
पश्चिमी दिल्ली के कीर्ति नगर में मयापुरी फ्लाईओवर के नीचे हर दिन लगभग 100 बच्चे पास की जवाहर कैंप से पढ़ने आते हैं. यह अनोखी कक्षा मेट्रो के एक पिलर के पास बनी है, जहां झुग्गियों के बगल में थोड़ी सी जगह है. ऊपर मेट्रो पुल की छाया है, नीचे बच्चे हरे घास की चटाई पर बैठते हैं. आसपास धूल और शोर है, लेकिन बच्चे ध्यान लगाकर पढ़ाई करते हैं. शोर के कारण शिक्षक माइक और लाउडस्पीकर का इस्तेमाल करते हैं.
टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के मुताबिक, इन बच्चों को पढ़ाने वाले शिक्षक खुद कभी इसी हालात में रहे हैं. कई शिक्षक इसी झुग्गी से हैं, और अब बीए या बीएड कर रहे हैं. 21 साल के मुरारी चौधरी चार मुख्य वॉलंटियर्स में से एक हैं. उनका कहना है कि वह यहीं बड़े हुए हैं. शोर, भीड़ और बुरे रास्ते ही दिखते थे. लेकिन अब वह बीएड कर रहे हैं ताकि और बच्चों की मदद कर सकें.
20 साल की मोनी छोटी उम्र के बच्चों को पढ़ाती हैं. वह खुद सिर्फ 12वीं तक ही पढ़ पाई, क्योंकि घर की हालत ठीक नहीं थी. यहां कुछ बच्चे 13-14 साल के हैं लेकिन अभी भी बोलने में हिचकते हैं या अक्षर नहीं पहचानते. वह उन्हें शुरुआती शिक्षा देने में मदद करती हैं. पेंसिल पकड़ना, अक्षर और नंबर पहचानना- ये छोटी बातें लगती हैं लेकिन इन बच्चों के लिए बहुत बड़ी हैं.
NGO की मदद से चल रहा है स्कूल
यह अनौपचारिक स्कूल पुनर्जागरण समिति (Punarjagran Samiti) नामक एनजीओ की मदद से चल रहा है. यह पहल अगस्त 2024 में शुरू हुई थी और इसका मकसद सरकारी स्कूलों में पढ़ाई की कमी को पूरा करना है, जहां एक शिक्षक को 60 से ज्यादा बच्चों को पढ़ाना पड़ता है. यहां हर शिक्षक के पास सिर्फ 20 से 25 बच्चे होते हैं.
24 साल के निरंजन कुमार चौधरी कंप्यूटर साइंस में मास्टर्स कर रहे हैं, और यहां नियमित रूप से पढ़ाने आते हैं. वह कहते हैं कि उन्हें पढ़ने का मौका मिला है, इसलिए वह इन बच्चों को पढ़ाने आते हैं. ये बच्चे पढ़ते तो हैं, लेकिन उन्हें लगता है कि वे कहीं फिट नहीं होते हैं. ऐसे में, मकसद है कि ये खुद पर विश्वास करें और आगे बढ़ें. इस फ्लाईओवर के नीचे न सिर्फ पढ़ाई होती है, बल्कि बच्चों के सपनों को भी पंख मिलते हैं.