
Government school in Ambikapur
Government school in Ambikapur छत्तीसगढ़ का शिमला कहे जाने वाले मैनपाट की तराई पर एक छोटा सा गांव झांझरिया है. यह क्षेत्र अति पिछड़ा आदिवासी बाहुल्य क्षेत्र है लेकिन यहां के सरकारी स्कूल को देखकर आप हैरान रह जाएंगे. जिला मुख्यालय अंबिकापुर शहर से 80 किलोमीटर दूर मैनपाट विकासखंड में जंगल के बीच ग्राम पंचायत चैनपुर के झांझरिया गांव का स्कूल एकदम आधुनिक है.
इसे देखने में लगता है कि मानो शहर का कोई प्राइवेट स्कूल हो. स्कूल परिसर से लेकर क्लास रूम की दीवारों तक को पेंटिंग से सजाया गया है. हर एक पेंटिंग और चित्रकारी जीवन जीने के तौर-तरीके सिखाती है.
शिक्षकों की मेहनत लाई रंग
इस प्राथमिक पाठशाला के अनूठे नजारे के पीछे प्रभारी हेडमास्टर अरविंद गुप्ता और स्कूल के अन्य शिक्षकों की मेहनत और लगन नजर आती है. अरविंद गुप्ता का कहना है कि स्कूल की हालत बदलने के लिए बच्चों की उपस्थिति पर विशेष अभियान चलाया गया. डोर टू डोर जाकर बच्चों के माता-पिता को समझाया गया.
इसके अलावा घुमंतू बच्चों पर विशेष ध्यान दिया गया. लगातार प्रयासों से बच्चों की उपस्थिति 95% तक पहुंच गई. आदिवासी बच्चों को पढ़ाई की तरफ आकर्षित करने के लिए उन्होंने बच्चों को एजुकेशन सेंसर किट से पढ़ाना शुरू किया ताकि बच्चे स्मार्ट बन सकें.

एजुकेशन सेंसर किट से पढ़ते हैं बच्चे
इस किट की खासियत है कि इसमें सेंसर लगा हुआ है. यह किट 2 साल से 10 साल के बच्चों के लिए स्पेशल डिजाइन किया गया है. शिक्षा के क्षेत्र में इस पहल ने शासन प्रशासन को प्रभावित किया है. इस विद्यालय में 52 छात्र-छात्राएं हैं जो बड़े ही अनुशासन से पढ़ रहे हैं.
आपको यह जानकर ताज्जुब होगा कि इस विद्यालय को सेंसर किट राज्य सरकार ने नहीं बल्कि यहां के प्राध्यापक व शिक्षकों ने अपने खर्च से खरीदा है. एक इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस की कीमत लगभग 7000 रु. है और इस विद्यालय में ऐसे 4 डिवाइस हैं.
अरविंद गुप्ता कहते हैं कि उन्होंने रायपुर के एक मेले में इस इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस को देखा. फिर इस सेंसर युक्त डिवाइस को बच्चों के बीच ले जाकर बच्चों को पढ़ाई के लिए प्रेरित किया. आज यहां के बच्चे हंसी-खुशी विद्यालय में आकर पढ़ाई करते हैं.
(सुमित सिंह की रिपोर्ट)