
अमृतसर का खालसा कॉलेज एक ऐतिहासिक और प्रसिद्ध संस्थान है. लेकिन क्या आपको पता है कि जिस जमीन पर यह कॉलेज बना है वह एक गांव ने दान में दी थी. जी हां, यह जमीन कभी कोट खालसा नाम के एक गांव की हुआ करती थी. यह गांव अब नगर निगम की सीमा में शामिल हो चुका है.
साल 1892 में, गांव के लोगों ने कॉलेज बनाने के लिए करीब 365 एकड़ ज़मीन दान में दे दी थी. इसके बदले में, कॉलेज प्रशासन ने गांव के मूल निवासियों के बच्चों को मुफ्त शिक्षा देने की व्यवस्था की थी.
कोट खालसा का पुराना नाम और इतिहास
कोट खालसा करीब 300 साल से भी पुराना गांव है. पहले इसे रामपुर कहा जाता था और यहां व्यापारी समुदाय के लोग रहते थे. यह जगह कई बार लुटेरों और आक्रमणकारियों का शिकार भी बनी. बाद में सय्यद महमूद नामक एक मुस्लिम सरदार ने इस इलाके पर कब्ज़ा किया और एक किला बनवाया. उसने किले के चारों तरफ एक गहरी खाई (खड्ड) खुदवाई जिसमें बारिश का पानी भरा रहता था. इसी वजह से इसका नाम पड़ा "कोट सय्यदमूद" यानी सय्यद महमूद का किला.
समय के साथ इस इलाके का नाम कोट खालसा पड़ गया. इस नामकरण का श्रेय सरदार बहादुर अजयब सिंह सरकारिया को जाता है, जो कुमेदान खुशाल सिंह सरकारिया के पोते थे. आज इस इलाके में कई रिहायशी कॉलोनियां और छोटे औद्योगिक इकाइयां भी बन चुकी हैं.
महाराजा रणजीत सिंह और कोट खालसा का रिश्ता
कोट खालसा का संबंध सिखों के महान शासक महाराजा रणजीत सिंह से भी जुड़ा है. जब उन्होंने 1802 में अमृतसर पर कब्जा किया, तो उन्होंने कोट खालसा को अपनी सेना के लिए भर्ती केंद्र बनाया.
उन्होंने इस जगह को शहर की सुरक्षा के लिए छावनी (cantonment) बनाने के लिए चुना और इसकी कमान दी सरदार जय सिंह घोरेवाहिया को, जो इसी गांव के निवासी थे. जय सिंह की पत्नी रूप कौर थीं, जिनके भाई थे कुमेदान चरत सिंह और कुमेदान भूप सिंह.
ऐतिहासिक है यहां का कुआं
महाराजा रणजीत सिंह भर्ती के दौरान गांव के एक कुएं की मुण्डेर पर बैठते थे और खुद हर जवान को देखकर सेना में भर्ती करते थे. यह कुआं आज भी गुरुद्वारा बोहरी साहिब में मौजूद है, हालांकि अब उसका रूप बदल गया है. यह टाइल्स और सफेदी से सजा हुआ है.
कहा जाता है कि वे दुनिया के गिने-चुने ऐसे शासकों में से थे, जो अपनी सेना के हर जवान को खुद चुनते थे. इससे हर सैनिक को राजा का दर्शन होता और उनके प्रति गहरी निष्ठा व समर्पण भी पैदा होता.
एक गांव की कहानी, जो इतिहास बन गया
कोट खालसा सिर्फ एक गांव नहीं, बल्कि शिक्षा, सेवा और देशभक्ति की मिसाल है. यहां की मिट्टी में खालसा कॉलेज की नींव है, रणजीत सिंह की छावनी है, और आज भी उस इतिहास की झलक दिखाई देती है.