WhatsApp chats income tax evidence (Representative Image) 
 WhatsApp chats income tax evidence (Representative Image) अगर आप भी व्हाट्सएप पर "भाई 10 लाख रेडी हैं", "प्लॉट के पैसे कैश में दूंगा" जैसी बातें करते हैं, तो ये आप पर भारी पड़ सकता है. या अगर आप भी सोचते हैं कि व्हाट्सएप पर की गई बातचीत बस दोस्तों तक ही सीमित है? तो जरा रुकिए! अब व्हाट्सएप पर भेजे गए मैसेज, तस्वीरें और चैट्स आपके टैक्स रिकॉर्ड में भूचाल ला सकते हैं.
राजस्थान हाईकोर्ट ने एक ऐसा फैसला सुनाया है, जिसने सोशल मीडिया यूजर्स और टैक्स चोरी करने वालों को चौकन्ना कर दिया है. जी हां, कोर्ट ने साफ कह दिया है कि व्हाट्सएप चैट्स को आयकर जांच के वैध सबूत के तौर पर स्वीकार किया जा सकता है.
क्या है पूरा मामला?
इस केस की शुरुआत होती है गिरिराज पुगालिया बनाम असिस्टेंट कमिश्नर ऑफ इनकम टैक्स (Writ Petition No. 3152/2025) से, जिसमें गिरिराज पुगालिया नामक व्यक्ति ने हाईकोर्ट का दरवाज़ा खटखटाया था.
गिरिराज पुगालिया ने असेसमेंट ईयर 2019-20 में ₹41,89,700 की आमदनी दिखाई थी. उस वक्त आयकर विभाग को उनसे कोई शिकायत नहीं थी. लेकिन 13 जुलाई 2020 को जयपुर स्थित ओम कोठारी ग्रुप पर इनकम टैक्स विभाग ने रेड डाली और वहां से जो डिजिटल डेटा मिला, उसने गिरिराज की दुनिया ही हिला दी.
WhatsApp चैट्स में क्या था?
रेड के दौरान विभाग के हाथ कुछ ऐसी व्हाट्सएप चैट्स और तस्वीरें लगीं, जिनमें बड़े प्लॉट्स की खरीद-फरोख्त का जिक्र था. उन चैट्स में ये साफ दिखाई दिया कि गिरिराज पुगालिया ने ओम मेटल इन्फोटेक प्राइवेट लिमिटेड (जो कि ओम कोठारी ग्रुप की कंपनी है) से प्लॉट्स खरीदे और बदले में मोटी नकद राशि दी– जो किसी भी बही-खाते में दर्ज नहीं थी.
चैट में 08 फरवरी 2019 को ₹48 लाख की नकद डील, और कुल ₹52 लाख से ज्यादा की "काली कमाई" का खुलासा हुआ.
यानी व्हाट्सएप चैट्स, डिजिटल फोटो और दूसरे डिजिटल एविडेंस को आधार बनाकर कहा गया कि ये "अनएकाउंटेड कैश ट्रांजेक्शन्स" हैं और यहीं से शुरू हुई एक बड़ी जांच.
क्या कहा हाईकोर्ट ने?
जस्टिस पुष्पेन्द्र सिंह भाटी और जस्टिस चंद्र प्रकाश श्रीमाली की बेंच ने साफ शब्दों में कहा कि, “व्हाट्सएप चैट्स में जो नकद लेन-देन दर्शाया गया है, वो पर्याप्त रूप से आयकर एक्ट की धारा 153C के तहत कार्यवाही शुरू करने के लिए पर्याप्त है. चैट्स में ट्रांजेक्शन की तारीखें, रकम, प्लॉट्स की डिटेल्स और संदिग्ध गतिविधियों की पुष्टि होती है.”
हालांकि याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि चैट्स में उसका नाम नहीं है, सिर्फ एक सामान्य सरनेम का जिक्र है जो राजस्थान में आम है. लेकिन कोर्ट ने इस दलील को खारिज कर दिया और कहा कि, "नोट में पूरी तरह यह स्पष्ट है कि जांच की कार्यवाही शुरू करने के लिए पर्याप्त कारण मौजूद हैं."
तो अगली बार जब भी आप व्हाट्सएप पर कोई डील करें – सोच-समझकर करें, क्योंकि अब चैट्स भी गवाही देंगे!