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यह सरकारी स्कूल बना शतरंज की नर्सरी! पढ़ाई के साथ खेलों पर भी फोकस

शतरंज की इस यात्रा की शुरुआत जुलाई 2021 में हुई, जब स्कूल के एक शिक्षक ने अपनी रुचि से बच्चों को शतरंज सिखाना शुरू किया.

Chess in Govt School Chess in Govt School

गुजरात के महिसागर जिले के रतू सिंह नामुवाड़ा गांव का सरकारी प्राइमरी स्कूल अब "शतरंज की नर्सरी" के रूप में पहचाना जा रहा है. यहां प्री-प्राइमरी से लेकर आठवीं कक्षा तक के सभी छात्र-छात्राएं शतरंज खेलने में माहिर हो चुके हैं. शतरंज की इस यात्रा की शुरुआत जुलाई 2021 में हुई, जब स्कूल के एक शिक्षक ने अपनी रुचि से बच्चों को शतरंज सिखाना शुरू किया. शुरुआत में जो ज्ञान उन्हें था, वही बच्चों तक पहुंचाया और धीरे-धीरे इसे स्कूल की दिनचर्या का हिस्सा बना दिया. स्कूल प्रशासन ने सीमित संसाधनों के बावजूद शतरंज को बच्चों के जीवन का अभिन्न अंग बना दिया.

खेल और पढ़ाई का संतुलन
इस स्कूल की खासियत है कि यहां पढ़ाई के साथ-साथ खेलों को भी उतनी ही अहमियत दी जाती है. रिसेस के समय बच्चे खाना खाने के बाद शतरंज खेलते हैं. सिर्फ इतना ही नहीं, रविवार, दिवाली, होली, समर वेकेशन जैसी छुट्टियों में भी शिक्षक और छात्र-छात्राएं स्कूल आकर शतरंज की प्रैक्टिस करते हैं. यह जुनून बच्चों के व्यक्तित्व निर्माण और मानसिक विकास में अहम भूमिका निभा रहा है.

बच्चों के सपने और प्रेरणा
इस स्कूल के छात्र अब शतरंज को अपने करियर के रूप में देखने लगे हैं. एक छात्र ने कहा, "मेरा लक्ष्य ग्रैंडमास्टर बनना है." बच्चों का मानना है कि शतरंज में उत्कृष्ट प्रदर्शन करने से उन्हें भविष्य में बेहतर अवसर मिलेंगे. यह खेल न केवल उनकी सोचने की क्षमता को बढ़ा रहा है बल्कि आत्मविश्वास भी मजबूत कर रहा है.

स्कूल की खास पहचान
महिसागर का यह प्राइमरी स्कूल आज शिक्षा और खेल के बेहतरीन संतुलन के लिए जाना जाता है. यहाँ के शिक्षकों की मेहनत, स्कूल प्रशासन का समर्पण और बच्चों की लगन ने मिलकर इस स्कूल को विशेष पहचान दिलाई है. यह स्कूल न केवल पढ़ाई में बल्कि खेलों में भी बच्चों को आगे बढ़ाने की दिशा में लगातार काम कर रहा है.

रतू सिंह नामुवाड़ा का यह सरकारी स्कूल बच्चों के समग्र विकास की प्रेरणादायक मिसाल बन चुका है. शतरंज के प्रति बच्चों का जुनून और शिक्षकों की लगन ने इस स्कूल को एक आदर्श संस्थान बना दिया है. यह उदाहरण बताता है कि यदि संकल्प और सही दिशा हो, तो सीमित संसाधनों में भी बच्चों के सपनों को पंख दिए जा सकते हैं.

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