scorecardresearch

Nobel Prize: 55 साल पहले डॉ. हरगोविंद खुराना को विश्व का पहला कृत्रिम जीन बनाने के लिए मिला था नोबेल प्राइज...क्यों दिया जाता है नोबेल पुरस्कार? क्या है इसका इतिहास

साल 1901 में जब नोबेल प्राइज की शुरुआत हुई थी, तब से 2022 तक मेडिसिन की फील्ड में 225 लोगों को इससे सम्मानित किया जा चुका है. इस बार 2 से 9 अक्टूबर तक नोबेल पुरस्कार वितरित किए जाएंगे.

Har Govind Khorana Har Govind Khorana

आज से नोबेल प्राइज की घोषणा की शुरुआत होगी. सबसे पहले मेडिसिन पुरस्कार की घोषणा की जाएगी और इसकी घोषणा स्टॉकहोम में सोमवार को लगभग 11:30 बजे (0930 GMT) की जाएगी. इसके बाद मंगलवार को फिजिक्स, बुधवार को केमिस्ट्री और गुरुवार को साहित्य के लिए पुरस्कार दिए जाएंगे. पिछले साल स्वीडिश वैज्ञानिक स्वांते पाबो ने मानव विकास क्रम में खोज के लिए फिजियोलॉजी या चिकित्सा के क्षेत्र में नोबेल पुरस्कार जीता था. उन्हें ये पुरस्कार एक खास तरह के आदिमानव के DNA की खोज के लिए मिला था.

क्या है नोबेल पुरस्कार और इसका इतिहास ?
नोबेल पुरस्कार रसायन विज्ञान, भौतिकी, चिकित्सा विज्ञान, साहित्य. अर्थशास्त्र और शांति के क्षेत्र में उत्कृष्ठ योगदान के लिए दिया जाता है. प्रत्येक पुरस्कार एक अलग समिति द्वारा प्रदान किया जाता है. इस बार 2 से 9 अक्टूबर तक नोबेल पुरस्कार वितरित किए जाएंगे. नोबेल पुरस्कार पहली बार 10 दिसंबर, 1901 को स्टॉकहोम और क्रिश्चिनिया (अब ओस्लो के नाम से जाना जाता है) में दिए गए थे. साल 1901 में जब नोबेल प्राइज की शुरुआत हुई थी, तब से 2022 तक मेडिसिन की फील्ड में 225 लोगों को इससे सम्मानित किया जा चुका है. मेडिसिन की फील्ड में नोबेल जीतने वालों में एक भारतवंशी हरगोबिंद सिंह खुराना भी हैं जिन्हें साल 1968 में चिकित्सा में ये प्राइज मिला था. आज उनके बारे में जानेंगे.

कौन थे हरगोविंद खुराना
हरगोविंद खुराना का जन्म 9 जनवरी, 1922 को अविभाजित भारत के रायपुर गांव (पंजाब, अब पूर्वी पाकिस्तान) में हुआ था. उनके पिता गणपत राय खुराना ब्रिटिश प्रशासन में एक क्लर्क थे. पांच भाई-बहनों में खुराना सबसे छोटे थे.  उनके पिता गणपत राय ने आर्थिक रूप से कमजोर होने के बावजूद बच्चों को पढ़ाना नहीं छोड़ा. खुराना अपने गांव में इकलौते पढ़े-लिखे व्यक्ति थे. जब खुराना 12 साल के थे, तभी उनके पिता का निधन हो गया. तब उनके बड़े भाई ने उनकी पढ़ाई-लिखाई का जिम्मा संभाला. उनकी प्रारंभिक शिक्षा स्थानीय डीएवी हाईस्कूल में ही हुई. इसके बाद उन्होंने पंजाब विश्वविद्यालय से वर्ष 1945 में एमएससी की डिग्री प्राप्त की. उसी वर्ष, भारत सरकार ने एक कार्यक्रम शुरू किया जिसने प्रतिभाशाली छात्रों को प्रशिक्षण के लिए विदेश भेजा. खुराना पहले समूह से थे और उन्होंने 1948 में लिवरपूल विश्वविद्यालय से कार्बनिक रसायन विज्ञान में पीएचडी प्राप्त की.

अपनी छात्रवृत्ति की शर्तों के तहत, उन्हें भारत लौटना था. लेकिन उस दौरान खुराना की मुलाकात एक स्विस महिला एस्थर सिल्बर से हुई थी और वह उस पर मोहित हो गए थे. उन्होंने स्विट्जरलैंड में पोस्टडॉक्टरल वर्ष पूरा करने का विकल्प चुना. बिना किसी फंडिंग के, उन्होंने दुनिया के अग्रणी कार्बनिक रसायनज्ञों में से एक, व्लादिमीर प्रीलॉग के साथ काम करने के लिए अपनी सेविंग्स से गुजारा किया. 1949 में वो भारत लौटे लेकिन यहां उन्हें अपनी पसंद का काम नहीं मिला और वो फिर ब्रिटेन वापस लौट गए.

क्या थी खोज?
ब्रिटेन लौटने के बाद उन्होंने साल 1952 तक एलेक्जेंडर आर. टोड और जॉर्ज वालेस केनर के साथ DNA पर काम करना शुरू किया. 1952 में, खुराना को ब्रिटिश कोलंबिया विश्वविद्यालय में अपनी लैब मिल गई. एस्तेर और खुराना ने शादी कर ली और वैंकूवर चले गए और फिर वहां से अमेरिका गए. 1960 का ये वो दौरा था जब बायोलॉजिस्ट DNA को डीकोड करने की रेस में जुटे थे. एक खोज के दौरान हरगोबिंद और उनके साथियों ने पाया कि जीन, DNA और RNA के संयोग से बनता है. उन्होंने न सिर्फ DNA को डीकोड कर बताया कि वो प्रोटीन के मॉलिक्यूल से बना है बल्कि एक आर्टिफिशियल DNA भी तैयार किया. उनकी इन्हीं उपलब्धियों के चलते उन्हें नोबेल प्राइज से सम्मानित किया गया. DNA इंसान के शरीर में मौजूद प्रोटीन का स्ट्रक्चर होता है जो किसी इंसान को पूरी दुनिया में यूनीक बनाता है. ये हर एक इंसान के शरीर में मौजूद हर सेल के क्रोमोसोम में होता है.

क्यों दिया जाता है नोबेल पुरस्कार
नोबेल पुरस्कार वैज्ञानिक और इन्वेंटर अल्फ्रेड बर्नहार्ड नोबेल की वसीयत के आधार पर दिए जाते हैं. उन्हें स्वीडिश, रुसी, अंग्रेजी, फ्रेच और जर्मन भाषाएं आती थीं. अल्फ्रेड ने डायनामाइट बनाया था. डायनामाइट का कंस्ट्रक्शन इंडस्ट्री में इतना ज्यादा इस्तेमाल होने लगा कि अल्फ्रेड ने 90 जगहों पर इसकी फैक्ट्री खोलीं. लेकिन इसका गलत इस्तेमाल होता देख उन्होंने मानवता को लाभ पहुंचाने वाले लोगों को अपनी प्रापर्टी में से पुरस्कार देने की इच्छा जताई. 355 पेटेंट अल्फ्रेड नोबेल के नाम हैं. अब तक 975 शख्सियत और संस्थानों को 609 नोबेल पुरस्कार मिल चुके हैं.