
भारत लगातार क्लीन एनर्जी की दिशा में आगे बढ़ रहा है. सौर ऊर्जा और पवन ऊर्जा के कई नए प्रोजेक्ट्स पर काम चल रहा है. हालांकि, सबसे अच्छी बात यह है कि अब आम नागरिक क्लीन एनर्जी के महत्व को समझ रहे हैं. अब लोग न सिर्फ अपने घर या बिजनेस के लिए सोलर या विंड एनर्जी अपना रहे हैं बल्कि बहुत से लोग खुद सोलर पैनल या विंड टर्बाइन के बिजनेस में हाथ आजमा रहे हैं. अब तक इस सेक्टर में बड़ी कंपनियों के नाम सुने जाते थे लेकिन अब युवा इस सेक्टर में इनोवेशन करके अपने उद्यम शुरू कर रहे हैं.
इसका एक उदाहरण गुजरात के सूरत में देखने को मिला. मूल रूप से बाड़मेर से ताल्लुक रखने वाले डूंगर सिंह सोढ़ा ने 'सनविंड' नामक एक पोर्टेबल पवन चक्की का आविष्कार किया है, जो न केवल ग्रामीण इलाकों में बिजली संकट का समाधान है, बल्कि शहरी क्षेत्रों से लेकर यह पूरे देश में साफ और सस्ती ऊर्जा का नया रूप पेश कर रहा है.
रेगिस्तान की मुश्किलों से जन्मी एक क्रांति
डूंगर सिंह बचपन में उन दिनों को याद करते हैं जब पावर कट से परेशान होकर उन्होंने अपने घर में गोबर गैस और टॉर्च से रोशनी का इंतजाम किया था. बिजली की कटौती की समस्या से इतने परेशान हुए कि उन्होंने ठान लिया कि जब भी उन्हें मौका मिलेगा, तो इस समस्या का स्थायी समाधान निकालेंगे. उनके दिमाग में एक विचार आया कि ऐसी पवन चक्की तैयार करें जिसे घर की छत पर लगाया जा सके और कहीं भी ले जाया जा सके ताकि हर घर में सस्ती और स्थिर बिजली मिल सके.
पढ़ाई से लेकर मेहनत तक का संघर्ष
जब डूंगर सिंह ने 10वीं के बाद विज्ञान फैकल्टी में एडमिशन लेने की कोशिश की तो उन्हें सफलता नहीं मिली, जिससे वे काफी निराश हो गए. लेकिन निराश होने के बजाय उन्होंने मजदूरी के लिए गुजरात के सूरत का रुख किया. लेकिन यहां भी बिजली की कटौती ने उन्हें परेशान किया और उनकी मेहनत में रुकावट डाल दी. यहां डूंगर सिंह ने ठान लिया कि उन्हें विंड टरबाइन बनानी है.
इसके बाद डूंगर सिंह ने अपने एक दोस्त से 50 हज़ार रुपए उधार लेकर काम शुरू किया. शुरूआत में कई बार असफलता मिली, लेकिन उनका दृढ़ विश्वास था कि अगर मेहनत सच्ची हो, तो सफलता जरूर मिलती है. इसी विश्वास और संघर्ष के साथ उन्होंने सनविंड पवन चक्की बनाई. डूंगर सिंह के मुताबिक, उनकी पोर्टेबल पवन चक्की का शुरुआती खर्च एक स्मार्टफोन के बराबर है, और यह रोज़ाना 10-12 यूनिट बिजली का उत्पादन करती है, जो एक सामान्य परिवार के लिए पर्याप्त है. इस पोर्टेबल पवन चक्की का पेटेंट भी डूंगर सिंह ने करवा लिया है और इसे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सराहा जा रहा है. उनके द्वारा बनाई जा रही छोटी-छोटी पवन चक्की सेना को भी दी जा रही है तो वही अफ़्रीकन देशों में भी भेजी जा रही है.
कहीं भी लगा सकते हैं यह विंड टर्बाइन
डूंगर सिंह सोढ़ा के द्वारा बनाई गई पवन चक्की गांव के घरों में तो शहरी इलाको की ऊंची-ऊंची बिल्डिंग्स की बालकनी में भी लगाई जा सकती है. पोर्टेबल पवन चक्की का इस्तेमाल कहीं भी, कैसे भी किया जा सकता है. इसका इस्तेमाल करने में कोई परेशानी नहीं होती है. डूंगर सिंह सोढ़ा ने बताया कि उनकी सन विंड कंपनी द्वारा बनाई गई पहली पवन चक्की एक जुगाड़ पवन चक्की कही जा सकती है. जिसे बड़ी आसानी से बनाया गया था.
उसके बाद उन्होंने डिमांड पर पवन चक्की बनाने की शुरुआत की थी. वह 100 वाट से 100 किलो वाट तक की पवन चक्की बना सकते हैं. एक किलो वाट की पवन चक्की महीने में 300 किलो वाट तक बिजली उत्पादित कर सकती है जो एक घर के लिए काफ़ी है. स्मार्ट फ़ोन की कीमत में वह लोगों को पवन चक्की मुहैया कर रहे है.
(संजय सिंह राठौड़ की रिपोर्ट)