
महाराष्ट्र और कर्नाटक जैसे राज्यों में हाल के समय में बढ़ते भाषाई विवादों ने देशभर में चर्चा का विषय बना दिया है. भाषा को लेकर पैदा हो रहे तनाव और सामाजिक असंतुलन को ध्यान में रखते हुए मध्य प्रदेश की भाजपा सरकार ने एक बड़ी और सकारात्मक पहल की घोषणा की है. प्रदेश की उच्च शिक्षा व्यवस्था अब केवल पारंपरिक विषयों तक सीमित नहीं रहेगी, बल्कि इसमें भारतीय भाषाओं से जुड़े विशेष कोर्स भी शामिल किए जाएंगे. इसके जरिए न सिर्फ छात्रों को नई भाषाओं का ज्ञान मिलेगा, बल्कि देश की विविधता में एकता का संदेश भी जाएगा.
17 यूनिवर्सिटी में प्रमुख भाषाओं के लिए पाठ्यक्रम-
मध्यप्रदेश के उच्च शिक्षा मंत्री इंदरसिंह परमार ने कहा कि 'मध्य प्रदेश, जिसे देश का ‘हृदय प्रदेश’ कहा जाता है, अब भाषाई एकता का केंद्र बनने की दिशा में कदम बढ़ा रहा है. प्रदेश के उच्च शिक्षा विभाग ने निर्णय लिया है कि प्रदेश के 17 विश्वविद्यालयों में तमिल, तेलुगु, कन्नड़, उड़िया सहित देश की प्रमुख भाषाओं को सिखाने के लिए विशेष पाठ्यक्रम शुरू किए जाएंगे. सरकार का उद्देश्य है कि प्रदेश का युवा देश के किसी भी राज्य या क्षेत्र में जाए तो वहां के निवासियों से सहजता और आत्मीयता से संवाद कर सके. भारत में कुल 12 राष्ट्रीय और 22 क्षेत्रीय भाषाएं हैं। इनमें से 12 से 15 भाषाओं को विश्वविद्यालयों में पढ़ाने की प्रक्रिया इसी शैक्षणिक सत्र से शुरू कर दी जाएगी. मंत्री का कहना है कि भाषा के आधार पर उत्पन्न संघर्षों को रोकने और सांस्कृतिक संवाद को बढ़ावा देने में यह पहल महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगी. इसके साथ ही एमपी देश में एक आदर्श के रूप में उभरकर अन्य राज्यों के लिए मार्गदर्शक बनेगा.
सरकारी पहल का मकसद-
इस योजना के पीछे सरकार की मंशा स्पष्ट है – भारतीय विविधता को सम्मान देना और संवाद की भाषा के रूप में भाषा को जोड़ने का माध्यम बनाना. प्रदेश में ऐसे युवाओं की बड़ी संख्या है जो नौकरी, व्यवसाय या शिक्षा के लिए अन्य राज्यों में जाना चाहते हैं, लेकिन भाषा की बाधा के कारण उन्हें कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है. इस पहल के माध्यम से प्रदेश के छात्र न सिर्फ अपनी मातृभाषा में पढ़ाई कर सकेंगे बल्कि अन्य राज्यों की भाषा, संस्कृति और परंपराओं से परिचित होंगे. इससे न केवल रोजगार के अवसर बढ़ेंगे बल्कि आपसी विश्वास और संवाद भी मजबूत होगा.
विपक्ष का विरोध-
हालांकि, इस योजना का विरोध भी शुरू हो गया है। कांग्रेस नेताओं का कहना है कि यह योजना केवल चुनावी लाभ के लिए लाई गई है. वरिष्ठ कांग्रेस नेता मानक अग्रवाल ने कहा कि प्रदेश में दूसरी भाषाओं को पढ़ाने से व्यावहारिक लाभ नहीं होगा. उनका आरोप है कि इससे छात्रों को वास्तविक फायदा नहीं मिलेगा और यह योजना केवल प्रचार का हिस्सा है. कांग्रेस का यह भी कहना है कि पहले से चल रही हिंदी माध्यम की योजनाओं का कोई प्रभाव नहीं पड़ा, ऐसे में नई योजना भी सिर्फ कागजों तक सीमित रह जाएगी.
(रवीश पाल सिंह की रिपोर्ट)
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