Mid Day Meal Program in Schools
Mid Day Meal Program in Schools आप किसी भी न्युट्रिशनिस्ट से अपने खान-पान के बारे में बात करें वे सबसे पहले यही बताते हैं कि नाश्ता (Breakfast) दिन का सबसे महत्वपूर्ण भोजन है. इसलिए कभी भी ब्रेकफास्ट मिस नहीं करना चाहिए. लेकिन विडंबना यह है कि हमारे देश में ज्यादातर बच्चों को दिन का यह पहला मील ही नहीं मिल पाता है.
और कुछ को अगर मिलता है तो किसी लग्जरी से कम नहीं होता है. जैसा कि केरल में मुरीक्कट्टुकुडी के सरकारी जनजातीय उच्च माध्यमिक विद्यालय में बच्चों को नाश्ता मिलना बहुत बड़ी बात है. यहां पर मुख्य रूप से आदिवासी और बागान में काम करने वाले लोग सुबह जल्दी घर से निकल जाते हैं. ऐसे में, बच्चे घर पर रह जाते हैं और उन्हें खुद ही खुद की देखभाल करनी होती है.
एक टीचर ने बदली तस्वीर
ये बच्चे हर रोज खाली पेट स्कूल पहुंचते और स्कूल में मिड-डे मील मिलने तक भूखे रहते. इससे उनके पोषण, स्वास्थ्य और पढ़ाई, हर चीज पर असर पड़ता. लेकिन अब चीजें बदल रही हैं. मुरीकट्टुकुडी आदिवासी एचएसएस में प्राथमिक खंड शिक्षक लिंसी जॉर्ज के कार अब इन सैकड़ों भूखे बच्चों को गर्म-गर्म नाश्ता मिलेगा. ये बच्चे ज्यादातर मुरीकट्टुकुडी, कन्नमपडी और कोडलीपारा आदिवासी बस्तियों से हैं.
लिंसी ने टीएनआईई को बताया कि कुछ परिवार अपने बच्चों को एक टाइम भी ठीक-ठाक खाना नहीं खिला सकते हैं और स्कूल में मिलने वाला मिड डे मील ही उनके लिए एकमात्र भोजन है. सरकार द्वारा आवंटित धन से, स्कूल में कक्षा 1 से 8 तक के लगभग 300 छात्रों को दोपहर का भोजन उपलब्ध कराने में सक्षम है.
अपनी जेब से कर रहे मदद
दरअसल, स्कूल में प्लस-टू की एक छात्रा ने लिंसी से संपर्क किया और बताया कि वह पूरे दिन भूखी रहती है. तो लिंसी ने हायर क्लासेस के 50 और बच्चों के लिए खाने की व्यवस्था करने की ठानी. उन्होंने अपनी जेब से इसमें कुछ पैसे दिए और उनके साथी शिक्षकों व कुछ नेक दिल लोगों ने मदद की.
लिंसी का कहना है कि अभी 50 बच्चों के लिए हर दिन खाने की व्यवस्था की गई लेकिन जैसे ही उनके फंड्स और बढ़ेंगे, वे बच्चों को और अच्छे से भोजन दे पाएंगे. लिंसी ने ग्राम पंचायत से भी गुजारिश की है कि कम से कम यह सुनिश्चित किया जाए कि सभी बच्चों को सही खाना, सही समय पर मिले.