
जहांगीरपुरी के एक पिता परेशान थे क्योंकि उनका 13 साल का बेटा दो साल पहले स्कूल छोड़ चुका था और गलत संगत में पड़ गया था. जुलाई में पुलिस ने एक अभियान चलाकर बच्चे की पहचान की और काउंसलिंग की. स्कूल प्रिंसिपल की मदद से वह बच्चा अब 7वीं कक्षा में दोबारा दाखिल हो गया है.
पिता ने कहा, “हम मजबूर थे. मैं उसे बार-बार स्कूल जाने के लिए कहता था, लेकिन वह नहीं मानता था. अब उसके व्यवहार में बदलाव दिख रहा है और हम ध्यान रख रहे हैं कि वह सही रास्ते पर रहे.”
98 बच्चों की दोबारा पढ़ाई शुरू
इस बच्चे की तरह अब तक 98 परिवारों के बच्चों को दिल्ली पुलिस के पायलट प्रोजेक्ट के तहत सरकारी स्कूलों में दोबारा दाखिला दिलाया गया है. पुलिस को जांच में पता चला था कि अपराध में शामिल ज्यादातर किशोर या तो स्कूल छोड़ चुके थे या कभी स्कूल गए ही नहीं. इसी वजह से यह कार्यक्रम शुरू किया गया ताकि बच्चों को अपराध से दूर रखकर पढ़ाई से जोड़ा जा सके.
पहल की शुरुआत और विस्तार
डीसीपी (नॉर्थ-वेस्ट) भिशम सिंह ने बताया कि पेट्रोलिंग के दौरान कई बच्चे स्कूल से बाहर मिले. पुलिस ने उन्हें और उनके परिवार को समझाया और फिर से स्कूल में दाखिला दिलाया. शुरुआत जहांगीरपुरी से हुई, जहां 88 बच्चों का नामांकन हुआ. अब इसे आदर्श नगर तक बढ़ाया गया है, जहां 10 और बच्चों को स्कूल भेजा गया.
अपराध और शिक्षा का संबंध
आंकड़े बताते हैं कि 2024 में जहांगीरपुरी में 128 नाबालिगों को 75 मामलों में पकड़ा गया था, जबकि इस साल अब तक 95 नाबालिग 52 मामलों में पकड़े गए हैं. आदर्श नगर में भी हालात ऐसे ही हैं. अधिकतर बच्चे गरीब परिवारों से आते हैं. लड़कियों को घर का काम करना पड़ता है और लड़कों को छोटी उम्र में कमाने भेज दिया जाता है. इसी कारण उनकी पढ़ाई बीच में छूट जाती है.
चुनौतियां: नशा और खर्च
डीसीपी सिंह ने बताया कि 14-15 साल की उम्र के बच्चे नशे और गलत आदतों में जल्दी फँस जाते हैं. इसके अलावा यूनिफॉर्म, किताबें और स्टेशनरी का खर्च भी बड़ी चुनौती है. कई परिवार बार-बार घर बदलते हैं, जिससे पढ़ाई टूट जाती है.
पुलिस और स्कूल की मदद
एसीपी योगेंद्र खोखर ने परिवारों को शिक्षा का महत्व समझाया. पुलिस बीट अफसरों ने माता-पिता को डॉक्यूमेंट और एडमिशन प्रक्रिया में मदद की. एक सरकारी स्कूल के प्रिंसिपल ने कहा, “हम बच्चों को किताबें और स्टेशनरी दे रहे हैं ताकि उनकी पढ़ाई आसान हो.”
नतीजे दिखने लगे
एक महिला ने बताया कि उसका बेटा गांव जाने की वजह से पढ़ाई छोड़ चुका था, लेकिन अब 10वीं कक्षा में दोबारा पढ़ रहा है. “पहले वह दिनभर घूमता था, अब टीचर की देखरेख में है और पढ़ाई पर ध्यान दे रहा है,” उसने खुशी जताई.
यह पहल साबित कर रही है कि सही मार्गदर्शन और सहयोग से बच्चे दोबारा पढ़ाई की ओर लौट सकते हैं और अपराध से दूर रह सकते हैं.
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