Retired Professor Surendra Singh
Retired Professor Surendra Singh यह कहानी उत्तराखंड के काशीपुर में रहने वाले 65 वर्षीय सुरेंद्र सिंह रावत की है, जो यह साबित करते हैं कि सीखने की कोई उम्र नहीं होती. सरकारी नियमों के अनुसार भले ही 60 साल की उम्र के बाद नौकरी से रिटायर होना पड़ता है, लेकिन सुरेंद्र सिंह रावत ने रिटायरमेंट के बाद भी पढ़ाई का जुनून नहीं छोड़ा.
वे पहले अल्मोड़ा जिले के महाकालेश्वर चौखटिया इंटर कॉलेज में विज्ञान के प्रोफेसर थे और बाद में आईटी और अर्थशास्त्र के प्रवक्ता भी रहे. 31 मार्च 2021 को वे सेवानिवृत्त हुए और अपने परिवार के साथ काशीपुर के पास के एक छोटे गांव प्रतापपुर, चांदपुर में रहने लगे. उनका एक बेटा भीमताल यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर है और दूसरा अल्मोड़ा में वकील है.
रिटायरमेंट के बाद सुरेंद्र सिंह रावत ने देखा कि समाज में कानून की जानकारी की कमी है. इसी को दूर करने की सोच के साथ उन्होंने काशीपुर के सत्येंद्र चंद्र गुड़िया लॉ कॉलेज में एलएलबी में दाखिला लिया. अब वे द्वितीय वर्ष के चौथे सेमेस्टर की परीक्षा दे चुके हैं. उनका लक्ष्य है कि कानून की पढ़ाई पूरी करके समाज सेवा करें और लोगों को उनके अधिकारों और कर्तव्यों के बारे में जागरूक करें.
सुरेंद्र सिंह रावत का अनुभव
उन्होंने बताया कि उन्हें हमेशा से पढ़ाई का शौक था. जब उन्होंने कॉलेज में एडमिशन लिया तो युवा छात्र पहले थोड़ा अजीब महसूस करते थे, लेकिन जब उन्होंने अपना उद्देश्य बताया, तो छात्रों का व्यवहार बदल गया और वे उनसे प्रेरित भी हुए.
कॉलेज के रजिस्ट्रार डॉ. सुधीर कुमार पांडे का कहना है कि सुरेंद्र सिंह रावत ने जब एडमिशन की इच्छा जताई, तो हमने कहा कि पढ़ाई की कोई उम्र नहीं होती. उन्होंने बहुत लगन से पढ़ाई शुरू की और अच्छा प्रदर्शन कर रहे हैं. चूंकि वे पहले से ही शिक्षा के क्षेत्र से जुड़े रहे हैं, इसलिए पढ़ाई उनके लिए आसान भी है.
यह कहानी हमें यह सिखाती है कि उम्र चाहे जो भी हो, अगर कुछ सीखने की लगन हो तो रास्ते खुद-ब-खुद बन जाते हैं.
(रमेश चंद्र की रिपोर्ट)