्यावरण के प्रति उनका रुझान. तभी से इन दोनों भाइयों का प्रकृति और अपनी पृथ्वी से एक मजबूत संबंध बन गया.

इन युवाओं ने बनाई गुड़ गम इन युवाओं ने बनाई गुड़ गम
हाइलाइट्स
  • बचपन से ही ऐसा कुछ करने का सोचा था 

  • पर्यावरण को नुकसान नहीं पहुंचाती है

टाइमपास करने के लिए च्युइंग गम के बड़े बबल बनाना, लंच या डिनर के बाद सांसों को तरोताजा करने के लिए इसका सहारा लेना या दिन में बस यूंही इसे चबाते रहना… सबने किया है. च्युइंगम चबाना हम में से कई लोगों की आदत में शुमार होता है. लेकिन ये हानिरहित दिखने वाली चीज काफी नुकसान पहुंचा सकती है. स्वास्थ्य को ही नहीं बल्कि हमारे वातावरण को भी. हम में से बहुत से लोग यह जानकर चौंक जाएंगे कि फेंकी गई च्युइंग गम दुनिया में कूड़े का दूसरा सबसे आम प्रकार है. इसके अलावा, आधुनिक च्युइंग गम गैर-बायोडिग्रेडेबल पॉलिमर, आर्टिफिशियल स्वीटनर और टेस्ट से बनी होती हैं, जो स्वास्थ्य समस्याओं को पैदा करती हैं. लेकिन बैंगलोर के दो भाइयों मयंक नागोरी और भुवन नागोरी ने इसका विकल्प तलाश लिया है. उन्होंने प्लास्टिक मुक्त, बायोडिग्रेडेबल, शाकाहारी च्युइंग गम गुड गम लॉन्च की है. 

गुड गम को NSRCEL – IIMB द्वारा इनक्यूबेट किया गया है. दो भाई की इस जोड़ी ने पारंपरिक च्युइंग गम को गुड गम से बदलकर धरती को प्रदूषित करने से 750 - 800 किलोग्राम सिंगल-यूज प्लास्टिक को बचाने में मदद की है. अभी तक ये दोनों लगभग 12,000 ग्राहकों को सर्विस दे चुके हैं.

बचपन से ही ऐसा कुछ करने का सोचा था 

मयंक और भुवन के जीवन में सस्टेनेबिलिटी का बीज बचपन में ही बो दिया गया था. उनका परिवार तब भी काफी जागरूक था. फिर चाहे वह प्लास्टिक का इस्तेमाल हो या पर्यावरण के प्रति उनका रुझान. तभी से इन दोनों भाइयों का प्रकृति और अपनी पृथ्वी से एक मजबूत संबंध बन गया. ऐसे में जब च्विंगम के प्लास्टिक कनेक्शन की जानकारी मयंक को मिली तो उन्हें थोड़ा झटका लगा. लाइफ बियॉन्ड नंबर्स को इंटरव्यू देते हुए मयंक कहते हैं, "मैं 10वीं कक्षा में था, और मेरे भूगोल के शिक्षक ने मुझे बताया कि च्युइंग गम प्लास्टिक से बने होते हैं और उन्हें नष्ट होने में प्लास्टिक कैरी बैग की तुलना में अधिक समय लगता है. इसमें एक हजार साल लग सकते हैं.” बस तभी से मयंक ने च्युइंग गम को छोड़ने का फैसला कर लिया.

वर्षों बाद, लंदन की नॉटिंघम यूनिवर्सिटी से फ़ूड प्रोडक्शन मैनेजमेंट में मास्टर की पढ़ाई करते हुए, मयंक ने च्युइंग गम प्रदूषण की समस्या पर फिर से विचार करना शुरू किया. मयंक कहते हैं,  "मैं उत्सुक था कि पारंपरिक च्यूइंग गम के लिए कोई स्वस्थ विकल्प क्यों नहीं हैं और यह प्लास्टिक से क्यों बना है. तभी मैं हेल्दी च्युइंग गम बनाने वाली अमेरिका की एक कंपनी के संपर्क में आया और लगा कि भारत में भी कुछ ऐसा ही किया जा सकता है.”

बहुत कम लोग जानते थे इसके बारे में 

पायलट टेस्टिंग के बाद, दोनों भाइयों ने महसूस किया कि च्युइंग गम का सेवन करने वाले लोग च्युइंग गम से होने वाली पर्यावरण और स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं के बारे में बहुत कम जानते थे. मयंक कहते हैं, "हमने सोचा कि यह उत्पाद न केवल च्युइंग गम के रिप्लेसमेंट के रूप में बल्कि लोगों को इस बात को लेकर भी जागरूक करेगा कि हम क्या खा रहे हैं.”

दोनों च्युइंग गम में कितना फर्क है?

पारंपरिक च्युइंग गम को पॉली विनाइल एसीटेट नामक रसायन से बनाया जाता है, जिसका उपयोग रबर के टायर और गोंद में भी किया जाता है, साथ ही, च्युइंग गम को उसका रंग और स्वाद देने के लिए कई तरह की आर्टिफिशियल चीजें मिलाई जाती हैं. ये आर्टिफिशियल स्वीटनर लंबे समय में शरीर को संभावित रूप से नुकसान पहुंचा सकते हैं. इसकी तुलना में, मयंक बताते हैं कि गुड गम पेड़ के रस से बना होता है. गम में Xylitol और Stevia जैसी प्राकृतिक मिठास होते हैं, और इस प्रकार प्रत्येक गम में लगभग एक कैलोरी होती है. इसके आलावा, गुड गम को कागज या टिन में पैक किया जाता है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि प्लास्टिक का उपयोग न हो.