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सरकारी स्कूल में टीचर ने शुरू किया ‘खेल-खेल में शिक्षा’ का अनोखा मॉडल... मिलेगा राष्ट्रीय शिक्षक पुरस्कार 2025

स्कूल के प्रधानाध्यापक-प्रभारी बसंता कुमार राणा ने पूरे स्कूल परिसर को एक खुला क्लासरूम बना दिया है. उनका मानना है कि बच्चों को पढ़ाई में मज़ा आएगा तो वे स्कूल छोड़ेंगे नहीं और नियमित रूप से आना पसंद करेंगे.

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ओडिशा में मालकानगिरी जिले के कोंडेल गांव स्थित सरकारी यूपी स्कूल में बच्चों की पढ़ाई अब केवल ब्लैकबोर्ड और किताबों तक सीमित नहीं है. यहां बच्चे पेड़ों के तनों से गणित की गिनती सीखते हैं और पत्थरों से उड़िया के अक्षर पहचानते हैं.

इस नवाचार के पीछे हैं स्कूल के प्रधानाध्यापक-प्रभारी बसंता कुमार राणा, जिन्होंने पूरे स्कूल परिसर को एक खुला क्लासरूम बना दिया है. उनका मानना है कि बच्चों को पढ़ाई में मज़ा आएगा तो वे स्कूल छोड़ेंगे नहीं और नियमित रूप से आना पसंद करेंगे.

राणा की प्राथमिक शिक्षा पर खास पकड़
54 वर्षीय बसंता कुमार राणा ने न्यू इंडियन एकसप्रेस को बताया, “मेरा फोकस प्री-प्राइमरी और प्राथमिक कक्षाओं पर है. यदि इन कक्षाओं की नींव मजबूत हो और पढ़ाई को मजेदार बनाया जाए, तो बच्चे कभी भी डर की वजह से स्कूल नहीं छोड़ेंगे. वे रोज़ पढ़ाई के लिए उत्साहित रहेंगे.”

राणा को उनके इसी प्रयास के लिए राष्ट्रीय शिक्षक पुरस्कार 2025 से सम्मानित किया जाएगा. उन्हें यह सम्मान बच्चों की फाउंडेशनल लिटरेसी एंड न्यूमेरेसी (FLN) में उत्कृष्ट योगदान के लिए मिल रहा है.

पूरा स्कूल बना स्टडी कंटेंट
राणा पिछले तीन दशकों से मालकानगिरी जिले के सात अलग-अलग सरकारी स्कूलों में पढ़ा चुके हैं. तीन साल पहले कोंडेल यूपी स्कूल में नियुक्त होने के बाद से उन्होंने पूरे कैंपस को पढ़ाई का माध्यम बना दिया है.

  • स्कूल की दीवारों, पेड़ के तनों, पत्थरों और गमलों पर अंकों और शब्दों के खेल पेंट किए गए हैं.
  • हर खाली जगह पर बच्चों के लिए इंटरएक्टिव लर्निंग मटीरियल तैयार किया गया है.
  • बच्चे स्कूल जल्दी आते हैं ताकि खेल-खेल में पढ़ाई कर सकें.

खिलौनों और कठपुतलियों से पढ़ाई
स्कूल की हर कक्षा में खिलौनों की कतारें हैं. राणा खुद छाया कठपुतली, ग्लव पपेट, स्टिक पपेट और मास्क तैयार करते हैं, जिनका उपयोग बच्चों को पढ़ाने में होता है. खिलौना-आधारित शिक्षण पद्धति से गणित जैसे कठिन विषय भी बच्चों के लिए आसान हो जाते हैं. पहले बच्चे खिलौनों के जरिए समझते हैं, फिर अभ्यास कॉपी में करते हैं.

ड्रॉपआउट बच्चों को वापस स्कूल लाना
इन नवाचारी तरीकों का सकारात्मक असर स्कूल में साफ दिखाई देता है. राणा के आने से पहले स्कूल में 86 छात्र थे, अब यह संख्या बढ़कर 148 हो चुकी है. खेल-खेल में पढ़ाई का यह तरीका न केवल बच्चों की पढ़ाई को मजेदार बनाता है, बल्कि ड्रॉपआउट छात्रों को वापस स्कूल लाने में भी मददगार साबित हुआ है.

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