
इज़राइल "ऑपरेशन राइजिंग लायन" के तहत ईरान पर मिसाइलें दाग रहा है. तेहरान के आसमान में धुआं ही धुआं छा रहा है. इस बढ़ते तनाव के बीच भारत सरकार ने ईरान में फंसे भारतीय नागरिकों, ज्यादातर छात्रों की सुरक्षित वापसी के लिए 'ऑपरेशन सिंधु' शुरू किया है. गुरुवार सुबह 110 भारतीय छात्रों का पहला दल दिल्ली के इंदिरा गांधी अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे पर सकुशल पहुंचा.
इन छात्रों को ईरान से सड़क मार्ग के जरिए आर्मेनिया ले जाया गया, और फिर वहां से कतर के रास्ते इंडिगो की फ्लाइट से भारत लाया गया. यह अभियान ईरान के कुछ शहरों जैसे तेहरान और उरमिया में बिगड़ती सुरक्षा स्थिति को देखते हुए शुरू किया गया है, जहां बड़ी संख्या में भारतीय छात्र मेडिकल की पढ़ाई कर रहे हैं.
यह पहली बार नहीं है जब भारत को विदेश में फंसे मेडिकल छात्रों को निकालना पड़ा है. 2022 में भी, रूस-यूक्रेन युद्ध के दौरान, भारत ने 'ऑपरेशन गंगा' के तहत हजारों मेडिकल छात्रों को यूक्रेन से सुरक्षित वापस लाया था. अब सरकार लगातार ईरान से छात्रों की सकुशल वापसी के प्रयासों में जुटी है. लेकिन एक सवाल है जो जहन में आता है कि आखिर भारतीय छात्र विदेश में मेडिकल पढ़ाई करने क्यों जाते हैं? और क्यों पढ़ाई के लिए ईरान जाना पसंद करते हैं छात्र?
भारत में मेडिकल कॉलेजों में दाखिले का एंट्रेंस टेस्ट बहुत मुश्किल है. साल 2024 में करीब 23 लाख छात्रों ने NEET-UG परीक्षा दी, जबकि देश में सिर्फ 1.1 लाख एमबीबीएस सीटें उपलब्ध हैं, जिनमें से लगभग 55,000 सरकारी कॉलेजों में हैं. सरकारी कॉलेजों की फीस कम होती है, लेकिन सीटें बहुत सीमित हैं. दूसरी ओर, प्राइवेट मेडिकल कॉलेजों की फीस बहुत ज्यादा है जिसे हर कोई अफोर्ड नहीं कर सकता है. यही वजह है कि कई छात्र विदेश का रुख करते हैं, जहां पढ़ाई सस्ती होती है और दाखिले की प्रक्रिया भी आसान है.
ईरान में एमबीबीएस करना भारत के मुकाबले कहीं सस्ता है. कई भारतीय छात्र, विशेषकर जम्मू-कश्मीर से, ईरान के मेडिकल कॉलेजों में दाखिला लेते हैं. यहां तेहरान यूनिवर्सिटी ऑफ मेडिकल साइंसेज, शहीद बेहेश्ती यूनिवर्सिटी, इस्लामिक आज़ाद यूनिवर्सिटी, ईरान यूनिवर्सिटी ऑफ मेडिकल साइंसेज, करमन यूनिवर्सिटी ऑफ मेडिकल साइंसेज, और हमदान यूनिवर्सिटी ऑफ मेडिकल साइंसेज जैसे संस्थान हैं.
ट्यूशन फीस और खर्चे: ईरान में एक 5 साल की एमबीबीएस डिग्री पूरी करने में करीब 14-15 लाख रुपये का खर्च आता है, वहीं बांग्लादेश में यही कोर्स 40 लाख रुपये तक पहुंच सकता है. ईरान में यूरोप के मुकाबले लिविंग कॉस्ट भी कम है.
गुणवत्ता और मान्यता: ईरान की मेडिकल यूनिवर्सिटीज़ में आधुनिक सुविधाएं, शुरुआती क्लीनिकल ट्रेनिंग और एनएमसी (भारत की नेशनल मेडिकल कमिशन) की मान्यता है. इसके अलावा, यहां की डिग्री वर्ल्ड डायरेक्टरी ऑफ मेडिकल स्कूल्स में भी सूचीबद्ध होती है, जिससे अंतरराष्ट्रीय मान्यता भी मिलती है.
ईरान की तरह यूक्रेन भी भारतीय छात्रों के लिए मेडिकल की पढ़ाई के लिए पसंदीदा डेस्टिनेशन है. साल 2022 में करीब 20,000 भारतीय छात्र यूक्रेन की 30 से ज्यादा यूनिवर्सिटीज़ में मेडिकल पढ़ाई कर रहे थे. यूक्रेन में छह साल का एमबीबीएस कोर्स करीब 35,000 डॉलर यानी 30 लाख रुपये में पूरा हो जाता है, जबकि भारत में यह लागत चार गुना हो सकती है. वहां मेडिकल डिग्री की विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO), यूरोपियन काउंसिल जैसी संस्थाओं से मान्यता है.
भारत में सरकारी मेडिकल सीटों की भारी कमी, प्राइवेट संस्थानों में हाई फीस और एडमिशन की मुश्किल प्रोसेस के कारण कई छात्र विदेश का रुख करते हैं. लेकिन बदलते अंतरराष्ट्रीय हालात, युद्ध और अस्थिरता के बीच अब ये छात्र मुश्किल में फंस जाते हैं. भारत सरकार पर अब एक बार फिर से जिम्मेदारी है कि वह इन छात्रों को सुरक्षित घर वापस लाए.